अभी कुछ दिन पहले किसी ने मुझे ‘गौरवशाली बिहार’ नाम के एक whatsapp ग्रुप से जोड़ दिया. ये ग्रुप बिहार के कुछ किशोर-किशोरियों द्वारा चलाया जा रहा था,
बिहार के गौरव से जुड़ी कई चीज़ें ग्रुप में शेयर होतीं थीं पर एक पोस्ट ने मुझे व्यथित कर दिया. कन्हैया कुमार के फोटो के साथ लिखा हुआ था, “एक बिहारी सब पर भारी” और कन्हैया के फोटो के नीचे मोदी और अमित शाह की तस्वीर थी.
उस पोस्टर का मतलब था कि मोदी और शाह की धाकड़ जोड़ी भी एक अदने से बिहारी छोकरे का कुछ नहीं बिगाड़ पाई.
ऐसा नहीं है कि ये ग्रुप किसी वामपंथी द्वारा संचालित थी, ग्रुप के कई पोस्ट मोदी-शाह-योगी और भाजपा प्रेम से भी भरी थीं पर ग्रुप चलाने वाले या ग्रुप के सदस्य किशोर-किशोरियों में ये समझ नहीं थी कि कन्हैया कुमार कौन है और उसको प्रमोट करने के क्या नुकसान है.
संभवतः वो मेरी या आपकी तरह दक्षिणपंथ और वामपंथ का फर्क भी नहीं जानते होंगें, कन्हैया को “एक बिहारी सब पर भारी” बताने वाली पोस्ट शेयर करने वाले या उसे लाइक करने वाले गद्दार या देशद्रोही भी नहीं थे, न ही आइसा या SFI के सदस्य थे, पर तब भी कन्हैया कुमार उनके लिये हीरो था.
वो उनके लिये इसलिये हीरो था क्योंकि जेल से निकलने के बाद देश की सारी मीडिया उसके आगे माइक लेकर खड़ी थी, टीवी चैनलों में उससे एक बाईट लेने के लिये आपाधापी मची थी, फिर जब उसने माइक थामा तो मोदी से लेकर स्मृति ईरानी और पूरी संघ-भाजपा विचार-धारा का माखौल बना कर रख दिया.
सारा देश उसे भले घृणा से देख रहा था पर हमसे-आपसे अलग भी एक पूरी पीढ़ी थी जो उसमें उस हीरो को देख रही थी जो जमानत पर छूटा था, जिस पर देशद्रोह का आरोप था पर तब भी बेख़ौफ़-बेलगाम किसी सुपरहीरो या एंग्री यंग मैन की तरह देश के सबसे ताकतवर आदमी को ललकारते हुए उसका मखौल उड़ा रहा था और मीडिया की आँखों का तारा बना हुआ था.
सवाल ये है कि कन्हैया जैसे अदने से टुच्चे को हीरो किसने बनाया? उसे हीरो बनाया एक कथित राष्ट्रवादी पार्टी के क्षणिक स्वार्थ ने, जिसने कन्हैया कुमार की गद्दारी में भी एक अवसर देख लिया, एक मौका खोज लिया खुद की ज़मीन बनाने की.
पठानकोट हमले के समय एक न्यूज़ चैनल लगातार पाकिस्तान की तरफ से रिपोर्टिंग करता रहा पर आपने उस पर एक दिन का भी प्रतिबंध नहीं लगाया. आपने प्रतिबंध इसलिये नहीं लगाया कि आप ऐसा नहीं कर सकते थे, आपने उसे इसलिये छोड़ दिया क्योंकि आपको ये लगता रहा कि इसका विरोध हमारे जमीन को विस्तार देगा.
आप बेशक अपनी पार्टी को इस दुनिया क्या पूरे ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी बनाइये पर देशद्रोहियों को बढ़ावा देकर नहीं.
कन्हैया कुमार प्रकरण ने भले ही लाखों भाजपा-समर्थक बढ़ा दिये हों पर उसकी हिमाकत और उस पर आपकी बेबसी तथा अकर्मण्यता ने अगर कन्हैया को हीरो मानने वाला एक व्यक्ति भी पैदा कर दिया तो ये देश के लिये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि लाखों देशभक्त मिलकर देश का उतना भला नहीं कर सकते जितना एक गद्दार नुकसान कर देता है.
दुर्भाग्य ये है कि आपके नकारेपन ने गद्दारों के ऐसे कई प्रशंसक खड़े कर दिये हैं जिनसे आये दिन हमें दो-चार होना पड़ता है. अगर मैं भाजपा समर्थक होकर सोचता हूँ तो मुझे ये पता है कि इन गद्दारों की गद्दारी ने बेशक भाजपा विचार को विस्तार दिया है पर अगर एक राष्ट्र-भक्त होकर सोचता हूँ तो इनकी गद्दारी पर आपके मौन ने मुझे शर्मिंदा ही किया है.
अफज़ल गुरु की फांसी पर अगर तुरंत फैसला हुआ होता तो आज उसके लिये देश में नारे नहीं लग रहे होते. पार्टी या व्यक्ति-हित सोचे बिना हर देश-द्रोही का निर्ममता-पूर्वक समय रहते दमन हो, ये हर सच्चे-राष्ट्र-भक्त की भावना है, इसका सम्मान करिये अन्यथा अगर दल का और अपना क्षणिक लाभ देखना है, फिर तो और बात है.