रामावतारचरित : कश्मीरी भाषा-साहित्य में रामकथा काव्य परंपरा

प्रकाशराम कृत ‘रामावतारचरित’ कश्मीरी भाषा-साहित्य में उपलब्ध रामकथा-काव्य-परंपरा का एक बहुमूल्य काव्य-ग्रंथ है जिसमें कवि ने रामकथा को भाव-विभोर होकर गाया है.

कवि की वर्णन-शैली एवं कल्पना शक्ति इतनी प्रभावशाली एवं स्थानीय रंगत से सराबोर है कि लगता है ‘रामावतारचरित’ की समस्त घटनाएँ अयोध्या, जनकपुरी, लंका आदि में न घटकर कश्मीर-मंडल में ही घट रही हों.

‘रामावतारचरित’ की सबसे बड़ी विशेषता यही है और यही उसे ‘विशिष्ट’ भी बनाती है. ‘कश्मीरियत’ की अनूठी रंगत में सनी यह काव्यकृति संपूर्ण भारतीय रामकाव्य-परंपरा में अपना विशेष स्थान रखती हैं.

इस बहुमूल्य कार्य के लिए मुझे उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्कालीन उपाध्यक्ष डॉ0 हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने अभिशंसा पत्र तथा बिहार राजभाषा विभाग, पटना ने ताम्रपत्र से विभूषित किया है.

पांच वर्षों की अनवरत मेहनत के उपरान्त तैयार किये गये लगभग पांच सौ पृष्ठों के इस काव्य-ग्रन्थ की सुंदर भूमिका/प्रस्तावना उस समय के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ कर्णसिंह जी ने लिखी है.

Comments

comments

LEAVE A REPLY