बुद्ध से बड़ा क्रांतिकारी और प्रगतिशील व्यक्तित्व इधर तीन-चार हजार सालों में कोई नहीं हुआ.. आपने कभी सोचा कि जिस मिट्टी ने बुद्ध को पैदा किया उसी जगह उनका बौद्ध धर्म गायब क्यों है? ..आखिर क्या कारण हो सकता है.?
शायद नहीं सोचा होगा आपने… लेकिन आपको बताऊँ कि ये बस इसलिए हुआ कि बुद्ध ने इस राम-कृष्ण की धरती पर आस्था नामक शब्द को चोट कर दिया… पहले ईश्वर को जानकर तब मानने पर जोर दे दिया..
शुरुआत में लोग प्रभावित तो बड़े हुए.. लेकिन धीरे-धीरे वो प्रभाव कम होता चला गया.. आज ऊँगली पर गिनने लायक बौद्ध भारत में बचे हैं. जबकि जापान, चाइना और थाईलैंड, कोरिया के लिये बुद्ध से बड़ा कोई देवता नहीं है..
आपने कभी सोचा की जिस मार्क्स और लेनिन से समूची दुनिया प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी.. उसी मार्क्सवाद के गढ़ और मठ भारत में धीरे-धीरे उखड़ते क्यों चले गये? बड़े से बड़े प्रगतिशील और बड़े-बड़े कॉमरेड अपनी जमीन क्यों खोते चले गए?
कारण वही है… कॉमरेड भूल गए कि जो अपने बुद्ध का न हुआ. वो किसी दूर देश के रहने वाले मार्क्स लेनिन का क्या होगा? और ये सोचे बिना उन्होंने भारत के लोकमानस से ज्यादा दास कैपिटल पढ़ना उचित समझा… राम-कृष्ण के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाना शुरू कर दिया.. “धर्म अफीम है” आज भी उनके द्वारा कहा जाता है.
तथाकथित प्रगतिशीलता और सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दू संस्कृति, संस्कार और परम्परा को बार-बार नीचा दिखाया जाता है… ये भूलकर कि ये राम और कृष्ण की जन स्वीकार्यता की ही देन है कि उनके सबसे बड़े नेता का नाम सीताराम और पोस्टर ब्वाय का नाम कन्हैया है.. अफ़सोस अभी भी वो चेत नहीं रहे हैं…
इसलिए मैं आपसे कहता हूँ आप कितना भी प्रोग्रेसिव हो जाएं. बुद्धिजीवी हो जाएं… पढ़-लिख लें.. आपका अस्तित्व इस देश के लोकमानस के जुड़ाव में निहित है.. उसका सम्मान आपने नहीं किया तो आपका इस माटी से उखड़ना तय है..
यहाँ जमना है तो राम नाम जपना ही पड़ेगा.. वरना जिसने बुद्ध और मार्क्स को उखाड़ दिया वो आपको क्या समझेगा.. आप गरीबी, अशिक्षा और बौद्धिकता प्रगतिशीलता का लम्बा-चौड़ा उपदेश देकर कभी भी इसको मिटा नहीं सकते.
श्रद्धा और आस्था इस माटी की सबसे मजबूत ताकत है.. जिसके राम और कृष्ण स्तम्भ हैं…
राम सिर्फ भगवान नहीं वो हमारी सनातन संस्कृति के प्रतीक पुरुष हैं.. राम हमारे चित्त की अवस्था हैं.. उनका सम्मान हमारी आत्मा का सम्मान है.