बात फरवरी 2015 की है, 2008 में स्वामी ध्यान विनय के पास आ जाने के बाद पूरे सात साल बाद अपनी जन्मभूमि इंदौर जा रही थी अपने जन्मदाता यानी पिता से मिलने..
अपनी हर यात्रा के बाद जिस तरह मैं यात्रा वृतांत लिखती हूँ कुछ उसी तरह अपनी दो दिन की इंदौर यात्रा का भी मैंने सोशल मीडिया पर यात्रा वृतांत लिखा था.
बहुत से लोगों ने उस यात्रा का और मेरे लेख का खूब मज़ाक बनाया था, ये कहते हुए कि किसी काम से की गयी अपनी व्यक्तिगत यात्रा लिखने का क्या औचित्य. खासकर यात्रा के उस भाग पर तो लोगों ने खूब आलोचना की थी, जिसमें मैंने शौचालय का ज़िक्र किया था….
मेरे लेख में अक्सर आध्यात्मिक अनुभवों का समावेश होता है लेकिन इस यात्रा में मैंने इंदौर के मोती तबेला क्षेत्र में बिताए अपने बचपन का वर्णन किया था. खैर पहले उस यात्रा का यह हिस्सा पढ़िए फिर इससे जुड़ा एक अद्भुत किस्सा सुनाती हूँ…
इंदौर यात्रा – तीसरी रील
*************************
रात की लम्बी यात्रा के बाद सूरज इंदौर की ओर से निकलता दिखाई दिया… ट्रेन इंदौर स्टेशन पर पहुँचने वाली है… थोड़ी सी यात्रा और बची है…
लग रहा है बचपन की साँसें दोबारा मिल रही है और मन माँ की गोद में चढ़ जाने को मचल रहा है.
भविष्य के गर्भ में मेरे लिए न जाने कितने सरप्राइज छुपे हैं, मैं नहीं जानती….
उत्साहित हूँ , बहुत उत्साहित….
मैं आ रही हूँ इंदौर… मेरे इंदौर…
इंदौर ने हाथ हिलाकर स्वागत किया…
दूर बाइक पर पता नहीं कौन जा रहा था… ट्रेन देखकर बच्चों जैसे हाथ हिलाने लगा… तो मैंने भी ये सोचकर जवाब में हाथ हिला दिया कि शायद मेरा इंदौर ही हो हाथ हिलाकर स्वागत कर रहा है…
ट्रेन की खिड़की से सुबह सुबह आसमान को तकते रहो तो लगता है वाह जीवन में इससे अधिक सुन्दर कोई दृश्य हो ही नहीं सकता… लेकिन यदि आपकी नज़र ज़रा भी ज़मीन की ओर गई तो आपको विद्या बालन ज़रूर याद आएगी एकदम सत्य बात कहते हुए .. “जहां सोच वहाँ शौचालय”… हमारे देश के लिए इससे अधिक सटीक बात कोई और हो ही नहीं सकती… जहां सोच लिया वहीं शौचालय बन गया…
शैफाली, ज्यादा कायनाती बातें किसी को हजम नहीं होती… तुम्हारे सामने जब जब ज़िंदगी का सच नंगा होकर खड़ा हो जाता है… अपने दिल पर हाथ रखकर सच्ची सच्ची बताना तब भी क्या तुम उसी भावदशा में रह पाती हो???
तब भी क्या तुम कह पाती हो.. “आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे….. बोलो देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुए…”
सच है आसमानी और कायनाती बातें हकीक़त की ज़मीन पर इस कदर गिर पड़ती है कि उसकी हड्डी पसली एक हो जाती है…
– ज़मीनों वाली कायनाती शैफाली
लेकिन मेरी इंदौर यात्रा के वर्णन के कारण यह हुआ था कि एक अपरिचित महिला ने मुझसे मोती तबेला में रहने वाली उनकी सहेली के बारे में पूछा था जिसे वो पिछले 30 वर्षों से खोज रही थी, और जब उस महिला ने अपनी सहेली का नाम बताया तो मैंने यही कहा था. मैं नहीं जानती ऊपरवाला मुझसे यात्रा वृतांत क्यों लिखवा रहा है शायद इसीलिए ताकि मैं लोगों की खोज को रास्ता दे सकूं… खोज चाहे व्यक्ति की हो, या परमात्मा की…
तो जादू यह घटित हुआ था कि उस महिला की सहेली और कोई नहीं मेरी अपनी बुआ निकली थी, और फिर उसका संपर्क लेकर वो महिला अपनी सहेली से गुजरात जाकर मिल भी आई और वो महिला बन गयी मेरी मित्र.
कदाचित आपको यह भी संयोग ही लगेगा कि जब जब इस वाकिये का ज़िक्र करते हुए मैं कुछ लिखती हूँ तो उस महिला का सन्देश मुझे किसी ना किसी रूप में मिल ही जाता है. आज भी यही हुआ…
खैर यह तो हो गयी जादुई दुनिया की बात… दूसरी बात यह कि जब हम कोई रचना पूरी शिद्दत के साथ करते हैं, फिर चाहे इंदौर यात्रा के दौरान शौचालय का ज़िक्र ही क्यों ना हो तो उसके पीछे भी कोई ना कोई सकारात्मक बात जुड़ी ही होती है. बहुत आम चिंता थी मेरी वो ट्रेन की पटरियों को शौचालय बना देने की भारतीयों की आदत पर, जिसका मज़ाक उड़ाया गया.
आज वही चिंता जब प्रधानमंत्री मोदी ने की तो देश में शौचालय बनाने का काम वृहद रूप से होने लगा. कभी अमिताभ बच्चन इस पर विज्ञापन करते नज़र आते हैं, तो कभी इस बात पर खबर बन जाती है कि किसी बुज़ुर्ग ने अपने हाथों से कई शौचालय बिना कोई पारिश्रमिक लिए बना दिए तो कभी यह खबर की किसी बच्ची ने अपनी पॉकेट मनी सरकार को शौचालय बनाने के लिए दान में दी..
इतना लंबा लेख क्या मैंने अपनी कहानी सुनाने के लिए लिखा? नहीं यह लेख मैंने अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म ”टॉयलेट – एक प्रेम कथा” के लिए लिखा है.
अक्षय कुमार इन दिनों जो काम चाहे अपने फिल्म के प्रचार के लिए ही सही लेकिन देश में लोगों को शौच और शौचालय के प्रति जागरूक होने के लिए कर रहे हैं, वो अप्रत्यक्ष रूप से मोदीजी के उस वृहद अभियान में सहयोग ही है.
कम्युनिस्टों ने जिस तरह से हमारे राष्ट्र की नींव को खोखला करने के लिए फिल्म, संगीत, पुस्तक, लेखन और सभी तरह के रचनात्मक कार्यों का दुरूपयोग किया है. हमें उसी तरह छोटी सी छोटी बात में उनके लिखे को मिटाने के लिए अपनी रचनाधर्मिता को वहां तक ले जाना होगा.
काम चाहे आप व्यक्तिगत रूप से कुछ भी करते हों लेकिन जब उसकी नींव में राष्ट्र की चिंता उसकी उन्नति का विचार हो तो आपका काम व्यक्तिगत नहीं रह जाता आपका व्यक्तिगत काम राष्ट्र की उन्नति में रामसेतु के लिए गिलहरी सा ही सही लेकिन सहयोग अवश्य बनता है…
कुछ उदाहरण अक्षय कुमार और Toilet – Ek Prem Katha के फेसबुक पेज से लिए हैं-
जैसे यहाँ अक्षय कुमार खुद शौचालय के लिए गड्ढा खोद रहे हैं-
समय है अपनी सोच और शौच दोनों बदलने का. देखिये, सोचिये और अपने विचार बताइये
Time hai apni #SochAurShauch dono badalne ka. Dekhiye, sochiye aur apne vichar bataiye
तैयार हो जाइये स्वच्छ आज़ादी के लिए- टॉयलेट – एक प्रेम कथा, एक अनोखी प्रेम कहानी आ रही है – ११ अगस्त, २०१७ l Toilet – Ek Prem Katha
Pleased to share, Toilet – Ek Prem Katha, an unusual love story will be with you on 11th Aug, 2017. Tayyar ho jayye Swachch Azaadi ke liye!
Digging my 1st #TwoPitToilet in Khargone District of MP with Minister Narendra Singh Tomar, to show the Importance & Power these Toilets can give all over India. #MakeTheChange #WasteToWealth
Narendra Singh Tomar –
दो गड्ढों वाले शौचालय की तकनीक को हमें प्राथमिकता के तौर पर लेना चाहिए, यह सुरक्षित भी है और कम खर्च वाली भी.
हमारा कर्तव्य है कि इस सुरक्षित तकनीक के 2 गड्ढों वाले शौचालयों के बारे में हम जनता को बताएँ.
राज्य सरकारें सुरक्षित तकनीक के 2 गड्ढों वाले शौचालयों के बारे में जनता को बताएँ.
भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संस्तुत कम लागत के दो गड्ढो वाले शौचालय के उपयोग करने को लेकर समाज में जागरूकता आये, यही हमारा उद्देश्य है.
मैं अब भी यही कहूंगी क्रान्ति हमेशा तलवार से नहीं होती, चाहे सोशल मीडिया पर ही सही आपका लिखा एक एक अक्षर राष्ट्र चिंतन के लिए होना चाहिए वर्ना आपकी आनेवाली पीढ़ी इसे इलेक्ट्रोनिक गार्बेज समझकर नकार देगी.
तो जहां सोच वहां शौचालय. हाँ Toilet – Ek Prem Katha देखना भी दिलचस्प होगा. शायद भारत में ऐसी पहली फिल्म होगी जो शौचालय पर बनेगी.