उत्तर प्रदेश में मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के अब तक के गिनती के दिनों के काम , परिणाम और आज विभिन्न चैनलों पर आए इंटरव्यू को आधार मानें तो यह गैर भाजपाई राजनीतिक दलों के लिए खतरे की घंटी है, बड़ी चुनौती है. इसलिए कि उत्तर प्रदेश की राजनीति बदल चुकी है. आमूल-चूल बदल गई है.
किसान, शिक्षा, चिकित्सा, क़ानून व्यवस्था आदि पर नई सरकार का विजन बहुत साफ है. किसानों की कर्ज माफी के बाद अगर गेहूं ख़रीद में भी यह सरकार सफल हो गई तो कृषक समाज में इस सरकार की लोकप्रियता का जो मंज़र सामने आएगा तो प्रतिपक्ष को सांप सूंघने के सिवाय कोई चारा नहीं होगा.
इस सब से भी बड़ी बात है कि योगी ने अपनी जुबान पर लगाम लगा ली है. बॉडी लैंग्वेज बदल ली है. आक्रामकता अब तर्क में तब्दील है.
गरज यह कि प्रतिपक्ष के लिए अब बहुत कठिन है डगर पनघट की. सेक्यूलर, संघी आदि की लफ्फाजी वाली राजनीति, यादव, दलित के नाम पर जाति-पाति के लूट वाली राजनीति, राजनीति के चोले में ठेकेदारी वाली राजनीति अब विदा हो चुकी है, प्रतिपक्ष को इस बात को गंभीरता से समझ लेना चाहिए.
पारदर्शिता अब राजनीति की पहली शर्त बन गई है. सो ज़मीनी राजनीति पर आए बिना अब गुज़ारा नहीं है. NGO वाले राजनीतिक लफ्फाज भी ध्यान दें, उन की दुकान का शटर भी बस गिरने वाला है.