प्रतिशोध की पराकाष्ठा : विरोधियों को मारो मत, उन्हें अपना कुत्ता बनाओ

दो-तीन साल पहले की बात है. हम लुधियाना के पास आलमगीर गांव में एक अखाड़े में रहते थे.

वहां एक कुत्ता था, जो हमेशा मुझे देख के गुर्राता, भौंकता…. काटने को दौड़ता….

गुर्राने वाले कुत्ते को भला कौन पसंद करता है? अब मेरे सामने विकल्प क्या थे? चेन से बंधा रहता था….

ज़्यादा से ज़्यादा क्या कर लेते? बहुत करते तो चार डंडा मार लेते…. मार के टांगें तोड़ देते. जिस मुंह से गुर्राता था उसी मुंह पे 4 डंडा मार के 4 दांत तोड़ देते.

पर इस से उसका गुर्राना रुक जाता क्या? उसके मन मे आपके प्रति जो नफरत थी, वो खत्म हो जाती क्या?

आप उसे जान से मार भी दें तो वो शहीद कहलायेगा. लोग कहेंगे कि फलाना कुत्ता वीरगति को प्राप्त हुआ.

मैने आसान रास्ता निकाला…. उसे बिस्किट खिलाना शुरू किया…. प्यार से पुचकारना शुरू किया.

उसने मुझे देख के पूंछ हिलाना शुरू किया….

फिर मैंने उसे हड्डियां डालनी शुरू कर दीं….

अब वो मेरे पैरों में लोटने लगा…. मुझे देखते ही पूंछ हिलाता, कूं-कूं करता…. जमीन पे लेट जाता…. अपना पेट दिखाता…. मेरे तलवे चाटता…. दिन-रात मेरे पैरों में लोटने को बेचैन रहता….

गुर्राने वाला कुत्ता अगर अपना मत परिवर्तन कर आपके शरणागत हो, आपके तलवे चाटने लगे तो इसमें आपत्ति क्या है?

ये तो प्रतिशोध की पराकाष्ठा है.

अपने विरोधियों को मारो मत.

उन्हें अपना कुत्ता बनाओ.

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