चोर को गली मोहल्ले के लोग पकड़ते हैं और जोश में आकर पीट डालते हैं और चोर मर जाता है….
नौकर चोरी कर लेता है या साधारण गलती करता है मालिक गुस्से में ऐसा पीटता है नौकर मर जाता है….
जेबकट भी भीड़ के गुस्से का शिकार हो जान से हाथ धो बैठता है….
ऐसे मामले अखबारों में तो डबल कॉलम की जगह पा जाते हैं…. लेकिन टीवी पर बहस में आना तो दूर स्क्रीन में नीचे, पट्टी में चलने वाली लाईन भी नहीं बन पाते….
हाँ, रेप की घटना पर भीड़ की पिटाई से अभियुक्त मर जाय तो टीवी पर शाबासी दी जाती है….
तो आखिर अलवर गौ तस्कर काण्ड काण्ड में ऐसा क्या हुआ जो टीवी वाले और वामी शेखू नेताओं के घर सूतक लग गए….
क्या वो गौ तस्कर गोली से मारा गया है…. बम से उड़ाया गया है…. चाकू घोंपा गया है…. छुरी से अंतड़ियां निकाली गयीं हैं!
कैसे मारा गया है वो!
क्या भीड़ का अपराध 302 का है…. मामला तो निश्चित ही 304 का ही है ना!
और जिन लोगों ने किया है उनको कोई भी हिन्दू बचा रहा है? कोई भी उनके गुस्से को सराह रहा है?
निर्दोषिता की आड़ लेकर क्या उस कृत्य को छुपा सकते हो कि वो ना सही, उसके दूसरे साथी तो करोड़ों हिंदुओं की आस्था और देश के कानून से खिलवाड़ कर ही रहे थे ना!
कोई एक शेखू वामी तो ह्त्या पर विलाप के साथ हत्या के लिए ले जाई जा रही गौ तस्करी की निंदा करता दिखता….
अंततः गौ हमारी माता ही है…. जो हमारी माँ की हत्या का प्रयास करेगा उसकी गैर इरादतन हत्या हो जाय…. तो क्या पूरा समाज, पूरी पार्टी, पूरी सरकार, पूरी विचारधारा को फांसी पर चढ़ा दोगे!