भारत के कोम्युनिस्टों का विदेशी संबंध

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देसी कम्युनिस्टों के एक ख़ास वर्ग द्वारा भारत-विरोधी रुख का एक संभावित अहम् कारण उनकी विदेशी राजनीतिक-उत्पत्ति भी है.

भारत में कम्युनिस्टों का राजनीतिक-उद्भव स्त्रोत यानि ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया’ (CPI) की स्थापना मूलतः न तो एक भारतीय पार्टी के तौर पर हुई कही जा सकती है और न ही ये स्थापना भारत में हुई.

CPI की स्थापना, CPI(M) के अनुसार, दरअसल ताशकंत में हुई. इसकी स्थापना रूस स्थित ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ के ‘एफिलिएट’ के रूप में हुई; यूं कहा जा सकता है कि इसे भारत में उसकी एक शाखा या ब्रांच के रूप में स्थापित किया गया.

सी.पी.आई. (एम) के वेबसाइट के अनुसार, श्री आचार्या और एम् एन रॉय समेत उनके पांच अन्य साथियों की उपस्थिति में यह कार्य 17 अक्टूबर 1920 को तत्कालीन रूसी शहर ताशकंत में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के ‘एंथम’ ‘द इंटरनेशनल’ को गा कर संपन्न किया गया था.

कोई आश्चर्य नहीं कि देश के कम्युनिस्टों का एक ख़ास वर्ग मौका मिलते ही भारत के विरुद्ध सन बयालीस में अंग्रेजों से मिल जाता हैं, बासठ में भारत पर आक्रमण करने वाले चीन से गलबहियां कर लेता हैं, हालिया समय में देश के टुकडे करने की धमकी देने वालों और नारेबाजों का विरोध नहीं करता, और अलगाववादियों का समर्थन देता प्रतीत होता हैं.

‘सी.पी.आई’ अपने इस विदेशी उद्भव को छुपाने का प्रयत्न करती है और स्थापना कानपुर में सन 1925 में हुई बताती है लेकिन ‘सी.पी.आई (एम्)’ आधिकारिक तौर पर इस विदेशी उद्भव की पुष्टि करती है.

भारत में प्रारम्भिक वामपंथी गतिविधियों से सम्बद्ध रहे और वर्तमान के बांग्लादेश में जन्मे एक वरिष्ठ कम्युनिस्ट मुज़फ्फर अहमद कहते हैं कि ताशकंत में इस पार्टी का गठन हुआ. सन पचीस में पार्टी के सर्वोच्च पदासीन ‘जनरल सेक्रेटरी’ एस वी घाटे का कहना था, “..स्थापना कानपुर में हुई ..लेकिन .यह सत्य है कि हमारा आधार वहीँ (ताशकंत में) रखा गया… हम इसे अस्वीकार नहीं करते”.

समकालीन कम्युनिस्ट एस एस मिरजकर कहते हैं, “हम (सी.पी,आई.) ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ के हिस्सा थे, …हमारी सारी राष्ट्रीय नीतियाँ ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ के सामान्य निर्देशन में बनती थीं और हम उसी के तहत काम करते थे”.

हालांकि वो ये भी कहते हैं कि इसका अर्थ ये नहीं है कि हर दिन हमें वहां से टेलीग्राम आते थे. ‘सी.पी.आई’ पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ वामपंथी एम् बासवपुनैयाह कहते हैं, “सी.पी.आई.’ ‘कोम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ से ‘एफिलिएटेड’ थी …और उनसे हमारा ‘लिंक’ ‘ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी’ के माध्यम से होता था”.

बासवपुनैयाह ये भी बताते हैं कि कैसे आगे चल कर ‘सी.पी.आई’ उन दिनों देश के कुछ मसलों पर अपनी नीतियों के लिए रूसी कम्युनिस्ट तानाशाह स्टॅलिन से सलाह लेती थी. रूस जा कर स्टॅलिन की सलाह लेने की बात भी बासवपुनैयाह स्वीकारते हैं.

यह भी गौरतलब है कि यह पार्टी स्वयं को कभी भी ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ (इंडियन कम्युनिस्ट पार्टी) नहीं कह कर ‘भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) कहती रही है; आशय ये कि हम तो भारतीय हैं ही नहीं, हम तो रूसी कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के एक अंग हैं जो भारत में कार्यरत है.

इस सिलसिले में एक प्रस्ताव को सिरे से ठुकराते हुए पार्टी के पूर्व जनरल सेक्रेटरी एस वी घाटे ने कहा था कि [कम्युनिस्ट इंटरनेशनल] के प्रारूप के अनुरूप हमारा ये नाम सही है और हम इसे “भारतीय कोम्युनिस्ट पार्टी” नहीं कह सकते. वे आगे कहते हैं, “ विदेशी या कुछ भी, “भारत की कम्युनिस्ट पार्टी” ही नाम होना चाहिए और यही रहा”.

देश के वर्तमान में और विगत में भी कम्युनिस्टों के एक ख़ास वर्ग द्वारा भारत-विरोधी रुख को उनके इस विदेशी उद्भव के प्रकाश में बेहतर समसमझा जा सकता है. जिस विचारधारा के पोषकों के एक ख़ास वर्ग ने संभवतः स्वयं को कभी भारतीय समझा ही नहीं, उनसे आप देश हित की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

(सन्दर्भ : (1) The then General Secretary of CPI Mr S V Ghate’s Interview to Frontline (2) The then senior communist leader S S Mirazkar’s interview to Frontline (3) The then CPI polit Bureau member and senior communist M Basavpunaiyaah’s interview to Frontline (4) Biography of senior communist Muzaffar Ahmad by National Encyclopedia of Bangladesh, (5) CPI (M)’ website)

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