दार्जिलिंग लोकसभा के अन्तर्गत आता है सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी जिले में आता है हाथीघिसा ग्राम पंचायत. इस ग्राम पंचायत में 30 गाँव हैं, यहाँ पर ही है नक्सल गाँव जिसको नक्सलबाड़ी बोला जाता है.
इसी इलाके का नक्सल नेता था कानु सान्याल जिसने चारु मजूमदार और जंगल संथाल के साथ मिलकर हिंसक वामपन्थ आंदोलन “नक्सलवाद” की शुरुआत की थी. इनका मानना था कि सरकारों ने लोगों के साथ भेदभाव किया, जुल्म किये और इनके संसाधनों को छीना.
इन आरोपों में काफी सच्चाई भी है क्योकि तब की कांग्रेस की सरकार और उसके पोषित बाबुओं ने भोले भाले गांववालों और आदिवासियों को खूब लूटा और शोषण किया.
उनके हक़ के प्राकृतिक संसाधनों का जम के दोहन हुआ, उनको कुछ न देकर कांग्रेस के नेताओं, बाबुओं और पुलिस ने जेबें भरी. गरीब गरीब होते जा रहा था और दलाल, लुटेरे, चोर-बेईमान, तस्कर अरबपति बन रहे थे.
पुलिस इन पर जुल्म ढाने का और ताकत से हर चीज़ छीनने का काम करती थी. अतः इसके खिलाफ आवाज़ उठनी और आंदोलन होना स्वाभाविक ही था.
नतीजा नक्सल आंदोलन
ये एक हथियार बंद आंदोलन था जिसको चीन से फण्ड मिलता था. इस आंदोलन का रुख बीजिंग से तय होता था, समय-समय पर ये तीनों चीन की यात्राएँ भी करते थे.
इस आंदोलन की सफलता थी पश्चिमी बंगाल से कांग्रेस को उखाड़ के वामपन्थी शासन का आना जो कि बिना किसी रोक-टोक के, निर्बाध तरीके से 38 वर्षों तक रहा. 38 वर्ष बहुत होते हैं किसी तर्ज पर राज्य का कायापलट करने के लिए – वो भी बंगाल जैसा राज्य जहाँ कोयला, खनिज, पानी, खेती, चाय, बीड़ी, पहाड़, नदियां, झरने सब कुछ हों.
परंतु वामपंथियों ने बंगाल को तरक्की के रास्ते पर ले जाने की जगह बंगाल को कंगाली के दलदल में धकेल दिया. उद्योग बंद हो गए, पानी के रास्ते का उपयोग सिंचाई की जगह भारत-बांग्लादेश के बीच तस्करी के लिए होने लगा.
चाय, सिंघाड़ा, ड्रग्स और पशुओं के तस्करी को वामपंथी कैडर ने संभाल लिया. जो विरोध करता का उनका साथ न देता उनकी हत्या की जाने लगी. बंगाल बर्बाद कर दिया वामपंथियों ने ..
इस सब के बीच हाथीघिसा ग्राम पंचायत – नक्सलबाड़ी और गर्त में डूबता चला गया. नक्सलबाड़ी में न कोई विद्यालय, न हस्पताल, आने जाने के कच्चे रास्ते जिस पर साइकिल या राजदूत मोटर साइकिल से ही चला जा सकता था.
न बिजली, न ही शुद्ध पेय जल, न ही कृषि उपज को मंडी जाने की व्यवस्था. नक्सलबाड़ी 1966 में भी पूरा पाषाण काल में ही जी रहा था, और 2014 में भी वही हाल था. न वामपंथियों ने कुछ किया और न ही ममता सरकार ने.
नक्सलबाड़ी में कुछ नहीं
जहाँ से गरीबों और सर्वहारा की लड़ाई का सशस्त्र आन्दोलन शुरू हुआ वहां गरीब और गरीब हो गया, सर्वहारा अपना सब कुछ हार गया.
बदले में नक्सल आंदोलन वाले “नक्सलवादी” नाम को लेकर बस्तर, गढ़चिरौली, करीमनगर अबूझमाड़ होते हुए रॉबर्ट्सगंज, गया, धनबाद, जसीडीह, मयूरभंज, कंधमाल और देवगढ़ तक फ़ैल गए.
अवैध वसूली, हथियार, तेंदू पत्ता और ड्रग्स के तस्करी के धंधे को वो आंदोलन का नाम दे चुके हैं. इसको चलाने वाले शहर से लेकर दंडकारण्य में बैठे शहस्त्र वामपंथी नेता मालामाल हैं और इनके बच्चे विलायत में मौज की जिंदगी बसर कर रहे हैं.
तस्करी और वसूली का हिसाब करने के बाद ये भी शहरों और विदेशों में छुट्टियां मनाते दीखते हैं.
नक्सलबाड़ी आज
हाथीघिसा ग्राम पंचायत – नक्सलबाड़ी …. 2014 में मोदी सरकार आने के बाद सांसद आदर्श ग्राम योजना चालू हुई. इसके अन्तर्गत दार्जिलिंग से भाजपा सांसद एस एस अहलूवालिया ने इसी पूरे इलाके को गोद लिया.
बहुत कठिन थी डगर क्योंकि नक्सलवादी मानसिकता से घिरे लोगों में काम करना था. विश्वास बनाए रखना था. वहां काम करना था जहाँ बिजली के खम्भे तक नहीं थे, मोबाइल टावर इतने दूर कि सिग्नल न के बराबर.
30 गावों के इलाके में सिर्फ 137 हैण्डपम्प थे… 4000 से ऊपर बने मकानों के इलाके में 50 से कम टॉयलेट, विद्यालय के नाम पर कुछ खँडहर और हस्पताल के नाम पर चारदीवारी. पूरा माहौल नक़्सलमय ….
पहली बार जब साँसद इलाके में योजनाओं को लेकर गए तो वो सबसे पहले कानू सान्याल के घर गए और उनके लोगों को समझाया, सारी तरक्की की योजनाएं बताईं.
वर्षों तक खूनी खेल रहे कानू सान्याल का परिवार और लोग सांसद की बात मान गए… आज इलाके को गोद लेने के इतने समय के बाद…. 2000 टॉयलट बन चुके हैं, सांसद निधि और केंद्र की मदद से सड़कें 60% बन चुकी हैं.
विद्यालय की मरम्मत हो चुकी है. हस्पताल चल रहा है और सिलीगुड़ी से डॉक्टर की टीम हफ्ते में दो-तीन बार आती है. बिजली के खम्भे लगाए जा चुके है.
इस पर भी योजना बन रही है कि इलाके में सोलर ग्रिड लगा के बिजली सप्लाई की जाए जिससे 24X7 बिजली मिले… अभी तक केरोसिन के लैंप और दिए जलाने वालों के लिए ये क्या हो रहा है खुद ही सोच कर देखिये.
काम चल रहा है उम्मीद है कि 2018 तक हाथीघिसा – नक्सलबाड़ी एक आदर्श ग्राम पंचायत बन के उभरेगा. ये आसान भी नहीं था… सांसद महोदय को वामपंथी और तृणमूल के गुंडों से भी दो-दो हाथ करना था क्योंकि ये काम होने से पूरा उत्तर बँगाल इनके हाथ से फिसल जाता.
इसका सन्देश दूर दंडकारण्य या कंधमाल में बैठे लोगों तक पहुंचता जिससे माओवादी सशस्त्र आंदोलन, जिसका फायदा वामपंथी, तृणमूल और कांग्रेस, तीनों बंगाल में उठाते हैं, उसका भरभरा के गिर जाना पक्का था.
सांसद महोदय का साथ दिया सिलीगुड़ी के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के ABVP और पास हो चुके सदस्यों ने और बंगाल के अन्य विवि में पढ़ रहे ABVP के कार्यकर्ताओं ने….
इन लोगों ने एक प्रहरी सेना बनाई जिसका नाम नारायणी सेना रखा, जिसका काम था दिन-रात काम पहरा देना क्योंकि वामपंथी और तृणमूल के गुन्डे हमला करके तार तोड़ना, सड़क खोदना, खंभे गिराना आदि काम करते थे….
इनसे लोहा लिया ABVP ने…. काम होने पर नतीजा तो आना ही था…. वामपन्थी यहाँ से कमजोर हो गए… जिसके कारण उन्होंने पिछले चुनाव में बंगाल में कांग्रेस से गठबंधन किया…
इस इलाके में भाजपा को 45000 से ऊपर वोट मिले जहाँ भाजपा ग्राम पंचायत भी नहीं जीत सकती थी पहले… अगले विधानसभा चुनाव में इधर कोई भाजपा को रोक नहीं पाएगा….
नक्सलवादी आंदोलन के नेता कानू सान्याल के यहाँ से योजनाओं का सञ्चालन होता है…. फ़िलहाल चारु मजूमदार के घर के लोगों ने सांसद और उनके कराए जा रहे विकास के गतिविधियों का विरोध जारी रखा हुवा है और जंगल संथाल के लोग न्यूट्रल मुद्रा में हैं …
80 वर्षीय वृद्ध शांति मुंडा जो कि कानू सान्याल के घर का रख रखाव करती है वो बताती हैं कि “…इतने लोग आये गए लेकिन पहली बार कोई सांसद ऐसी योजनाएँ लाए और काम कर रहा है…. कानू बाबु हमारे लिए जो करना चाहते थे वो ये कर रहे हैं … मैं इलाके में बिजली देख के मरूँगी…”
दीपू हलदर जो कि CPI (ML) का इलाके का जनरल सेक्रेटरी हुआ करता था, बताता है कि इतने वर्षों में पहली बार साफ़ पीने का पानी मिला है जिसका 6 महीने पहले ही इंतज़ाम हो पाया है. हालाँकि इस बात को बताने में वो चोरी कर जाता है कि ये काम सांसद आदर्श ग्राम योजना के अन्तर्गत हुआ है.
तो यूँ ही नहीं है शहरी वामपंथियों का JNU, DU आदि में ABVP का विरोध, यूँ ही नहीं है जाधवपुर विवि में इनका देश विरोधी मार्च और सम्मलेन, HCU तथा मुम्बई विवि में सुगबुगाहट फैलाना और BHU के अंदर अशांति फैला कर ABVP के सर दोष मढ़ना… इसके जरिये वो अपना अस्तित्व बचाने और दंडकारण्य में सशस्त्र लडाकों को खोने से बचने की लड़ाई लड़ रहे हैं …
अगले चुनाव में जब भाजपा पश्चिमी बंगाल जीतेगी… वामपन्थ का गढ़ रहे हाथीघिसा ग्राम पंचायत – नक्सलबाड़ी, पश्चिमी बंगाल में ही वामपन्थ का तर्पण हो जाएगा… इसके बाद इनका अस्तित्व समाप्त होगा…
दण्डकारण्य सुरक्षित होगा और वहां के लड़ाके हथियार डाल के मुख्य धारा में जुड़ कर उन्नति पथ पर आगे बढ़ कर शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे…. तृणमूल कांग्रेस के आडम्बर का भी पतन होगा… wait for 2021-22!