एक शब्द है बिद’अत. अर्थ होता है – कुरआन में जो लिखा है उससे अलग अपनी मर्जी से सोचना. वामी जिसे संशोधनवाद – revisionism कहते हैं वही यह है.
याने जो भी विहित है, आप ने उससे कुछ अलग किया या उससे कम किया और कहा इतना ही ठीक है तो आप को बिद’अति कहा जा सकता है.
इसके तहत आप के साथ क्या सलूक होगा उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, इसलिए कुछ नहीं कहूंगा.
बिद’अत इस लिए याद आई क्योंकि मोदी जी से नफ़रत करना और करवाना लगभग शरियत का हिस्सा बन गई है भारत के कुछ मुसलमान फिरकों के लिए.
मोदी जी से इनकी नफ़रत इस हद तक है कि अगर किसी मुसलमान या मुस्लिमा की पोस्ट या कमेन्ट से अगर ये सहमत नहीं होते तो उस व्यक्ति पर “मोदी के फेवर में” लिखने का इल्जाम लगाया जाता है…
और इसी को ले कर उसे अपमानित करने की भी कोशिश होती है. लगभग सामाजिक बहिष्कार सा माहौल बन जाता है अगर वो व्यक्ति अपने मुद्दे पर अड़ा रहे तो.
क्या कहें इसे? जो मुसलमान मोदी जी के बारे में दो अच्छे बोल बोलता है, वो क्या मोदी’अत करता है?
वैसे कभी पूछें क्यों इतना गुस्सा है तो जवाब एक ही है – गुजरात के मासूमों का खून माफ़ नहीं होगा!
अच्छा, ठीक है, लेकिन एक बात हमारी भी – हजार सालों से अधिक कुछ करोड़ हिन्दुओं का खून हम इस्लाम को माफ़ क्यों करें? इस्लाम या मुसलामानों का क्या बिगाड़ा था उन्होंने, मासूम ही तो थे?