“तुम क्या हो? जब तुम पैदा हुए थे हैं तो तुम्हें एक नाम दिया गया, जिसे तुम ने नहीं चुना. तुम्हारे नाम के साथ एक धर्म, एक वंश और एक राष्ट्रीयता आ कर जबर्दस्ती चिपक गयी, इनमें से किसी को भी तुमने नहीं चुना. और उन सब बातों के रक्षण के लिए तुम लड़ोगे, मरोगे भी, जिनमें से एक भी तुम ने स्वयं नहीं चुना, सब दूसरों द्वारा तुम पर थोपे गए थे. तुम्हारा नाम, वंश, धर्म, राष्ट्रीयता, यह तुम्हारी पहचान की सभी निशानियाँ केवल काल्पनिक है क्योंकि तुम कुछ और भी पैदा हो सकते थे या अपनी मर्जी से निर्णय लेते तो कुछ और बन जाते. तो सोचो, क्या इन सब के लिए लड़ना, मरना–मारना, आवश्यक है या निरी मूर्खता है?”
पढ़ लिया? कैसे लगा? अधिकतर लोगों के पास ऐसे तर्क की काट नहीं होती. यह बहुत उलझा देने वाला तर्क है, इसमें से हर बात को सत्य साबित किया जा सकता है. लेकिन ये है क्या?
ये दिमागी जहर है. कुछ जहर मनुष्य की नसों पर असर करते हैं जो कर्तव्य के समय उसके अंग को लकवाग्रस्त कर देते हैं, वो न हाथ हिला सकता है न पाँव चला सकता है, बस असहाय सा खुद को मरते देख सकता है. वैसे ही यह दिमाग पर काम करने वाला जहर है जो आप की सोच को लकवाग्रस्त कर देता है.
इन बातों से आदमी अपनों से और अपने से भी विमुख हो जाता है. क्यों कुछ करना है, क्यों लड़ना है, आदि बातों में आ जाता है. लेकिन वो यह नहीं समझता कि उस पर हमला करनेवाला शत्रु, यह सब बिलकुल नहीं सोच रहा. वो उसका धन लूटने आया है, उसका घर तबाह करने या छीनने आया है, उसकी औरतों को बलात भोगने आया है और उसे मारने या अपना गुलाम बनाने आया है. वो शत्रु इसलिए यह सब सोचते आया है कि यह सब तुम्हारे पास है, तुम सोने की चिड़िया हो. सोने के बाज होते तो हमला करने के पहले सोचता.
विषाद अर्जुन को हुआ था, कौरवों को नहीं. पांडव सेना को भी विषाद नहीं हुआ था, लेकिन उसके सेनानायक अर्जुन को हुआ था. अब जरा एक और बात पर ध्यान देते हैं.
अर्जुन को विषाद हुआ और वैराग्य सा हुआ. यह भाव उसके मन में आए इसके लिए कौरवों ने उसके पास किसी को भेजा नहीं था. कम से कम ऐसा कहीं लिखा नहीं है. लेकिन आज हमें ऊपर वर्णित निष्क्रियता का दिमागी जहर पिलाने वाले लोग हमारे बीच भेजे जाते हैं.
ये रोबो (robots) जैसे ही होते हैं जो यह शांति का नहीं बल्कि शांत करा देने वाला जहर हमको पिला देते हैं. हमारे लिए जरूरी है यह समझ लेना कि उनकी प्रोग्रामिंग क्या है और उनके प्रोग्रामर्स को ढूंढ कर नष्ट करें. अगर प्रोग्रामर्स पहुँच के बाहर हों तो उनको मेंटेन और सपोर्ट करने वालों को ढूंढें और नष्ट करें. रोबो को काम करते रहने के लिए सपोर्ट और मेंटेनन्स स्टाफ की भी आवश्यकता होती ही है.
तो, यह राष्ट्र, राष्ट्रीयता, धर्म आदि केवल कोरी और थोपी हुई कल्पनाएँ हैं, ऐसा कहने वाले कौन हैं? क्या ये यही सब बातें केवल हमारे बीच प्रचार करते हैं या हमारे शत्रुओं के बीच भी प्रचार करते हैं? कोई है जिसका नाम आप ने सुना हो?
हमारे बीच तो ये काफी फेमस भी हो जाते हैं. कभी यह भी सोचा है कि इन्हें फेमस होने के लिए मंच देता कौन है? क्या इनके विचार वाकई ताकतवर हैं जो लोग स्वयं उन्हें सुनें या ये अचानक फेमस किए जाते हैं और उनका फेमस होना उनके विचारों को वजन देता है?
ये अपनी खोखली करने वाली चिकनी-चुपड़ी मीठी बातें ले कर हिन्दू अर्जुनों के पास जाते हैं. यहाँ अर्जुन का अर्थ नायक समझें, और हर वो हिन्दू अर्जुन है जो और हिंदुओं के लिए नायक या पथप्रदर्शक बन सकता है. अगर ये अपने इस दिमागी जहर का असर उस पर डाल सकते हैं तो …
तो क्या, कब के असर डाल चुके हैं, दिख नहीं रहा? डिग्री विभूषित हिन्दू आज हिन्दू समाज के अर्जुन हैं और उनकी सोच को यह दिमागी जहर लकवाग्रस्त कर रहा है. डिग्री विभूषित कहा है, विद्या विभूषित नहीं कह रहा, क्योंकि ‘सा विद्या या विमुक्तये’ – विद्या मुक्त करती है, और इनकी सोच बंधक होती है.
इनका एक आखिरी तर्क होता है – तो फिर हमारे और उनके बीच क्या फर्क रहेगा? इसका भी उत्तर है और वह देना जरूरी है – फर्क यही रहेगा कि वे जिंदा रहेंगे और तुम मारे जाओगे. या जिंदा रहे भी तो अपना सब जीते जी लुटता हुआ देखोगे, असहाय.
आज नए अर्जुनों की जरूरत है, या फिर लकवाग्रस्त अर्जुनों के कानों में शंख नाद करने की.
तस्मादुत्तिष्ठ:।