हिंदी फिल्म की एंग्री यंग वुमन तापसी पन्नू

एक बार फिर फिल्म समीक्षकों ने निराश किया. वैसे उनसे उम्मीद करना बेईमानी है. जहां मीडिया अपनी विश्वसनीयता पहले ही खो चुका हो और कारण है उसका बाजार में मात्र एक दुकान बन जाना. जहां सब कुछ पैसा संचालित करता है.

ऐसे में इन्ही मीडिया में बैठ कर लिखने-दिखाने वाले फिल्म-समीक्षक निष्पक्ष होंगे और निस्वार्थ भाव से अपना काम करेंगे, यह सोचना भी मूर्खता है. इस बार तकरीबन हरेक समीक्षक ने “नाम शबाना” के बारे में जो कुछ लिखा, वो सब गलत-झूठा और तो और कहीं-कहीं उलटा भी मिला.

अधिकांश ने कहा था कि इंटरवल के पहले फिल्म बोर करती है और कुल मिला कर यह एक सामान्य फिल्म है, जिसमें कहानी कमजोर है और अभिनेत्री तापसी ने एक जैसी स्टोन फेस के साथ अकड़ी-तनी सी पूरे फिल्म में एक्ट किया है आदि आदि.

कल रात फिल्म देख कर मैं हैरान हुआ. समीक्षा से ठीक उलट, यह एक बेहतरीन फिल्म निकली. उल्टा इंटरवल के पहले तो फिल्म में मुख्य चरित्र का निर्माण जबरदस्त ढंग से करने में कहानीकार और डायरेक्टर सफल हुए हैं.

असल में यह कोई चॉकलेटी फ़िल्मी हीरो-हीरोइन की कोई नचनिया पिक्चर नहीं है. बल्कि एक नवयुवती के आक्रोश को पनपने के घटनाक्रम का सही चित्रण है.

सच कहें तो पिछले दो-तीन दशकों से आज की सेल्फी और फास्ट फूड जनरेशन को नूडल-रोमांस परोसते हुए हम सब भूल जाते हैं कि जीवन इसके बाहर भी है और जमीनी हकीकत का जीवन किसी ड्रामेटिक कहानी से कम नही.

यह एक अलग मिजाज की पिक्चर है जिसमें प्यार तो है मगर कहानी की आवश्यकतानुसार बहुत थोड़े समय में सिमट जाता है और जो आगे की फिल्म का कारण बनता है. जिसे अभिनेत्री ने बखूबी निभाया है.

जिन समीक्षकों ने तापसी पन्नू को पूरी फिल्म में एक जैसी एक्टिंग करने का इल्जाम लगाया है, वे या तो उनके प्रेम के अभिनय को देख नहीं पाए या फिर उन्हें देखने की मनाही थी. क्योंकि खबरों की तरह समीक्षा भी तो आजकल लिखवाई जाती है और महा बोर फिल्मो को भी पता नहीं कौन-कौन से करोड़ के क्लब में घोषित कर दिया जाता है.

प्रेम के लिए कोई हरे-भरे खेत में या किसी बगीचे में कोई गीत गाना या नाचना जरूरी नही. और ना ही पूरी फिल्म सिर्फ प्रेम को पाने में खर्च की जा सकती है. प्यार का एक पक्ष ट्रेजेडी भी है जिसको दिखाने के लिए तापसी ने सशक्त अभिनय किया है और कहानीकार उस प्रेम की असफलता को आक्रोश में स्वाभाविक ढंग से बदलने में पूरी तरह सफल रहा है.

यह समीक्षकों की नहीं आम जनता की फिल्म है जो रोमांस या आर्ट के नाम पर सिर्फ हिंदुस्तान की गरीबी आदि परोसने वाली फिल्म के अतिरिक्त भी कुछ देखना पसंद करते हैं.

यहां नायिका सिर्फ नायक की हेरोइन नहीं है बल्कि मुख्य भूमिका में है और अपने अकेले के दम पर पूरी फिल्म को सफलतापूर्वक अंत तक ले जाती है. सभी का अभिनय काबिले तारीफ़ है और डायरेक्शन से लेकर फोटोग्राफी उम्दा है.

अक्षय कुमार, अनुपम खेर आदि के अभिनय की बात यहां करने की जरूरत नहीं और ना ही मनोज वाजपेयी को किसी पैमाने में परखने की जरूरत है! हां मनोज वाजपेयी को अपने शरीर पर ध्यान देने की जरूरत है जो कुछ ज्यादा ही पतले और कमजोर लगे हैं.

फिल्म की अभिनेत्री तापसी को तीसरी फिल्म में मैं देख रहा हूँ. बेबी, पिंक और अब नाम शबाना. उनके चेहरे में कहीं एक आक्रोश है जो उनके व्यक्तित्व पर सूट भी करता है. वो सिर्फ डांस या रोमांस करने के लिए नहीं हैं और ना ही आंसू भर कर ट्रेजेडी करने भर के लिए हैं बल्कि वे शायद हिंदी सिनेमा की एंग्री यंग वुमन हैं और अगर उन्हें इसी तरह की कहानी और डायरेक्टर मिलते रहे तो वो हिंदी फिल्मो में एक नई पहचान बनेंगी जो अब तक किसी और की नहीं बन सकी.

कितनी अभिनेत्री नेचुरल फाइट करते आज तक दिखी हैं जबकि तापसी में यह कला है वो भी केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक और चेहरे के भाव में भी. अब उसका उपयोग फिल्मकार भविष्य में कैसे करते हैं यह उस पर निर्भर करता है.

यह एक अलग किस्म की फिल्म है. ध्यान रहे अब मसाला फिल्मो का दौर खत्म हुआ. दर्शक नए-नए विषय पर फिल्म देखना चाहता है. देश के लिए काम करने वाली सुरक्षा एजेंसियां कैसे काम करती हैं उसका कुछ-कुछ अंदाज इस फिल्म में उसे मिल सकता है.

इसमें कुछ और भी सन्देश हैं, जिसे डायरेक्टर ने देने की कोशिश की है जो दर्शक तक पहुँच भी रही है. देश-समाज के लिए कई काम किये जा सकते हैं जिनमें एक यह भी है जो हमारी सुरक्षा से सम्बन्ध रखती है.

बहरहाल, यह बेबी फिल्म की पूर्व कहानी पर आधारित फिल्म है. इसी कड़ी में एक-दो और भी फिल्म बन सकती हैं, जिनमे डैनी के रोल और मनोज वाजपेयी के चरित्र को आगे बढ़ाते हुए कहानी लिखी जाए. दोनों बेहद सशक्त अभिनेता हैं जिनका अभी तक पूरा उपयोग किसी फिल्मकार ने अब तक नहीं किया.

क्या करें बॉलीवुड में भी सब कुछ फिक्स्ड सा हो चला है. लेकिन जिसे सिर्फ पैसे ही कमाने हैं वो भी इन अभिनेताओं पर दांव लगा कर अच्छा कमाएंगे, ऐसा मेरा मानना है.

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