जॉन रोएब्लिंग जो की पेशे से इंजीनियर थे. उन्होंने एक सपना देखा. खुली आँखों का सपना. ऐसा जिसे साकार करने के लिये रातों की नींद हराम हो जाती है.
वो न्यूयॉर्क को एक लंबे आईलैंड से कनेक्ट करने वाला पुल बनाना चाहते थे. ये आइडिया जब दुनिया भर के एक्सपर्ट्स ने सुना तो सिरे से खारिज कर दिया. उनके अनुसार ये असम्भव कल्पना थी. एक्सपर्ट्स ने कहा ऐसा कुछ पहले कभी नहीं हुआ, ना हो सकता है.
इस आइडिया को अव्यवहारिक करार दिया गया. लेकिन हर तरफ से उठने वाली नकारात्मक बातें रोएब्लिंग को अपने संकल्प से डिगा ना सकी…
उन्होंने सपना देखना नहीं छोड़ा… अपने बेटे के साथ मिलकर अपने सपने को साकार करने की कोशिश में जुट गये. आखिरकार उन्होंने कुछ लोगों को रिक्रूट कर ब्रिज बनाने का काम शुरू कर दिया.
प्रोजेक्ट बहुत अच्छी तरह शुरू हुआ लेकिन एक दिन दुर्भाग्यवश उस साईट पर एक दुर्घटना घटित हो गयी… जिसमें एक व्यक्ति समेत रोएब्लिंग को अपनी जान गंवानी पड़ी. उनके बेटे वाशिंगटन बुरी तरह से जख्मी हुये. ब्रेन डैमेज हो जाने से बोलने और हिलने डुलने में अक्षम हो गये.
जिन एक्सपर्ट्स ने ये आइडिया खारिज किया था उन्होंने इस निर्णय को ही गलत ठहराया.
प्रोजेक्ट रुक गया. अब मार्गदर्शन देने के रोएब्लिंग भी नहीं बचे थे.
शरीर से पूरी तरह अक्षम हो चुके वाशिंगटन का दिमाग अभी भी पूरी तरह सही से काम कर रहा था… वो इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना चाहते थे…
एक दिन वाशिंगटन को बेड पर लेटे हुये महसूस हुआ की वो अपनी एक उंगली हिला सकतें हैं… और फिर इस तरह एक उंगली की बदौलत उन्होंने अपनी पत्नी से बातचीत करने का एक कोड विकसित किया…
उन्होंने अपनी पत्नी की बाँह पर स्पर्श से उसे प्रोजेक्ट आगे बढ़ाने के अपने निर्णय के बारे में बताया…
टीम फिर इकट्ठी हुई. प्रोजेक्ट शुरू हो गया. उसी एक उंगली से वो इंजीनियर्स से संवाद स्थापित कर उन्हें इंस्ट्रक्शन्स देते रहते. और फिर पूरे 13 साल बाद. अपने जज्बे से एक उंगली के सहारे वाशिंगटन ने अपना और अपने पिता का सपना साकार कर दिखाया.
ब्रूक्लियन ब्रिज आज भी शान से खड़ा उस जज्बे की कहानी कहता है. उस सपने को सलामी देता है. कौन कहता है दुनिया में कुछ असम्भव है. आसमान की छाती फट पड़ेगी. तबियत से एक पत्थर तो उछालो.