इन्दौर के रालामंडल अभ्यारण के पीछे करीब 8 किमी की दूरी पर एक गाँव है, जिसे “तिल्लौर” कहा जाता है. आज से दस साल पहले जब मैं इस गाँव में घूमते घूमते मोटर साईकिल से चला गया था, तो मुझे यहाँ पर 95 फ़ीसदी मकान कच्चे खपरैल के नज़र आए थे. कहा जाता है अचानक 2008 के बाद कृषि के क्षेत्र में क्रान्ति आई.
खाद, उर्वरक, कीटनाशकों के और नलकूपों से सिंचाई के बाद खेती की पैदावार में ज़बरदस्त उछाल आया. किसानों को फ़सल का पैसा भी अच्छा मिलने लगा. फिर क्या था सबकी पौ-बारह हो गई.
उसी समय क़िस्मत से इन्दौर नगर ने अपना सुरसा जैसा मुँह फैलाना शुरू कर दिया. चारों तरफ़ कॉलोनी कटने लगीं. नए नए इंजीनियरिंग कॉलेज खुलने लगे. अब तो गाँव में सबकी बल्ले बल्ले हो गई. ज़मीन की क़ीमतें एक दम आसमान छूने लगीं. आज हालत यह हो गई कि कहीं भी ज़मीन 60 लाख रूपये प्रति एकड़ से लेकर दो करोड़ रूपये प्रति एकड़ से कम नहीं है.
दस साल के बाद जब 9 अप्रेल को मैं इस गाँव में, मेरे पारिवारिक मित्र डा० आर सी वर्मा दम्पति के साथ गया, तो नज़ारा देखते ही रह गया. आज इस गाँव में कहीं कोई कच्चा मकान नज़र नहीं आया. पूरे गाँव में पक्की सीमेन्ट की सड़कें नालियाँ और दो तीन मंज़िल ऊँचे आलीशान मकान नज़र आ रहे हैं. आँखों को यक़ीन करना मुश्किल हो रहा था कि यह वही तिल्लौर गाँव है जिसे मैंने दस साल पहले देखा था.
दस साल पहले जहां गलियों में गोबर की गंध आती थी, जगह जगह गाय बैल बछड़े भैंसे नज़र आते थे. कानों में गाय बछड़े और भैंसों के पाड़ों के रम्भाने का प्राकृतिक संगीत गूँजता था, आज उन्हीं गलियों में मोटर साईकिलों और महँगी महँगी कारों के होर्न सुनाई पड़ रहे हैं. मेरी नज़रें बैल गाड़ी, हल बक्खर, गाएें, भैंसों को ढूंढ रही थी और मुझे जगह जगह गाँव के नौजवान मोबाइलों से गप्प शप्प लगाते नज़र आ रहे थे.
आधुनिकरण का आलम यह है कि अब जगह जगह डिस्क एन्टीना दिख रहे हैं , लगभग हर घर में लम्बे चौड़े एल ई डी टी वी चलते दिख रहे थे. गाँव की संकरी गलियों में शहरी पब्लिक स्कूलों की मिनी बसें भी दौड़ रही थी.
इस सब परिवर्तन को बदले भारत का नया रूप देखकर, मैं सोच रहा था कि हम इस परिवर्तन को प्रगति का द्योतक मानकर ख़ुश हों या बचपन से मेरे दिमाग़ में जमे फ़िल्मी गाँवों की मनोहारी सांस्कृतिक छवि के पतन का विकृत रूप मानकर दुखी होऊँ.
मैं इसी विचार की उधेड़बुन में किंकर्तव्यविमूड होकर विचारमग्न था कि हम अचानक खेडापति मन्दिर पहुँचे. पता लगा कि हनुमान जी सतत् निश्वार्थ सेवा करने वाले महन्त चरणदास जी का यहाँ 25 साल पहिले देहावसान इसी जगह हुआ था.
सभी ग्राम वासियों ने मिल कर इस सुरम्य स्थल पर बाबा की छत्री का निर्माण किया है. महन्त की मूर्ति जयपुर ले बनवाकर प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे है. बहुत ही भव्य आयोजन, भंडारा आदि भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.
तीन चार घन्टे ग्रामवासियों के बीच मिल जुल कर और गाँव की गली गली में घूमने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस गाँव का हर किसान जिसके पास ज़मीन है या जिसने अपनी ज़मीन बेच दी है, वह सब लोग अब लख-पति नहीं “करोड़पति ” बन गए हैं. अब तो इस गाँव में किसी भी दिशा में पत्थर फैंकियेगा वह ज़रूर इसी गाँव के किसी “करोड़ पति” कृषक के सिर पर ही जाकर गिरेगा.