चौंसठ योगिनी मन्दिर : जैसे पुष्प की चौंसठ पंखुड़ियाँ

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चौंसठ योगिनी

चौंसठ योगिनी मन्दिर… लगभग 30 वर्ष पहले इस मन्दिर को देखा था… एक सुरम्य छोटी सी पहाड़ी के शिखर पर अकेला मन्दिर.. जिसमें योगिनियों की भग्न मूर्तियाँ थीं.

प्रवेश द्वार वैसा ही निर्जन… कोई सुरक्षा कर्मी नहीं, कोई टिकटघर नहीं… सुनसान 108 टूटी-फूटी सीढ़ियाँ जिनपर चढ़ कर मन्दिर तक पहुँचना है….

कहते हैं इस मन्दिर का निर्माण चालुक्य वंश के शासकों ने करवाया था जिसमें दुर्गा की प्रतिमा थी. सन 1808 में मुसलमान शासक अमीर खाँ पिंडारी ने इस मन्दिर को, इन सभी मूर्तियों को खण्डित कर दिया था.

इन मूर्तियों का सौन्दर्य अप्रतिम था. इसी भेड़ाघाट को भृगु ऋषि की भी तपस्थली बताया जाता है. इस मन्दिर को आज भी उसी अवस्था में देखकर मुझे बेहद दुख हुआ…

खजुराहो में खंडित मूर्तियों का पुनर्सृजन किया जा रहा है पर यह स्थल उपेक्षित है. मन्दिर में अब पास के स्थल से प्राप्त दूसरी सदी की एक शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर दी गई है… जिसके लिए एक पुजारी भी इस भुतहा मन्दिर में आगंतुकों का इंतज़ार करता है.

मन्दिर का प्रवेश द्वार काई सने काले पत्थरों से आच्छदित किसी हॉरर फिल्म के आरम्भिक शॉट-सा लग रहा था… मुझे भीतर जाने की कोई जल्दी नहीं थी….

चौंसठ योगिनी मन्दिर कभी इस क्षेत्र की पहचान रहा होगा. न जाने कितने आयोजन और अनुष्ठान हुए होंगे. कितना वृहत क्षेत्र जिसमें मध्य मंडप के इर्द-गिर्द योगिनियों के चौंसठ मन्दिर थे. मानो किसी पुष्प की चौंसठ पंखुड़ियाँ हों. प्रतिमाएं इतनी जीवंत कि आप उनका सौंदर्य देखते रह जाएं.

अमीर खाँ पिंडारी काफिरों के इस पुण्य प्रतीक को कैसे देख पाता. उसने एक-एक मूर्ति को अपने भालों और तलवारों से खण्डित किया. यह सिद्ध हो गया ईश्वर उन्हीं के लिए है जो अंधे हैं. जो लड़ नहीं सकते, अपनी रक्षा नहीं कर सकते उनका धर्म और संस्कृति इन्हीं खण्डित मूर्तियों की तरह है… चुपचाप अँधेरे में सिसकती योगिनियाँ….

पुरातत्व विभाग ने टूटे हुए मंडपों को खड़ा कर दिया है पर उनके भीतर की खंडित मूर्तियाँ उस कहानी को बताने के लिए आज भी क्षत-विक्षत शवों सी उन में पड़ी हैं…

न सरकार सुध लेगी, न वे हिन्दु मतों की भूखी पार्टियाँ जो बहुसंख्यकों को अपने ही देश में संरक्षण देने में विफल रही हैं…..

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