परंपरा : जातिवाद, समस्या या निदान!

बच्चों के आस-पास होने का बड़ा फायदा है. आपका दिमाग हमेशा चाक-चौबंद, बिलकुल चौकस होता है. मजबूरी है, अगर ऐसा नहीं करेंगे तो आपकी नजर घूमते ही वो किसी ना किसी आपकी प्रिय चीज़ का कबाड़ा कर देंगे!

और कौन कहता है कि बच्चे भोले होते हैं? जैसी ही उन्हें पता चलता है कि कबाड़ा करके बैठे हैं तो फिर जो भोली सी सूरत बनाते है! क्या कहना! जनाब, अपनी डांट-फटकार की तमन्नाओं पर भी खुद ही शर्म आने लगती है.

ऐसे ही मज़ेदार उनके सवाल होते हैं. कब, कहाँ, कैसे, क्या, क्यों जैसे अनगिनत हथियार भरे पड़े होते हैं.

बचपन से कुछ तो संयुक्त परिवार में सबसे बड़े होने के कारण और कुछ घर में भाई बहनों के दोस्तों के अलावा, बाकी मोहल्ले भर के बच्चों के आने-जाने के कारण सवालों से लगातार सामना होता रहा.

आज तक ये भी समझ नहीं आया कि क्यों बड़ा भाई/ बहन बच्चों को कोई इनसाईक्लोपिडिया-डिक्शनरी टाइप लगता है!

किसी शब्द का मतलब नहीं समझ आया, भैया के पास! कोई चीज़ नहीं पता, भैया बताएँगे! अब हम कौन सा गूगल हैं भाई, सारे सवाल हम पर क्यों दागोगे?

ऐसे सवाल झेलते झेलते हमें नुस्खे आजमाने भी आ गए. प्रॉपर साइंटिफिक एक्सप्लेनेशन बच्चों की समझ नहीं आते. उन्हें उनकी ही भाषा में समझाना पड़ता है.

जैसे हमारे घर के पास हमारा पोखर है, छोटा सा तालाब. जाड़े के मौसम में सुबह-सुबह पानी की सतह से भाप सी उठती दिखती है. इसका वैज्ञानिक कारण होता है, हमें पता भी है. लेकिन साथ ही हमें पता है कि बच्चों को वो समझाने का ख़ास फायदा नहीं होता.

अगले दिन वो फिर से वही सवाल करेंगे! ये पानी से जाड़े में भाप क्यों निकल रही है ? गर्मी नहीं फिर पानी भाप क्यों हो रहा? हमने इसका आसान सा जवाब बरसों से सोच रखा है.

हम हमेशा बताते हैं कि मछलियों को सुबह-सुबह ठण्ड लग रही होगी. वो अपने लिए चाय बना रही होंगी अपने घर में. केतली से उठती हुई भाप तालाब के ऊपर निकलती दिख रही है.

अभी तक किसी बच्चे ने इस एक्सप्लेनेशन पर सवाल नहीं किया. बाद में उन्हें असली बात पता चल जाती है. लेकिन तब तक के लिए ये ठीक है.

ऐसे ही मुश्किल सवालों के लिए कभी उल्टा सोचा है?

जैसे भारत के लिए एक जातिवाद बड़ा मुश्किल सा सवाल है. इसे जरा घुमा कर सोचिये. जब अब्रहमिक धर्मों (इसाई-इस्लाम) की आंधी आई तो क्या हुआ था?

पूरी दुनिया में जहाँ से इनकी तलवारें घूमी, भालों-नेज़ों की नोक पर धर्म बदले गए. पूरा पूरा इलाका अपने मजहब छोड़ता गया. सब के सब या तो इसाई हो गए या मुसलमान. फिर क्या था जिसने भारत पहुँचने पर इन्हें 1200 साल रोक दिया?

भारत में वर्ण व्यवस्था थी. जो लड़ते थे वो क्षत्रिय थे. हारने पर सिर्फ क्षत्रिय हारा था, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र के लिए हार मानने की कोई वजह ही नहीं थी!

जिनका धर्म परिवर्तन हुआ वो क्या सचमुच शूद्र और निम्न जातियों के लोग थे? अगर थे तो उनके बढई, कुम्हार, किसान, और अन्य ऐसी ही आजीविका की कलाएं कहाँ गई?

आज वो पढ़े लिखे नहीं है, कोई पंक्चर लगाता दिखता है, कोई सब्जी-फल बेचता! ऐसा कैसे?

भारत की वर्ण व्यवस्था थी जिसने इसे बचा लिया. पूरा भारत कभी हारा ही नहीं. इसलिए व्यापक धर्म परिवर्तन के अभियान यहाँ चल ही नहीं पाए.

जिसमें सिर्फ गुण ही गुण हो या फिर सिर्फ दोष ही दोष हों ऐसी कोई भी चीज़ नहीं होती. आग घर जलाती है तो उस पर खाना भी पकता है.

कभी कभी उल्टा सोचना भी फायदे का होता है. सिर्फ दोष ही हों ऐसी तो मनरेगा भी नहीं है ना?

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