सुभद्राकुमारी चौहान हिंदी की बहु चर्चित कवियित्री हैं. खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी, उनकी बहुत प्रसिद्ध कविता है. उनकी एक बहुत अच्छी लेकिन कम चर्चित कविता जलियाँवाला बाग़ में वसंत भी है.
इस कविता को स्वर दिया है, प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत निपुण गायिका भारती विश्वनाथन ने. संगीत – श्रुति और धर्मेश ने. फिल्म तकनीकी स्तर पर बहुत अधिक अच्छी नहीं है लेकिन भारती ने इस कविता को पूरे मन से गाया है.
इस कविता को सुनिए और इस तरह प्रमोट कीजिए की स्कूल के बच्चे अवश्य देखें, ताकि वे अपनी कक्षा मे बच्चों को सुनवाएं.
यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते.
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे.
परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है.
ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना.
वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,
दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना.
कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें.
लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले.
किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना.
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,
कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर.
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं.
कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना.
तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर.
यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना.
यही कविता स्वानंद किरकिरे जी की आवाज़ में भी –