प्रायवेट स्कूली शिक्षा क्या इतनी ज़रूरी है?

प्रायवेट स्कूलों की फीस पर मनमानी पर जो अभिभावक प्रदर्शन कर रहे हैं… कह रहे हैं कि हम सभी कमाई बच्चों की फ़ीस में ही भर देंगे तो खाएँगे क्या?, मुझे पक्का यक़ीन है कि उनको अपने क्षेत्र के सरकारी स्कूल के बारे में कुछ नहीं पता होगा.

असल में ग़लती प्रायवेट स्कूलों की नहीं, ऐसे अभिभावकों की है, जो समझते हैं कि पढ़ाई मतलब प्रायवेट स्कूल ही होता है. अब आप बाज़ारू शिक्षा की तरफ़ भागेंगे तो बाज़ार सजाने वाले तो सजाएँगे ही.

शहर छोड़िए, अगर यूपी के गाँवों को देखेंगे तो पाएँगे कि जिसकी आमदनी अगर दो हज़ार महीना भी है, वो भी अपने बच्चों को गाँव या आसपास के प्रायवेट स्कूलों में ही भेजता है…

गाँव के आसपास नौकरी-बिज़नेस करने वाले, मात्र बच्चों की पढ़ाई के लिए अपनी पत्नी बच्चों के साथ पास के शहर में किराये पर रहते हैं, तो बाहर नौकरी करने वाले और परिवार को साथ रखने में असमर्थ लोग, अपने बीवी बच्चों को शहर में किराए पर रखते हैं.

मेरी मानें तो इस प्रायवेट पढ़ाई के शौक़ ने गाँवों का जितना नुक़सान किया है, उतना शायद ही किसी और चीज़ ने किया हो? लोगों को इस बहाने संयुक्त परिवार से निकलकर एकल परिवार में रहने का मौक़ा मिल गया है.

गाँव में परिवार सहित रहने वालों में अब अधिकतर ग़रीब किसान मज़दूर और वो ही लोग बच गए हैं, जिनकी गाँव में रहने की कोई ना कोई मजबूरी है.

अगर सभी पढ़े लिखे-अनपढ़, पैसे वाले-ग़रीब के बच्चे गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ें तो कोई वजह ही नहीं कि सरकारी स्कूलों के स्तर में कोई सुधार ना हो.

आज सरकारी स्कूल में अधिकतर उन्हीं के बच्चे पढ़ रहे हैं, जिनके पास पढ़ाई के बारे में सोचने का ना तो समय है, ना हैसियत.

पहले ऐसा नहीं था. हम सरकारी स्कूल से ही पढ़े हैं. हमें याद है जब हमारे गाँव में पहला प्रायवेट स्कूल खुला था, तब हम उस स्कूल में पढ़ने वालों को दोयम दर्जे का मानते थे. आज स्थिति ऐसी है कि दोयम छोड़िए, सरकारी स्कूल में पढ़ने वालों का कोई दर्जा ही नहीं है.

अगर पढ़ाई की तकनीकी की बात करें तो भी मैं सरकारी शिक्षा को ही बेहतर मानता हूँ. बच्चे को किस उम्र में क्या पढ़ना चाहिए, ये यहीं बेहतर समझा जाता है, वर्ना प्रायवेट के कोर्स के बारे में आपको पता ही है.

ऐसी-ऐसी किताबें कि बड़ों की हालत ख़राब हो जाय, बच्चे तो बच्चे ही हैं. बेचारे बचपन में मिलने वाले प्राकृतिक और सामाजिक विकास के ज्ञान से महरूम रह जाते हैं.

मैं ये नहीं कहता कि बच्चों को प्रायवेट में पढ़ाइए ही मत, मेरा कहना है कि केवल प्रायवेट में पढ़ाने की अंधी दौड़ में शामिल मत होइए.

गाँव में हैं तो अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भेजिए. आज जैसे फ़ीस के विरोध में धरना दे रहे हैं, वैसे ही पढ़ाई ना होने पर सरकारी स्कूल के लिए भी कीजिए. यक़ीन मानिए, चौतरफ़ा बदलाव होगा.

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