समाज का निर्माण मूल रूप से समानता के सिद्धांत पर हुआ. प्रजातंत्र में संविधान भी इसी मूल सिद्धांत पर लिखा गया. सबको समान अधिकार, समान सुरक्षा, समान स्वतन्त्रता, वो भी हर क्षेत्र में, फिर चाहे वो धार्मिक समाजिक राजनैतिक हो या आर्थिक या न्यायिक भी या फिर कोई भी.
किसी में कोई भी किसी तरह का भेद नहीं किया जा सकता, ना रंग का, ना भाषा का, ना नस्ल का, ना क्षेत्र का, ना लिंग का. आखिरकार क्यों? क्योंकि असमानता से असन्तोष उत्पन्न होता है जो फिर आक्रोश पैदा करता है.
जहां जिस भी देश समाज राज्य में ऐसा होता है तो वहाँ आक्रोश क्रांति में परिवर्तित होता रहा है. जो फिर तत्कालीन व्यवस्था को बदल देता है, इसी समानता के लिए. अरे बड़ी बात छोड़िये, जब एक परिवार में बच्चों के बीच भेदभाव या असमानता की जाती है तो बच्चा भी विद्रोही हो जाता है.
यहाँ तक की धर्म भी समानता की बात ही करता है. और जहां ये नहीं मिलता वहां घुटन होती है जो फिर अधर्म करने के लिए प्रेरित करती है. समानता की बात से तो वामपंथी भी इनकार नहीं कर सकते. समाजवाद तो बना ही समानता को लेकर है.
रूस की क्रांति के पीछे भी शासक और शासित के बीच बढ़ती असमानता ही थी. मार्टिन लूथर की लड़ाई भी नस्लवाद में छिपी असमानता के विरोध को लेकर ही थी. प्रजातंत्र में सबको एक ही वोट का अधिकार होता है तो सजा भी एक जैसी मिलती है.
क़ानून सब के लिए समान है और ये तथ्य और तर्क से सभी वकील सहमत होंगे, खासकर प्रशांत भूषण तो अच्छी तरह इसे समझते भी होंगे. और वो यह भी जानते होंगे कि जब जब कानून का पालन एक समान नहीं होता तो प्रजा में गुस्सा पलता है. जिसका विस्फोट फिर विनाशकारी ही होता है, जिसके दुष्परिणाम का सही सही अंदाज लगाना तक मुश्किल काम है.
राजाओं के महलों की ऊंची ऊंची दीवारें तोड़ दी गयीं. तानाशाहों के लोहे के विशाल गेट जबरन खुलवा दिए गए. सब को मिट्टी में मिलते इतिहास ने कई बार देखा है. असमानता तो प्रजातंत्र में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच भी नहीं की जा सकती. पिछले दिनों इसके कई प्रमाण मिले, जब अल्पसंख्यक के तुष्टिकरण के कारण कई राजनेता चुनाव हार गए. यह सब इस बात को दर्शाता है कि व्यक्ति असमानता कभी बर्दाश्त नहीं करता.
यह तीन तलाक का क्या मामला है? असमानता का ही तो है. स्त्री भी पुरुष की तरह ही तलाक लेने-देने पर बराबर का हक़ चाहती है.
क्या आप बर्दाश्त कर पाओगे कि दूसरे धर्म के धार्मिक स्थान पर लाउड स्पीकर बजाने की छूट हो मगर आप के देवालय में नहीं? अगर कोई सरकार ऐसा करती है तो वो प्रजा के द्वारा हटा दी जाती है. ऐसे और भी अनगिनत उदाहरण यहाँ दिए जा सकते हैं.
ठीक इसी तरह, जब यह सवाल ऊपर पूछा गया कि प्रशांत भूषण और कमलेश तिवारी में क्या कोई असमानता है? यहाँ यह सवाल दोनों के द्वारा दिए गए कथन को लेकर है. क्या प्रशांत भूषण और कमलेश तिवारी के कथनों में कोई असमानता है? नहीं! बल्कि दोनों पूरी तरह से समान है. तो फिर दोनों के साथ किये जाने वाले सलूक के साथ असमानता क्यों?
क्या दो धर्मो के भगवान में असमानता है? क्या दो धर्म असमान हैं? क्या दो धर्मो के लोगों की भावना असमान है? क्या दोनों धर्मो की आस्था असमान है? नहीं! बिलकुल नहीं! दोनों धर्म को मानने वाले दोनों तरफ इंसान ही है. तो दोनों वर्ग की भावना भी आस्था भी विश्वास भी एक समान है.
दोनों वर्ग एक जैसे ही आहत हुए हैं. दोनों वर्ग को जो ठेस पहुँची वो भी एक समान है. जब सबकुछ एक समान है तो हमें पूर्ण विश्वास है कि जो भी कमलेश तिवारी के साथ हुआ वो प्रशांत भूषण के साथ भी होगा. हम तो सिर्फ ये देखना चाहते हैं की ये समानता कब की जाएगी? और अगर यहाँ असमानता की जाती है तो फिर उसके दुष्परिणाम के लिए देश-समाज-समय सबको तैयार रहना होगा!