ब्रेड का केंसर पैदा करने वाला रसायन बनता है मनुष्य, सुअर, कुत्ते, बन्दर के बालों से!

फ्रांस की अन्तर्राष्ट्रीय केंसर रिसर्च संस्था ने 1990 में एक लम्बे अध्ययन के बाद घोषणा की कि ‘ड़बलऱोटी-ब्रेड’ बनाने में पोटेशियम ब्रोमेट या पोटेशियम आयोडेट नाम के रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इन रसायनों का अगर एक लाखवां अंश भी ब्रेड़ में रह जाए तो उसके लम्बे समय के उपयोग के बाद केन्सर की जानलेवा बीमारी हो जाती है.

इस नई रिसर्च के बाद पूरी दुनिया के अनेक देशों ने ब्रेड बनाने वाली फेक्ट्रियों में इस रसायन के उपयोग पर बन्दिश लगा दी.

पोटेशियम ब्रोमेट, जिसे रसायन शास्त्र में KBrO3 के नाम से जाना जाता है, बहुत ही खतरनाक रसायन है. इसे केटेगरी 2B नामक केन्सर पैदा करने वाले कारसोजेनिक पदार्थों की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है.

भारत में 20 जून 2016 के बाद इस पदार्थ का ब्रेड बनाने में उपयोग करने पर पूरी तरह बंदिश लगा दी गई है. पर अभी खुले आम बाजारों में जो ब्रेड बेची जा रही है उसके बनाने में फेक्टरियां इस जहरीले रसायन का उपयोग कर रही हैं. उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है.

असली में जिन उत्तरदायी अधिकारियों को इसे रोकना चाहिये उन्हें इसकी कोई अधिकृत तकनीकी या वैधानिक जानकारी भी नहीं है कि क्या सचमुच भारत सरकार ने इस रसायन के उपयोग की मनाही का आदेश जारी किया है?

इतना ही नहीं खाद्य पदार्थों में उपयोग में लाये जा रहे रसायनों की जांच करने के लिए आवश्यक प्रयोगशाला पूरे मध्यप्रदेश में कहीं भी मौजूद नहीं है. जिन सरकारी एजन्सियों को इसकी जांच पड़ताड की जिम्मेदारी है उनकी अपनी कोई आधुनिक सुविधाओं युक्त प्रयोगशाला नहीं है. जो बरायेनाम प्रयोगशालाएं मध्यप्रदेश में हैं उनमें अधिकृत रूप से इस तरह की जांच करने का कोई प्रावधान या उपकरण भी मौजूद नहीं है.

पूरे यूरोप में, अर्जेन्टाईना, ब्राझील, कनाड़ा, नाइजीरिया, कोरिया, पेरू आदि 107 देशों में ब्रेड बनाने के लिए पोटेशियम ब्रोमेट के उपयोग को संघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है. श्रीलंका में सन् 2001 से और चीन जैसे देश में आज से 12 साल पहले से इसके उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा है. कानूनी तौर पर इन देशों में ब्रेड के रेपर पर यह लिखना अनिवार्य है कि इस प्रोडक्ट में पोटेशियम ब्रोमेट या पोटेशियम आयोडेट रसायनों का उपयोग नहीं किया गया है.

किसी जमाने में ड़बल रोटी ब्रेड बनाने में आटा, मैदा, पानी, दूध, अंड़ा, शक्कर, रंग, वसा आदि मिलाकर रात भर सड़ाकर खमीर उठाना पड़ता था. अब जब फेक्टरियों में ब्रेड बनने लगी है तो पूरी प्रक्रिया में महज चार घण्टे लगते है और स्वचालित plants से ब्रेड़ कटकर पैक होकर सीधे विक्रेताओं के पास बिकने के लिये चली जाती है.

“ब्रेड मेकिंग टेक्नॉलाजी” नामक पुस्तक में वुल्फ डोइरी नामक लेखक (1995) ने विस्तार से ब्रेड बनाने की क्रियाओं को समझाया है. इसमें बताया गया है कि ब्रेड निर्माण में चार महत्वपूर्ण स्तर होते हैं। उनमें आक्सीडाईजिंग तत्व मिलाकर, ब्रेड की लोई को ताकत देकर लचीला बनाया जाता है, फिर रिड्युसिंग क्रिया में ग्युलिटिन प्रोसेसिंग होता है, तथा मिश्रण को फैंट कर झाग उत्पन्न करते है. और अन्त में एन्जाइम पैदा करके ब्रेड पकाने के समय खमीर को उठा कर ब्रेड का आकार दे दिया जाता है.

इन सब क्रियाओं के दौरान ब्रेड की शक्ल बनाने के लिये खमीर की सडांध दूर करने के लिये पकाने के पहले फ्लेवर, सुगन्ध भी मिलाई जाती है, रंग मिलाया जाता है. Fungal Infection, चीजों के सड़ने के बाद अक्सर होने लगते हैं.

चूंकि ब्रेड को बनाते समय मैदा को सड़ा कर खमीर उठाते हैं, इस खमीर में फंगस न लगे इस हेतु कुछ रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है. सादा ब्रेड अगर खाने के पहले खुले में रखी रहे तो चार घण्टों में सड़ जावेगी. सड़ने से बचाने के लिये ब्रेड पर केल्सियम प्रोपिओनेट रसायन का इस्तेमाल करते हैं.

पर यह रसायन महंगा है और अधिक समय तक ब्रेड को सुरक्षित नहीं करता. इस लिये “पोटेशियम ब्रोमेट तथा पोटेशियम आयोडेट ” को मिलाया जाता है. इनके मिश्रण से एझोडायकारबोनामाइड़ अर्थात ADA नामक पदार्थ बन जाता है. साथ ही खमीर की खटाई से एल एसकॉरबिक अम्ल जिसे विटामिन सी कहते हैं बन जाता है.

इनकी अधिकतम नुकसान नहीं करने वाली मात्रा 4.5PPM तथा 75PPM निर्धारित की गई है. किन्तु यह पाया गया है कि ब्रेड कितनी भी होशियारी से क्यों न बनाई जावे उसमे KBrO3 का थोड़ा अंश बिना किसी क्रिया के साबुत बच जाता है, और यही बचा हुआ रसायन ब्रेड के साथ पेट में जाकर विभिन्न प्रकार के केन्सर उत्पन्न करता है.

बाजारों में तरह तरह की ब्रेड उपलब्ध हैं जिनमें पाव भाजी बनाने की ब्रेड, बन आदि प्रमुख हैं. इनकी खासियत यह है कि कई दिनों तक इनको खुले में रखा जाने पर भी यह खराब नहीं होती. इनको अधिक समय तक सुरक्षित करने के लिए जिस रसायन का उपयोग किया उसके बारे में सुनने के बाद आप कभी पाव भाजी या बन खाना कभी भी पसन्द नहीं करेंगे.

उस रसायन का नाम है, “एल-सिस्टीन ” L-Cysteine. इस रसायन को पूरी दुनिया में सप्लाय करने वाला मुल्क चीन है. एल-सिस्टीन मनुष्य के बालों से, सूअर, कुत्ते, रींछ, बन्दर के बालों से बनाया जाता है.

बालों में अनावश्यक या अनचाहे अमीनो अम्ल की मौजूदगी होती है. इन्हें नॉन इसेन्सियल अमीनो एसिड कहा जाता है. इन बालों को जब हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में गलाया जाता है तो उसको फिल्टर करके एल-सिस्टीन नामक पदार्थ निकल जाता है.

इस सिस्टीन को मिलाने से ब्रेड को चमकदार चिकनी आकर्षक बनाकर हफ्तों तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है. सिस्टीन बनाने के लिये चीन में हे्अर कटिंग सेलून और ब्यूटी पार्लरों के यहाँ आदमियों के कटे हुए बालों को कचरे में नहीं फेंका जाता, बल्कि उन्हें इकट्ठा करके सिस्टीन बनाने बालों को बेच दिया जाता है.

अब जरा आप सोचिये आप फाईव स्टार होटल में जिस स्टार्टर के साथ लन्च डिनर लेने जा रहे है उसकी ब्रेड, बन में न जाने किस चीनी महिला की जुएँ भरे बालों से बने सिस्टीन रसायन का लेप होगा. यह भी सम्भव है वह सिस्टीन किसी खजले कुत्ते या बदबूदार सूअर के बालों से बनाया गया हो. क्या अब भी आप ऐसे ब्रेड़ को खाना पसन्द करेंगे?

अपने देश की फूड सेफ्टी एन्ड स्टेंडर्ड अथारिटी आफ इन्डिया FSSAI के प्रमुख पवन कुमार अग्रवाल के अनुसार हमारे यहाँ ब्रेड और ब्रेड पर आधारित लगभग ग्यारह हजार व्यन्जन ऐसे हैं जिनमें पोटेशियम ब्रोमेट का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसकी मात्रा निर्धारित मात्रा 22.54PPM से अधिक होने पर न्युरोलाजीकल गडबडिया, मन्दबुद्धि , डी एन ए की क्षति तथा कम सुनाई देने की परेशानी हो जाती है.

हमारे देश में विदेशी कम्पनियां सहित 90 बड़ी ब्रेड बनाने की फेक्टरियां हैं. स्थानीय स्तर पर हज़ारों छोटी कम्पनियां भी हैं जहां आज भी पोटेशियम ब्रोमेट का खुलेआम उपयोग किया जा रहा है. विभिन्न सरकारी जांच ऐजन्सियों ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को सूचित किया है ब्रेड, बन, पाव की डबल रोटी वाले सेम्पलों में 84% सेम्पलों मे पोटोशियम ब्रोमेट की मात्रा मानकों से अधिक पाई गई है.

क्या सरकारी तन्त्र की कुंभकरणीय निन्द्रा अब भविष्य में जल्दी ही टूटेगी और जन जीवन को मौत के मुंह में ढकेल रहे इन मौत के सौदागरों से आम आदमी की जान बचाने की कोई सार्थक पहल हो सकेगी?

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