डॉनल्ड ट्रम्प ने जब से पाक अफगान बॉर्डर पे MOAB गिराया है भारत की सेक्युलर नामाजवादी लॉबी में वैधव्य की फीलिंग आ रही है, विधवा विलाप चालू आहे… छाती पीट मुहर्रम मनाया जा रहा है.
भारत की सेक्युलर लॉबी की सारी सोच और सारी राजनीति मुस्लिम तुष्टिकरण पे आधारित होती है.
मुस्लिम मानस भारत से ज़्यादा चेचन्या की फिक्र करता है, म्यांमार के रोहंगिया मुसलमानों के लिए अमर जवान ज्योति पे चढ़ जाता है.
कांग्रेस नीत यूपीए शासनकाल में भारत की इज़रायल नीति मुस्लिम भावनाओं को ध्यान में रख के बनाई जाती थी. उसी मानसिकता के तहत नमाजवादी सोच के लोग ISIS पे गिराए गए MOAB से बहुत आहत हैं-
क्यों मारा?… इतना महंगा बम क्यों मारा?… क्या ज़रूरत थी मारने की?… कुछ लोग तो दाम जोड़ रहे हैं इतने करोड़ का बम मारा तो कितने आतंकी मारे?
वैसे ये सवाल की आखिर ट्रंप ने ये बम क्यों मारा ये सिर्फ हमारे नमाजवादी ही नही बल्कि सारी दुनिया पूछ रही है.
एक थ्योरी तो ये निकल के आ रही है कि खीर अगर खराब होने वाली हो और कोई खाने वाला न हो तो कुत्ते को खिला दी जाती है.
उसी तरह इस MOAB की Shelf Life पूरी होने वाली थी (जी हाँ , फौजी ammunition की भी shelf life होती है और जब वो shelf life पूरी हो जाती है तो उसे destroy या diffuse करना पड़ता है )
सो MOAB की shelf life पूरी होने वाली थी तो यूं पड़े-पड़े बर्बाद क्यों हो , चलो पाकिस्तान पे ही फोड़ देते हैं ….
दूसरा कारण ये बताया जा रहा है कि पाकिस्तान पे MOAB मार के अमरीका ने पाकिस्तान समेत रूस , चीन और नॉर्थ कोरिया को औकात बताई है.
रूस और अमेरिका के बीच चल रहे शीत युद्ध में लकीर अब खिंचने लगी है .एक तरफ रूस चीन पाकिस्तान और नॉर्थ कोरिया है तो दूसरी तरफ अमरीका.
देखना ये है कि भारत किस तरफ झुकेगा… इतना तय है कि भारत की सेक्युलर नमाजवादी lलॉबी तो पाकिस्तान के पक्ष में ही रहेगी.