सब से सही युद्ध वो है जहाँ शत्रु समझे ही नहीं कि आप उसके साथ क्या कर रहे हैं. इसलिए भीतरघातियों का इस्तेमाल होता है.
ये ऐसे लोग हैं जो आप के शत्रु के अपने हैं, शत्रु के लोग उन पर विश्वास करते हैं, उनकी बात सुनते हैं, मानते भी हैं, उनकी बात आप के सत्ता के गलियारों में भी सुनी जाती है.
अपनी बातों से वे आप को लड़ने के लिए तैयार होने से रोकते हैं, या तो कहते हैं कोई शत्रु है ही नहीं, या कहते हैं कि लड़ कर फायदा नहीं, शांत रहो.
ये वे लोग होते हैं जो हम में, जो कमीने या कायर या फिर दोनों भी होते हैं, उन्हें अपने से जोड़ते हैं.
इनका काम शांति का सन्देश फैलाना है, ऐसा ये कहते हैं लेकिन असल में ये निष्क्रियता और आलस्य का सन्देश फैलाते हैं ताकि जब शत्रु पूरी तैयारी से हमला करे, आप प्रतिकार के काबिल ही नहीं रहो.
वे अपना असली मकसद आप को कभी समझने नहीं देंगे. आप को यह भी समझ नहीं आयेगा कि उनके पास पैसा आता कहाँ से है जिससे ये इतनी ठाठ की जिन्दगी जीते हैं.
शत्रुओं के लिए ऐसे लोग बहुत कीमती होते हैं. कमाल की बात यह है कि सरकार को भी यह समझ में नहीं आता कि अगर ये महज सैलरी पाने वाले लोग हैं तो इनकी संपत्ति और लाइफ स्टाइल सैलरी से मेल खाती नहीं दिखती. या फिर इनके पास कुछ राज होते हैं इसलिए इनसे पंगा नहीं लिया जाता.
इन्हें लशकर ए मीडिया के नाम से जाना जाता है. जहाँ शत्रु का सवाल है, कभी-कभी इनकी जुबान फिसल जाती है और पूछ बैठते हैं कि क्या फर्क पडेगा, तब शत्रु कौन है यह पता चल जाता है.
हाँ, वो बस एक शत्रु है, और भी होते हैं. आप जब सोने की चिड़िया हो तो हर किसी की नजर होती है. अगर आप बाज होते तो वो दस बार सोचते.