मुंबई के ईरानी बस्ती में, जिसे चेन-स्नैचर्स विलेज भी कहा जाता है, पुलिस की टीम दो अभियुक्तों को पकड़ने पहुँची. दोनों को पकड़ कर लौटते हुए उनके परिवार वालों के साथ-साथ बस्ती के लोगों की भीड़ ने न सिर्फ पत्थर फेंके, बल्कि एक पुलिस कॉन्स्टेबल पर किरासन तेल डालकर आग लगाने की कोशिश भी की.
हुआ वही जो पिछले दस साल के आठ बार के छापों के समय इस गाँव में होता रहा है, दोनों अभियुक्त फ़रार हो गए. अभियुक्तों के नाम सुनकर आपको आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि ये तकनीक कई जगहों पर अपनाई जाती है, और अपनाई जाती रहेगी.
समीर ईरानी और हसन ईरानी सईद पर कई मुकदमे हैं. साथ ही बस्ती के कई और लोगों पर भी. लेकिन पुलिस लाचार हो जाती है क्योंकि ऐसी बस्तियों में, जहाँ गलियाँ जानबूझकर सँकड़ी बनाई जाती हैं, ताकि पुलिस घुस ना सके. और अगर घुस जाए तो बिना चोट खाए वापस ना आ सके.
ये नाम लेना ज़रूरी है क्योंकि ये नायाब तकनीक ऐसे ही मुहल्लों, बस्तियों में अपनाई जाती है, जहाँ मुसलमान रहते हैं. वो मुसलमान क़ुरान की परिभाषा से मुसलमान हैं या नहीं, ये मैं नहीं कह सकता क्योंकि हरकतों से तो नहीं लगता.
ये सिर्फ एक उदाहरण है. कश्मीर वाली पत्थरबाज़ी पर लिखता हूँ तो लोग कहते हैं कि उनका प्रदर्शन, पत्थरबाज़ी तो राजनैतिक है. इस घटना, या ऐसी बाकी घटनाओं में इनको कौन सा नया देश चाहिए कोई ये बता दे!
ऐसा करने के बाद अगर कोई ये सोचने लगता है कि पूरा धर्म ही आतंकी है तो उसको कौन समझाने जाएगा? ऐसे लोगों को तो यही पत्थर फेंकने वाले और चोरों को बचाने वाले ही ये कहने का मौक़ा दे रहे हैं. मैं पूरी दुनिया का उदाहरण नहीं दूँगा कि कहाँ का लोन वूल्फ अटैकर किस धर्म के भगवान का नाम लेकर गोलियाँ बरसाता है, या ये कि सुसाइड व्हेस्ट पहने ख़ुद को उड़ाने वाला जिस झंडे की क़समें खाता है उस पर क्या लिखा हुआ है.
कानून व्यवस्था नहीं माननी तो ऐसी जगह आपको होना चाहिए जहाँ आपके हिसाब का कानून है. चोरों को पालना किस क़ुरान में लिखा है ये मैं जानना चाहता हूँ. मैं ये भी जानना चाहता हूँ कि और किस धर्म के मानने वाले इस तरह की संरचनाओं में रहते हैं तथा अभियुक्तों को पकड़ने आई पुलिस को खदेड़कर मारते हैं.
इसमें पैटर्न है. आपको नहीं देखना, मत देखिए. आपको लगता है कि हर मुसलमान जो चोर है, आतंकी है, जेल में है, वो सब साज़िश के तहत बंद हैं तो आपको ये सोचना चाहिए कि आख़िर ऐसा क्यों है. क्या बात है कि आज समाज ऐसी स्थिति में पहुँच गया है कि यूरोप, अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया आदि में कहीं भी बम फूटता है, आतंकी घटना होती है तो लोग, बहुत ही कन्वीनिएंटली, ये मानकर चलते हैं कि नाम तो मुसलमानों वाला ही होगा?
इसका ज़िम्मेदार कौन है? आतंकी तो मेरे लिए बराक ओबामा भी है, शी जिनपिंग भी है, पुतिन भी है, लेकिन वो अलग तरह का आतंकी है. जो एक मानी हुई परिभाषा है, उसके तहत वैश्विक आतंकवाद का ज़िम्मा एक ही धर्म के लोगों के सर क्यों है?
मेरी तो ये विचाराधारा है कि अगर हर आतंकी कार्रवाई करने वाला आदमी मुसलमान ही हो, फिर भी अगर एक भी आदमी ऐसा है जो ऐसा नहीं करता तो भी मैं पूरे धर्म के साथ आतंक को नहीं जोड़ूँगा. फिर ऐसा क्या हो जाता है कि मैं ये लेख लिख रहा हूँ जिससे आपको विश्वास हो जाएगा कि मैं बहुत बड़ा इस्लामोफोब हूँ?
मुझे ऐसे चोरों की बस्ती, ऐसे घेटो बनाकर रहने वाले अल्पसंख्यकों, ऐसे बम मारने वाले आत्मघाती हमलावरों से ज़्यादा अच्छे मुसलमानों से दिक़्क़त है जो पाँच वक़्त के नमाज़ी हैं, जो मस्जिदों में जाते हैं, धर्म की बात मानते हैं, या कम से कम ये विचार लेकर चलते हैं कि दूसरे का बुरा नहीं करेंगे, लेकिन चुप रहते हैं.
अगर आप एक धर्म से जुड़े हैं और उसकी अच्छाईयों का बखान करते हैं, आप हर बात को वैज्ञानिक बताते हैं, तो फिर आप गलत बातों पर चुप क्यों हो जाते हैं? आपको इसी घेटो में रहना कैसे पसंद आता है? आप कब तक विक्टिम राग अलापिएगा? आप कब तक ऐसे लोगों को चुनकर विधायक-सांसद बनाईएगा जो कि आपकी शिक्षा, आपकी सोच, आपकी ग़रीबी पर अपना मकड़जाल फैलाए बैठे हैं?
ऐसे समय में तो गूँगों को भी बोलना चाहिए. ऐसी समय में मेरे पड़ोस के गाँव का कोई बुज़ुर्ग मुसलमान मन मसोस कर रह जाता है कि वो किससे बोले कि ये सब इस्लाम के लिए ख़तरा है. आपके पास तो प्लेटफ़ॉर्म है, फिर आप कैसे चुप रह लेते हैं? आप ट्रिपल तलाक़, पॉलिगेमी, वैश्विक आतंकवाद, ख़िलाफ़त आदि पर ऐसी भाषा क्यों बोलते हैं जैसे कि बहुत कम घरों में ऐसा होना सही है, या ये कि हिन्दुओं में भी तो बहुत बुरी प्रथाएँ हैं! मतलब हिन्दू चोर हैं तो आपकी चोरी सही हो गई?
आप नहीं बोलिएगा तो क्या होगा वो देख लीजिए. चुप्पी को समर्थन का पर्याय माना जाता है. आप चुप हैं, इसका मतलब है आप साथ हैं. आप चिदंबरम पारिभाषित ‘सैफ्रन टेरर’ पर आर्टिकल शेयर करते हैं, और इस्लामी आतंकवाद आपको ‘आतंक का कोई धर्म नहीं होता’ लगता है तो दोगले हैं आप. आपको योगी आदित्यनाथ का वीडियो शेयर करने में बौद्धिक किक् मिलता है तो आपको ओवैसी आदि के भी शेयर करने चाहिए.
ख़ैर, विषयांतर हो गया. मेरा कहना है कि आपकी चुप्पी से इस्लाम को आत्मघाती हमलावरों से ज़्यादा नुक़सान हो रहा है. एक तरीक़े से आप भी इस्लाम के लिए आत्मघाती हमलावर ही हैं. आप इस्लाम को, जिसे आप शांति का धर्म मानते हैं, और गला फाड़कर हर आतंकी हमले के बाद चिल्लाते हैं, भीतर से खोखला कर रहे हैं चुप रहकर.
आप जिस भी देश में हैं, वहाँ का संविधान और कानून आप पर लागू होता है. आपको शरिया ही मानना है तो ज़रा ये बताईएगा कि मुसलमान बलात्कारियों को आप शरिया कानून की सज़ा देते हैं या फिर भारतीय दंड विधान का? चोरों के लिए शरिया में क्या प्रावधान है? आपके धर्म पर अगर कोई हमला बोल रहा है तो वो इस देश के हिन्दू तो बिल्कुल नहीं हैं.
इस्लाम पर हमला बोलने वाले आप ख़ुद हैं. आप चुप रहेंगे तो आपके पक्ष में हिन्दू तो नहीं बोलेगा. कम से कम वो हिन्दू तो नहीं जो हिन्दू राष्ट्र देखना चाहता है. वो नागरिक तो आपके लिए बोलने से रहा जिसे एक देश में एक ही कानून चाहिए. मैं तो बोलने से रहा क्योंकि मुझे ये दोगलापन हर रोज़ दिखता है. आपका, जो पढ़े लिखे हैं, जिनकी बात लोग सुनते हैं, जिन्हें लोग पढ़ते हैं, ऐसे मुद्दों पर चुप रहना, मस्जिद में खड़े होकर वहाँ के वैसे मुसलमानों को जान से मारना है जो पाँच वक़्त के नमाज़ी हैं, जिनके हाथों में फेसबुक नहीं है, जिनके पास वो साधन नहीं है जिससे वो ऐसी घटनाओं की निन्दा कर सकें.
अपने ही धर्म को अपनी ही चुप्पी से तबाह मत कीजिए. थोड़ी बहुत आयतें मैंने भी पढ़ी हैं, थोड़े बहुत मुसलमानों को मैं भी जानता हूँ जो मेरे अच्छे दोस्त हैं, लेकिन टाइमलाइन पर आप जैसे लोगों की कन्वीनिएंट साइलेंस आपके इरादों के बारे में बहुत कुछ कहती है. उससे मुझे, बहुसंख्यक होते हुए भी, बहुत डर लगता है क्योंकि ऐसे ही चुप लोग किसी दिन सरोजिनी नगर मार्केट में, संसद भवन के पिलर पर, पहाड़गंज के नेहरू मार्केट की डस्टबीन में, बाहरी मुद्रिका बस में सीट के नीचे बम लगा देंगे.
मेरा डर ज़ायज है क्योंकि चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है.