मध्य प्रदेश के भिंड में उपचुनाव होने हैं. चुनाव आयोग इस बार भिंड के उपचुनाव में ईवीएम के साथ VVPAT का भी प्रयोग कर रहा है.
VVPAT वह मशीन होती है जो ईवीएम के बैलेट यूनिट के साथ जुड़ी होती है. वोट देने के बाद सात सेकेंड तक उसमें एक पर्ची दिखाई देती है जिस पर यह अंकित होता है कि मतदाता ने किसे वोट दिया है.
ऐसा इसलिये क्योंकि ईवीएम पर उठ रहे सवालों के बीच मतदाता इस बात से आश्वस्त हो सके कि उसका वोट सही जगह गया है.
बात भिंड की हो रही थी तो वहां इस मशीन का प्रयोग पहली बार हो रहा है. लिहाजा चुनाव की तैयारियों का जायजा लेने पंहुची राज्य की मुख्य चुनाव अधिकारी सलीना सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस किया.
प्रेस कांफ्रेस में ईवीएम और VVPAT का प्रदर्शन हो रहा था. प्रदर्शन के दौरान जब पहली बटन दबाई गयी तो कमल के फूल की पर्ची दिखाई दी. दूसरी बटन दबाने पर हाथ के पंजे की पर्ची दिखाई दी.
तभी कुछ पत्रकारों ने इस बात का विरोध किया कि प्रदर्शन के माध्यम से आदर्श आचार संहिता के दौरान दलों के चुनाव चिन्ह दिखाना ठीक नहीं है. इस पर सलीना सिंह ने कहा कि ऐसा है तो आप लोग इस खबर को मत छापियेगा.
बस इसके बाद अफवाहें सोशल मीडिया पर उतर गयीं. सोशल मीडिया में यह बात वायरल की जाने लगी कि VVPAT के प्रदर्शन के दौरान दो बार बटन दबाने पर दोनों बार कमल के फूल की पर्ची दिखाई दी.
अफवाहों को तब और बल मिल गया जब अगले दिन स्थानीय अखबारों में हेडलाइन छपी कि राज्य निर्वाचन अधिकारी ने पत्रकारों को धमकाया.
वैसे तो इस हेडलाइन से छापी गयी खबरों में भी दो बार बटन दबाने पर अलग-अलग पर्चियां निकलने की बात लिखी गयी थी. लेकिन मोटी और भड़काऊ हेडलाइन को देखकर आगे की खबर पढ़ने की जहमत कौन उठाये.
इतना सब होने के बाद तो जैसे अंधे को बटेर लग गयी. मतलब एमसीडी चुनाव में बैलेट के प्रयोग की वकालत कर रहे युगपुरुष और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने ईवीएम में खराबी से संबंधित बयानबाजियां शुरू कर दी.
इसके बाद चुनाव आयोग भी सक्रिय हुआ और पूरे मामले की जांच कराई. जांच में जब पूरी सच्चाई सामने आ गयी तो आयोग ने भिंड के कलेक्टर समेत 19 अधिकारियों को वहां से हटा दिया है.
पूरे मामले का लब्बोलुआब यह है कि युगपुरुष और कांग्रेस अपनी नाकामियों का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने का कोई भी मौका छोड़ नहीं रहे हैं.
ऐसे में चुनाव आयोग को और ज्यादे मुस्तैद रहना होगा क्योंकि इस तरह के आरोप चुनाव आयोग की विश्वसनियता पर सीधे तौर पर सवाल खड़ा करता है.
फिर जब कुछ राजनीतिक दलों को उस विश्वसनीयता पर पहले से ही शंका हो तो उसे बचाने के लिये आयोग को भी अपने हर कदम ठोक बजा कर उठाने होंगे.