एक मित्र ने कहा कि… ज्ञानवापी तो मस्जिद का नाम है! ये बात मेरे लिए कोई अचंभित करने वाली बात नहीं है. दरअसल लोगों के त्वरित के प्रकटीकरण की बात है.
अधिकाधिक लोगों की सोच ही कभी नहीं बनी कि… “ज्ञानवापी” ये तो संस्कृत का शब्द है… इससे उर्दू, अरबी, फ़ारसी, तुर्की, मंगोल आदि से क्या लेना देना… वो मुग़ल लोग मस्जिद का नाम ज्ञानवापी क्यों रखेंगे…
दरअसल हमने सुनी सुनाई बातों पर बहुत ज्ञान पाला हुआ है… उस ज्ञान की सत्यता परखने के लिए उसे कसौटी पर कभी परखा ही नहीं हैं… और कोई बात नहीं है ..
तो ज्ञानवापी क्या है ये जानते हैं… जो असली मंदिर है उसमें एक कुआं है जिसका नाम है “ज्ञानवापी”… “ज्ञानवापी” मतलब होता है “ज्ञान का भंडार” अथवा “ज्ञान का कुआँ …”
तो ज्ञानवापी किसी का नाम नहीं है… एक जगह जहाँ अद्भुत ज्ञान का संचार होता है क्योंकि आप देवाधिदेव महादेव के सानिध्य में रहते है…
औरंगजेब ने उसी कुएं में शिवलिंग को फिंकवा दिया था… और मन्दिर परिसर को तोड़कर मस्जिद बनाया था… इसलिए उस परिसर को ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैं….
उस मस्जिद का असली नाम जो औरंगज़ेब के जमाने में दिया गया वो था “अंजुमन इन्तहाज़ामिया ज़ामा मस्जिद ” …. काशी के लोगों ने उसको “ज्ञानवापी मस्जिद” बोल कर… “ज्ञानवापी” को जिन्दा रखा.
उसके आगे की बात ये है कि मराठा राजा मल्हार राव होलकर ने काशी में “अंजुमन इन्तहाज़ामिया मस्जिद” की जगह पर वापस ज्ञानवापी मन्दिर बनवाने का फैसला किया… लेकिन लखनऊ के नवाबों ने उसका विरोध किया…
महाराज होलकर इन लखनऊ के नवाबों के हठ से कोई हल नहीं निकाल सके… उनके बाद उनकी पुत्र वधू अहिल्याबाई होलकर ने मस्जिद के बगल वाला मंदिर बनवाया जिसमें आज लोग दर्शन के लिए जाते हैं… इनके नाम से एक घाट अहिल्याभाई होलकर घाट भी है.