ये ‘पोएटिक जस्टिस’ नहीं तो और क्या है कि देश के मजदूरों को सत्तर सालों से समृद्धि के खोखले सपने दिखा कर बरगलाने वाले कम्युनिस्टों की स्वयं की पार्टी आज खाने तक के पैसों की तंगहाली में आ गयी है.
पैंतीस सालों में पहली बार “कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (एम)” ने बंगाल में रैली-धरनों में शामिल होने वाले कैडरों को निर्देश दिए हैं कि धरनों के दौरान उनके लिए खाने के पैकेट्स – जो अब तक ‘पार्टी’ ही मुहैया कराती आयी थी – अब ‘पार्टी’, अपनी आर्थिक बदहाली के कारण, मुहैया नहीं करा पाएगी; कैडर अपना इन्तेजाम स्वयं करें.
उन्नत अर्थतंत्र के खोखले सपने दिखाने वाली इस ‘आइडियोलॉजी’ ने दुनिया के कई देशों के अर्थतंत्र को अनर्थ-तंत्र में बदल कर उन्हें भुखमरी के कगार पर ला खड़ा किया.
हिन्दुस्तान की बात करें तो पश्चिम बंगाल में दशकों तक उसी ‘आइडियोलॉजी’ वाली कम्युनिस्ट-सरकार ने सूबे की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट कर दिया. आज खुद के दफ्तर में खाने तक कि तंगी हो गयी.
आश्चर्य है कि इनके नेतागण और युनिवर्सिटियों-शोध संस्थानों आदि में कुछ “प्रोफेसरों” और “बुद्धिजीवियों” की शक्ल में छुपे इनके “एजेंट” आज भी ‘अर्थ-व्यवस्था’ और ‘प्रशासन’ जैसे विषयों पर बड़े बड़े भाषण देते फिरते हैं.
अरे बरखुरदार, पहले अपने घर की ‘इकॉनमी’ तो ठीक कर लो. कमाल है, घर में नहीं दाने अम्मा चलीं भुनाने !
(सीपीएम-निर्देश का तथ्य-स्त्रोत : इकोनॉमिक टाइम्स ऑफ़ इंडिया, 10/4/17)