इधर अतीत की खिड़कीयों से जब स्मृति की हवा टकराती है तो न जाने कितने राग कितने ताल और कितनी बंदिशें आत्मा के तार से टकरानें लगती हैं. याद नहीं बिना खाये कितनी रातें गुजार दीं सिर्फ नुसरत को सुनकर… वो फौलादी आवाज जो गरजते हुए पूछती..
“तुम जो चले आते हो मस्जिद में अता करने नमाज़
तुमको मालूम है कितनों की क़ज़ा होती है…” ?
उफ़्फ़ !
कितने दिन निकल गए मेहँदी हसन को सुनते हुए.. वो छोटे सिलेंडर पर बने अधपके चावल में जरा सा नमक डालकर मुंह बनाते हुए आम का अचार खोजना.. फिर आँख बन्दकर कर खाते हुए अपने नोकिया 5300 की म्यूजिक गैलरी में मेहदी हसन से मिलना..
“एक हमें दीवाना कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनिया वाले दिलवालों को और बहुत कुछ कहते हैं”
कभी बनारस के घाटों की वो शाम. ऊबकर हरीशचन्द्र घाट पर बैठ जाना… और जीवन-मृत्यु के घटते फासले को महसूस करना.. फिर मोबाइल में कुमार गन्धर्व को खोजते हुए खो जाना……
“निर्भय निरगुन गुन रे गाऊंगा..”
और रात होते ही चले जाना नींद की आगोश में.. सुबह उठते तो पता चलता. चिड़ियों की चहचह और भोर वाली हवा की महकती सुगन्ध में एक आवाज और आ रही.
“म्हारों प्रणाम.. बांके बिहारी जी…”
उतनी खूबसूरत सुबह आज तक नहीं हुई.. बांके बिहारी के दर्शन की अभिलाषा आज तक दिल में कहीं दबी है.. लेकिन जब-जब किशोरी ताई से सुना तब-तब काशी की गलियों में ख़ाक छान रहा ये चंचल मन वृन्दावन हो गया..
आज उनका यूँ चले जाना.. आँखों को गीला कर रहा है. . गायक होना आसान है.. किशोरी अमोनकर होना नहीं. वहां असीम त्याग है..साधना की पराकाष्ठा है. समर्पण का पहाड़ और अध्यात्म का हिमालय है..
उनकी आवाज सिर्फ आवाज़ नहीं.. वो साधुता की सुगन्ध है.. जब भी गूंजती है.. ऐसा लगता है मानों बुद्ध ध्यान करने बैठे हों और आनंद ने धरती का सबसे सुगन्धित धूप जला दिया हो.
कहते हैं जो चीज दिल को छू जाती वो यादों में शामिल हो जाती है.. मेरे साथ कुछ ऐसा ही है.. शायद आखिरी साँस तक किशोरी अमोनकर रिपीट मोड में बजती रहेंगी.. उस अनहद नाद की तरह.. जो इस अस्तित्व में अभी भी बज रहा..
बार-बार नमन…