आज इन्दौर में गर्मी थोड़ी ज़्यादा थी. रेल्वे प्लेटफ़ार्म पर मैं दिल्ली से आने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था तभी एक तितली फड़फड़ाती हुई आई और मेरे सामने गिर गई. लगता था तितली में जान है क्योंकि बह अपने पंखों को फड़फड़ाती पलटकर उठने की चेष्टा कर रही थी. पर वह इतनी बदहवास और कमज़ोर थी कि उससे उठते नहीं बन रहा था.
मेरे दिमाग़ में एक युक्ति सूझी मैं उठा और पास के नल से चुल्लू में पानी भरकर लाया और तितली के ऊपर डाल दिया. पहले तो तितली चौंकी क्योंकि उसने उचक कर दो बार पंख फड़फड़ाए और निढाल हो गई. मैं उसे निहारता रहा.
कोई आधा मिनट में तितली के मुँह के आगे लगे ऐन्टिना जैसे दो बारीक मुच्छड़ तंन्तुओं में हरकत हुई. मुझे एहसास हुआ पानी कुछ असर कर रहा है ….और देखते ही देखते वह तितली फुर्र से उड़कर कहीं चली गई.
पर अरे यह क्या जैसे ही मैं स्टेशन से बाहर चलने लगा, वही तितली मेरे ऊपर आसपास मँडराने लगी. बाहर आकर जब मैं अपनी कार में बैठकर चलने लगा तो मैंने देखा तितली रूककर हवा मैं पंख फड़फड़ाती नृत्य कर रही थी. मेरे समझ नहीं आया यह ऐसा क्यों कर रही है. फिर अचानक मुझे लगा यह कहीं उसकी जान बचाने के लिए मुझे अपनी शुक्रिया अदा तो नहीं कर रही है.
कितनी अजीब बात है तितली की कितनी सी छोटी जान होती है , कितनी छोटी ज़िन्दगी होती है. अगर उसमें कोई दिमाग़ नाम की चीज़ होगी तो वह सुई की नोक के बराबर होती होगी. इस ज़रा सी तितली में इतनी संवेदनशीलता है कि वह अपने एहसान के बदले में मुझे स्टेशन के बाहर तक छोड़ने आई है ,और जब तक मैं चला नहीं गया वह हवा में नृत्य करके उपकार का एहसास कराती रही. वाह धन्य हो ईश्वर तेरी माया.
पर दूसरी तरफ़ आज मैं याद करता हूँ, मेरे जीवन मैं ऐसे कितने लोग आए है जो मुझे ऐसे तितली की तरह याद करते है? जब उन लोगों में से कुछ लोगों को मुझसे कोई निजी काम कराना होता था, तो मेरे सामने किस तरह ख़ुशामदें करते थे?
जिन लोगों को मैंने नियमों के अन्तर्गत मदद की वह भूले चूके आज भी दुआ सलाम जरूर कर लेते है. पर जिन लोगों को मैंने मानवता के नाते पूरी तरह “आउट ऑफ़ वे” जाकर अपने व्यक्तिगत स्तर पर भरपूर मदद की, उनमें से बहुतेरे ऐसे लोग भी है जो अगर मैं आज उन्हें सड़क पर दूर से दिख जाऊँ तो वह सज्जन अपना मुँह दूसरी तरफ़ मोड़कर निकल जाते हैं जिससे कहीं मुझसे उनकी आँखें चार न हो जावे.
नन्ही तितली की एहसान अदायगी की बेशक़ीमती तहज़ीब और स्वार्थपरस्त आदमियों की एहसान फ़रामोशी में कितना विलक्षण तुलनात्मक विरोधाभासी तालमेल है. काश हम नन्ही तितली से कुछ सीख लेकर अपना आचरण कर सके होते तो कितना सुखद होता?