आज से कोई 15 साल पहले की बात है. गाँव में कुछ निर्माण कार्य हो रहा था. एक मिस्त्री के साथ 2 – 3 लेबर लगे हुए थे. उन दिनों पूर्वांचल में श्रमिकों को दोपहर का भोजन दिया जाता था.
दोपहर हुई. भोजन का समय हुआ. बैठे सब लोग. थाली आई तो मिस्त्री और उसकी टीम कुछ असहज हो गए ……
साहब ……हम लोगों के लिए तो पत्तल लगवा देते ……..
क्यों? थाली में क्या दिक्कत है?
साहब …….हम हरिजन हैं …….
अबे हरिजन हो तो क्या हुआ? इंसान तो हो ……साफ़ सुथरे मेहनती आदमी हो यार. क्या फर्क पड़ता है.
और मैंने उसे भगवान् कृष्ण की माफिक वहीं पांत में बैठे बैठे एक लंबा lecture पेल दिया. छुआ छूत अस्पृश्यता ……..सब पढ़ा दिया.
अब मिस्त्री बहुत impress. उसने declare कर दिया कि भाई पहलवान जी तो एकदम देवता आदमी है …….एकदम मेरा भक्त हो गया. दिन रात मेरा गुणगान करता.
सुखपूर्वक दिन बीतने लगे. 4 – 6 दिन बाद एक लेबर और बढ़ाना पड़ गया.
दोपहर हुई. भोजन की पांत बैठी तो वो नया वाला लेबर भी सबके साथ बैठा.
अब मिस्त्री गरमा गया ………
हे ……तू यहां कहाँ बैठ गया ?
चल उधर बैठ ……
मैंने पूछा क्या हुआ भैया ?
अरे साहब ये मुसहर है. हम इसके साथ नहीं खाएंगे. ये हमारी थाली में नहीं खायेगा.
मैंने तुरंत hero का चोंगा उतार दिया और villain के रोल में आ गया.
साले चमरकुट्टी की जात …….तू कैसे अब तक मेरी थाली में खाता था बे?
वाह बेटा …….तुम्हारे साथ कोई छूआ छूत करे तो वो बहुत बुरा और तुम साले जो अपने ही महादलित भाइयों को अछूत बनाओ तो बहुत अच्छे.
बेटा मेरी थाली में या तो सब खाएंगे …….ठाकुर, बाभन, चमार, मुसहर …….सब खाएंगे …….नहीं तो बेटा सबके लिए पत्तल लगेगा.
और मैंने फिर उसी पांत में बैठे बैठे उसे फिर एक लंबा lecture पेला …..
उसे समझाया …. कि क्यों हम अपने किसी भाई को B ग्रेड सिटीजन दोयम दर्जे का नागरिक बना के रखें? क्यों उसे दुत्कारें? क्या सिर्फ इसलिए कि उसके नाम के पीछे एक ऐसा surname लगा है?
मिस्त्री जी के बात समझ आई. मैंने उसे कहा कि जितना प्रेम मुझे तुमसे है उतना ही इस मुसहर से है.
बाबा साहब ने दलितोत्थान के लिए काम तो किया परंतु स्वयं दलितों में जो परस्पर भेद भाव और भयंकर छुआ छूत है उसके लिए कुछ न किया.
October 2014 में जब मेरे घर में उदयन खुला और मुसहर बच्चों का हुजूम उमड़ा तो मेरे घर में ही एकबारगी विद्रोह हो गया. हमारी एक भौजाई ठकुराइन छोड़ विशुद्ध ब्राह्मणी बन गयी. हमने भी तालिबनावतार धारण किया कि इस घर में तो अब मुसहरों का ही आवास होगा …….बाभन ठाकुर अपने लिए अलग बेवस्था कर लें.
कुछ दिन तो बच्चे दूध बिस्किट पे रहे. कोई महिला मुसहर बच्चों के लिए भोजन बनाने को तैयार न थीं. फिर जुबैदा और बानो मिल गयी. पहली बार खाना बना. सबने पेट भर खाया. अगले दिन बच्चे और उनके साथ उनकी माताएं ……उदयन में हाजिर ……भूख हड़ताल …….
हमारे बच्चे मियाइन के हाथ का बना खाना नहीं खाएंगे.
मैंने फिर उनको अस्पृश्यता पे एक लेक्चर दिया. बच्चे 5 मिनट में समझ गए और उन ने अपनी अम्मा लोग को समझा दिया. हम तो जी खाएंगे. आप लोग कृपया घर की ओर प्रस्थान करें.
एक युद्ध जीता तो दूसरा सामने. 3 ठो मैडम जी लोग हैं …….ऊ उदयन में खाना तो छोड़ पानी तक नहीं पीती हैं. फिर उनको समझाया. पर उनको समझने में पूरा महीना लग गया. अब तीनों मस्त बिंदास पेट भर खाती हैं. अपनी थाली अलग चुरा के रखती हैं. एक दिन मैंने देख लिया. उनकी थाली सबके साथ mix कर दी ……
आज उदयन में हर कोई सभी बर्तनों में खाता है. बाहरी लोग आते हैं. सब जानते हैं कि जिस गिलास में वो पानी पी रहे हैं उन्ही में मुसहर बच्चे भी पीते हैं.
मात्र 5 महीने में उदयन में अस्पृश्यता पूरी तरह समाप्त हो चुकी है.
बाबा साहब ……आज उदयन की तरफ से ……. आपको जन्म दिन मुबारक हो