कुलभूषण को बाइज्जत छोड़ दो, वर्ना फिर सोच लो तुम्हारा क्या हाल होगा?

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को खुले शब्दों में ललकार कर कह दिया है कि “कुलभूषण को बाइज्जत छोड़ दो वर्ना भारत आऊट ऑफ़ वे जाकर निर्दोष भारतीय को छुड़ाने के लिये वह सब कुछ करेगा”, ( जो कभी कोई सोच भी नहीं सकता ).

सुषमा की धौंस का एकदम असर हुआ पाकिस्तान ने कहा 60 दिनों के भीतर कुलभूषण फांसी की सजा के विरूद्ध न्यायालय में जा सकता है. यानि पहला रास्ता तो पाकिस्तान ने यह खोल दिया कि (वह) भारत की ओर से कोर्ट में अपील की जा सकती है.

अपील निरस्त होने पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति से क्षमा याचना की जा सकती है. अर्थात पाकिस्तान ने कुलभुषण का मुद्दा चम्बल के डकेतों की तरह अटका दिया है कि फिरौती दो वर्ना “पकड़ ” के टुकडे टुकडे कर देंगे.

सुषमा के ‘ आऊट आफ वे ‘ वाक्य का कूटनीतिक भाषा में क्या मतलब होता है? राजनैतिक कूटनीति में भाषा और शब्दावली का चयन बहुत खास और सांकेतिक होता है. यह भाषा अपने आप में विशेष प्रकार की होती है. इसका उपयोग खास तरीके से किया जाता है. जिसमें कूटनीतिक शब्दावली का मूल भावार्थ क्रमबद्ध तरीके से शब्द और कहने के तरीके में छुपा रहता है. यह क्रम इस प्रकार का होता है,

1.  सबसे पहले दूतावासों के द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों की चर्चा होती है, जिसमें चिन्ता जाहिर की जाती है.
2. फिर मंत्रालय में राजदूत या प्रभारी ऑफिसर को बुलाकर खुले शब्दों में कह दिया जाता है.

3. इस पर भी सामने वाली पार्टी नहीं मानती तो विश्व स्तर पर जिन लोगों से आपकी पटती है उनसे सामने वाले पर दबाव डाला जाता है.

4. सामने वाला उस दबाव से न झुके तो उस विदेशी हस्ती से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया जाता है जिस देश के हाथ में सामने वाले की आर्थिक या सामरिक नस दबी हो.

5. इस पर भी अगर सामने वाला देश अड़ा रहता हो तो बिचौलिये देशों के माध्यम से आपसी लेन देन से मामला सलटाने की कोशिश की जाती है.

6. और फिर भी मसला न सुलझे तो आखिरी विकल्प “चेतभवानी” जिंदाबाद.

कूटनीतिक युद्ध में चेतभवानी का मतलब धूं धां से नहीं होता. इसका मतलब टेक्टिक्स से होता है. जैसे आर्थिक नाके बन्दी करना, दी गई सहूलियतों को रोकना, गुप्त तरीके से सामने वाले पर मनोवैज्ञानिक बुखार चढ़ाना. मीड़िया के माध्यम से पूरी दुनिया में उसकी कमजोरियों को खोलना. जिससे पूरी दुनिया में सामने वाले देश की थू थू होने लगे.

कुलभूषण के मामले में अगर डोनाल्ड़ ट्रम्प की ओर से व्हाईट हाऊस का एक फोन पहुंच जाए तो मियां नवाज शरीफ अपनी आधी नमाज छोड़कर दौडे दौड़े मोदी की माताजी से मिलने चले आएँगे. मास्को से फोन आने पर रात भर सोचकर दूसरे दिन मोदी जी को खबर करेंगे हम कुल भूषण को बाघा बार्डर पर भेज रहे हैं आप ले जाईये.

अब देखना यह है कि कि “आऊट ऑफ़ द वे ” का कौन सा रास्ता सुषमा जी अख्तियार करने वाली हैं. क्या कुलभूषण के ऐवज में पकड़े गए आई एस आई के जासूसों को छोड़ा जायेगा या फिर सिन्ध नदी में और ज्यादा पानी छोड़ना पडेगा.

रहा सवाल काश्मीर के मुद्दे का, आज की हालत में न तो नवाज शरीफ या और कोई पाकिस्तानी नेता चाहेगा कि कश्मीर का हल निकले क्योंकि इस मुद्दे के खत्म होने के बाद सत्ता पर काबिज होने का उनके पास कोई जरिया नहीं रहेगा.

भारतीय पक्ष का तो प्रश्न ही नहीं उठता कोई भी राजनीतिक दल हो सबको मानना ही पड़ेगा कि काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा फिर चाहे उसकी कीमत पाकिस्तान को बर्बाद करके ही क्यों न चुकाना पड़े.

कुलभूषण के मामले में कानूनी दांव पैंचों में भारी दरार है. जिस फौजी अदालत ने पाकिस्तान आर्मी एक्ट 1952 (THE PAKISTAN ARMY ACT No. XXXIX OF 1952) के तहत कुलभूषण को फांसी की सजा सुनाई है उसे कुलभूषण के केस की न तो सुनवाई करने का अधिकार है और न ही किसी तरह की सजा देने का अधिकार है.

(http://pakistancode.gov.pk/…/UY2FqaJw1-apaUY2Fqa-ap%2BYaQ%3…) इस साईट पर पाकिस्तान का फौजी अदालत का कानून पूरा पढ़ने को मिल जाता है. इस कानून की धारा 2, सेक्शन 1 से लेकर 4 तक कहीं भी यह अदालत कुलभूषण के केस की सुनवाई करने के लिए अधिकृत नहीं है.

इसी तरह फौजी अदालत के इसी कानून के तहत फांसी की सजा देने के लिए जिन परिस्थितियों का जिक्र खुलासा किया गया है उनमें से धारा 24 की उप धाराएं 24 (A) से लेकर 24(H) तक किसी भी श्रेणी में कुलभूषण को फांसी की सजा सुनाने का अधिकार नहीं है. आपके सन्दर्भ के लिए धारा 24 इस प्रकार है :-

24. Offences in relation to enemy and punishable with death. Any person subject to this Act who commits any of the following offences, that is to say,

(a) shamefully abandons or delivers up any garrison, fortress, air­field, place, post or guard committed to his charge or which it is his duty to defend, or uses any means to compel or induce any commanding officer or other person to do any of the said acts ; or

(b) in the presence of any enemy, shamefully casts away his arms, ammunition, tools or equipment, or misbehaves in such manner as to show cowardice ; or

(c) intentionally uses words or any other means to compel or induce any person subject to this Act, 1* * * 2[or to the Pakistan Air Force Act, 1953 (VI of 1953),] or to the 3[Pakistan Navy Ordinance, 1961 (XXXV of 1961)], to abstain from acting against the enemy or to discourage such person from acting against the enemy ; or

(d) directly or indirectly, treacherously holds correspondence with, or communicates intelligence to, the enemy or who coming to the know­ledge of such correspondence or communication treacherously omits to discover it to his commanding or other superior officer ; or

(e) directly or indirectly assists or relieves the enemy with arms, ammunition, equipment, supplies or money, or knowingly harbours or protects an enemy not being a prisoner ; or

1 Omitted by the Federal Laws (Revision and Declaration) Ordinance, 1981 (27 of 1981), s. 3, and Sch. 2.
2 Ins. by the Central Laws (Statute Reform) Ordinance, 1960 (21 of 1960), s. 3 and 2nd Sch. (with effect from the 14th October, 1955).
3 Subs. by the Pakistan Army (Amdt.) Ordinance, 1965 (40 of 1965), s. 5, for “Pakistan Navy (Discipline) Act, 1934”.

(f) treacherously or through cowardice sends a flag of truce to the enemy ; or

(g) in time of war, or during any operation, intentionally occasions a false alarm in action, camp, garrison or quarters or spreads reports Calculated to create alarm or despondency ; or

(h) in time of action, leaves his commanding officer, or quits his post, guard, picquet patrol or party without being regularly relieved or without leave ; or

(i) having been made a prisoner of war, voluntarily serves with or aids the enemy ; or

(j) knowingly does when on active service any act calculated to imperil the success of the Pakistan forces or any forces co‑operating therewith or of any part of such forces ;
shall on conviction by Court martial, be punished with ‘death or with such less punishment as is in this Act mentioned.

इसी प्रकार ऑफिशियल सीक्रेट सर्विस एक्ट के तहत किसी प्रकार की कोई सुनवाई करने का अधिकार फौजी अदालत को नहीं है. अत: कुलभूषण का पूरा प्रकरण एक चाल है, छलावा है, कुकृत्य है भारत की मोदी सरकार की सफलताओं से खीजकर निरपराधी भारतीय को अमानवीय हथकंड़े अपनाकर प्रताड़ना देना है. आज अगर गांधीजी जिन्दा होते तो वह पाकिस्तान के मजलिसे शूरा पर कुलभूषण को बचाने आमरण अनशन पर बैठ जाते.

अब तो सिर्फ और सिर्फ एक ही जरिया है इजरायली स्टाईल में हमें ‘आऊट ऑफ दि वे’ की भाषा छोडकर दो टूक सीधे सीधे “डायरेक्ट ऑन दि वे” की हरियाणवी भाषा या खड़ी बोली में बोल देना चाहिये ..”तेरी तो … तू कुलभूषण को तुरन्त छोड दे, वर्ना सोच ले तेरा कैसा बुरा हाल होगा “.

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