प्रेम और चिड़िया

मेरी सबसे बड़ी बदनसीबी यही थी
कि तुम मेरे सामने उठकर चले गए
लेकिन मैं उस वक्त रो नहीं सकती थी

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काम कभी इतना उबाऊ हो जाता है कि हम उसे न करने के कारण और उसे करते रहने की वजहें तलाशने लगते हैं… मैं सिस्टम लॉग ऑफ करके बाहर आई तो खिड़की के ग्लास से देखती हूं कि एक छोटी-सी चिडिय़ा ऑफिस के कॉरिडॉर में आ गई है.

मैं दातों में पैंसिल दबाए कुछ देर उसे ताकती रहती हूं. क्यों कोई किसी अनजान जगह पर चला आता है, अजनबियों के बीच. मैं उस चिडिय़ा को देखकर मुस्कुरा देती हूं उसे अजनबी न रहने देने के लिए.

वह चिडिय़ा इधर से उधर करतब करती है, कूदती-फांदती रहती है. मैं उसे देखते हुए अपने काम से ध्यान हटा लेती हूं. आह प्रेम कितनी सुखद चीज है, कोई और काम जरूरी नहीं लगता. अब मैं उसे बारीकी से देख रही हूं, उसकी आखें, चोंच, पंख सब. अब मुझे वो स्लेटी रंग की चिडिय़ा खूबसूरत लगने लगी है. मुझे उसकी नादानियां अच्छी लगने लगी हैं.

मैं चाहती हूं कि इस वक्त वो मेरे पास आ जाए, मैं उसे प्रेम करना चाहती हूं. प्रेम के जन्म लेते ही वात्सल्य, लालच और अभिलाषाएं अपने आप ही जाग जाती हैं. ये ठीक वैसा ही है जब उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर कहा था कि मैं तुमको छूकर महसूस करना चाहता हूं.

अचानक उसका दिखाई देना मुझे बंद हो जाता है. मैं दौड़कर वहां जाती हूं तो देखती हूं कि कॉरिडोर के पंखे से टकराकर वह निस्तब्ध पड़ी है. मैं घबरा जाती हूं, मैं उसके न होने की पीड़ा से सिहर उठती हूं. मैं उसे अपनी हथेलियों में छिपाना चाहती हूं, उसके घावों को ठीककरना चाहती हूं, उसकी रक्षक बनकर उसे हर जोखिम से बचाना चाहती हूं.

पर ये सब मुझे दो पल पहले करना चाहिए था. इसी तरह मैं न जाने कितने रिश्ते जीवन में बचाकर रख सकती थी, उन्हें जाने से रोक सकती थी, पर मैं ऐसा नहीं कर सकी. किसी के जाने के बाद उसे खो देने के अहसास को जीना ही क्या सबसे असहनीय पीड़ा है.

मेरी आखें भर आई हैं. पर मैं उसके न होने पर चीख-चीख कर नहीं रो सकती. शायद उसके न होने का इतना बड़ा दुख करना मुझे औरों के सामने छोटा बना देगा. मेरी आंसूओं से भरी आखों में इस वक्त जो सबसे हल्की चीज तैर रही है, वह अहंकार है. हाय, बदनसीब लड़की, शायद इसीलिए उस नन्हीं-सी जान के नसीब में लिखी होगी मृत्यु मुझे उसे इस तरह फडफ़ड़ता देखकर भी न बचा पाने से दुर्भाग्यशाली हो जाने के लिए.

कुछ लोग उसे उठाकर बाहर की ओर चल दिए हैं. मैं नहीं जानती वे अब उसका क्या करेंगे, मैं केवल यह जानना चाहती हूं कि कि वह क्यों आई ऑफिस के इस क्रूर कॉरिडर में, जहां उसे कोई प्रेम नहीं करता. प्रेम कितनी जरूरी चीज है खुद के कहीं होने के लिए.

लौट आने जैसे चमत्कार नहीं हुआ करते. प्रतीक्षाएं उमर को कम कर देती हैं. जाने कौन-सा दुख इस वक्त ज्यादा बड़ा है कि मैं उसे जाने से रोक सकती थी या मैं उसके जाने पर फूटकर रो सकती थी.

प्रेम में किसी को खो देना और फिर खुद को मजबूत दिखाते रहना, दोनों ही कष्टदायक हैं. मैं इस वक्त जिस आदमी से प्रेम करने लगी हूं, क्या उसके मुझे कैद करने से पहले मैं भी यूं ही फडफड़ाकर मर जाऊंगी. आह खुदगर्ज दिल, इसे मौत से नहीं, उसके बिना मिली मौत से डर लगता है.

जो तकलीफें क्षणिक होती हैं, उन्हें सहेज कर नहीं रखा जाता. फिर भी आज मैंने सारे पंखे बंद कर दिए हैं.

– एकता नाहर

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