जीवन से संवाद : जगदम्बा और नमो का साक्षी भाव

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कुछ महीनों पहले आध्यात्मिक गुरु दिनेश कुमार की बताई ध्यान विधि करते हुए एक विज़न देखा था कि जैसे मेरी गर्भनाल, नाभि से तो जुड़ी है लेकिन लटक रही है देह के बाहर और गर्भनाल से जुड़ा है एक शिशु…

कई महीनों तक उस दृश्य का अर्थ खोजती रही… आसपास से गुज़रती कई घटनाओं से उसे जोड़ने का प्रयास करती रही.. लेकिन अपने प्रयास से कहाँ कुछ होता है….

प्रकृति की योजना से परे अगली सांस भी आप मर्जी से नहीं ले सकते तो फिर यह तो स्वतंत्रता की परिभाषा के सांचे में खुद को ढला देखने की ज़िद थी..

फिर एक दिन अपनी ही देह से जैसे मिट्टी की खुशबू सी आती है और उस उर्वरा मिट्टी पर गर्भनाल के सपने का बीज अंकुरित हो उठता है…  पिछले जन्म की यादों की झलकियाँ खेलने लगती है आँख मिचौली…

और फिर प्रारम्भ होता है ब्रह्माण्ड के तंत्र का जादू…

वर्तमान की जलती बुझती चिताओं के सामने पांच मकारों को साक्षी बना कर मेरा अघोरी खोज लाता है पिछले जन्म के कबीले का इश्क़…

माँ काली की चांदी सी आँखों से निकली ऊर्जा को एक ध्रुवीय कोने पर एकत्रित कर मुझे उस पर शक्ति रूप में खड़ा कर दिया जाता है…

दूसरा ध्रुव अघोरी की जन्मों की तपस्या से पहले ही आलोकित है…

गर्भनाल का रिश्ता शक्ति का अंश बन, जागृत करता है शिव की ऊर्जा को… और पिछले जन्म की सारी तपस्या एकत्र कर लौकिक दुनिया को तब्दील कर देता है अलौकिक जादू में….

मैं अपने नकारात्मक ध्रुव पर खड़ी अनुभव करती रही धनात्मक छोर पर खड़े अघोरी के स्वरूप को शिव में तब्दील होते हुए… लेकिन पहचान नहीं सकी अपने शक्ति स्वरूप को…

मेरा मैं “अहम्” के पर्वत पर खड़ा खोजता रहा “अहम ब्रह्मास्मि” का सूत्र… कहीं से कोई जवाब का संकेत नहीं, और वो पर्वत तिल-तिल कर टूटता रहा…  मैं अपने शिव स्वरूप को बार-बार पूछती रही अपने साथ के आठ वर्षों में, जो कुछ जादू घटित हुआ उसे सिर्फ तुम्हारी नज़रों से देखती रही और मानती रही…. मैंने क्या अर्जित किया इन आठ सालों में… आपकी बातों को मान लेने की विवशता के अलावा मेरे पास है ही क्या…

अपने वजूद के साथ धराशायी होते हुए मैंने अपने पुरुष के साथ परम पुरुष से आह्वान किया…  अब मानना नहीं चाहती… जानना चाहती हूँ मैं… अर्धनारीश्वर के स्वरूप के दर्शन के लिए और कौन सी तपस्या बाकी है… मुझे क्यों दिखाई नहीं देती ब्रह्माण्ड की वो जादुई दुनिया…. जिसकी वासी मेरी आधी देह है…. इस अर्धनारीश्वर की परिभाषा के लिए मेरी बची आधी देह को कब लौकिक जगत से उठाकर अलौकिक तक पहुँचाओगे?

नकारात्मकता ने मुझे इतना अधिक घेर लिया था कि मैंने गले से मंगलसूत्र उतार कर रख दिया… पैरों से पायल उतार दी… माथे की बिंदी, जहां मेरी ऊर्जा संग्रहित है, उसे नोंच कर फेंक दिया…

अस्तित्व ने सीधे शब्दों में समझाया… जिसे हम अपनी सुविधा के लिए नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा कहते हैं… वो वास्तव में ब्रह्माण्ड में व्याप्त उस चुम्बकीय क्षेत्र के निर्माण के लिए उपस्थित धनात्मक और ऋणात्मक दो ध्रुव हैं..

इसे चाहे भौतिक विज्ञान के शब्दों में चुम्बक के धन और ऋण ध्रुव कह लो, चाहे तंत्र के शब्दों में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा कह लो, या ब्रह्माण्ड जिन दो बिम्बों पर टिका है उस शिव और शक्ति का स्वरूप कह लो.. जो एक दूसरे के विपरीत नहीं एक दूसरे के पूरक हैं…

जिसे तुम नकारात्मक कह रही हो वो उस धनात्मक छोर के संतुलन के लिए पूरक है…. उस यज्ञ को संपन्न करने के लिए आवश्यक है जो ब्रह्माण्ड की योजना के अंतर्गत किया जा रहा है… इसे पूरा पूरा जी लो, फिर पता नहीं ऐसा समय और अवसर आये ना आये….

मैंने अस्तित्व के शब्दों को आदेश मान स्वीकार किया…. पूर्ण समर्पण के साथ अपनी ऋणात्मक भूमिका निभाई….

लेकिन इन दस दिनों की इस प्रक्रिया में, मैं तन और मन से पूरी तरह से थक चुकी थी….  मैंने अपने स्वामी के सामने एक बार फिर पूर्ण समर्पण किया – मुझे ठीक कर दो… मैं ये नहीं हूँ…. लेकिन मैं तो ये भी नहीं जानती मैं कौन हूँ… तुम कौन हो….

स्वामी ने आदेश दिया आप घर में भी बब्बा (ओशो) की माला पहनना शुरू कीजिये… और हम सुबह सूर्योदय से पहले उठेंगे…. मेरी हालत ये थी कि नींद आँखों से उड़ चुकी थी…. हम पिछले दस दिनों से रात तीन या चार बजे तक ही सो पाते थे.. बावजूद इसके सिर्फ दो घंटे की नींद लेकर सुबह सूर्योदय से पहले उठना शुरू किया…

आज सुबह भी नकारात्मकता अपने उरूज़ पर थी… सारे काम निपटाकर दोपहर एक बजे तक स्नान का मन बन पाया…. स्नानागार ऊपरी मंजिल पर है… और उसके बाहर कमरे में एक छोटा सा आईना लगा है… न जाने क्या हुआ जाकर आईने के सामने खड़ी हो गयी….

एक बार तो मैं खुद को पहचान ही नहीं सकी कि ये मैं हूँ… लगा जैसे पिछले दस दिनों में मैंने अपना चेहरा आईने में देखा ही नहीं था… मैं खुद को पहचान ही नहीं पा रही थी… छोटे से चेहरे वाली लड़की, नाक तीखी…. आँखें बिलकुल अलग.. उसे पहचानने के लिए मैं अपनी ही आँखों में बहुत देर तक झांकती रही….

पहले कभी जब मैंने त्राटक का यह प्रयोग किया था तो मैं कभी आँखों पर केन्द्रित नहीं हो पाती थी… स्वामी ध्यान विनय अपनी आँखों के साथ त्राटक करवाते थे तो कभी उनकी बाईं आँख में झाँकने लगती तो कभी दाईं…. वो हमेशा कहते थे बीच में केन्द्रित करिए… आँखें क्यों इधर उधर करती हैं… और मैं तंग आकर छोड़ देती थी प्रयास…

लेकिन आज आईने वाली उस लड़की को पहचानने के लिए जब उसकी आँखों में झाँका तो मैं हैरान रह गयी… दो आँखों की जगह मुझे अपनी चार आँखें दिखाई दी जो फिर कम होकर तीन रह गयी… जब मैंने बीच  वाली आँख पर नज़रें केन्द्रित की तो बाकी की दो आँखें भी गायब हो गयीं….

चूंकि स्नान करने के लिए ऊपर आई थी तो बब्बा की माला मैंने गले से निकालकर आईने पर ही टांग दी थी… जो कुछ घटित हो रहा था… पूरे होश में उसे अनुभव करने का प्रयास किया और पूरे समय बब्बा का स्मरण बना रहा… फिर उस तीसरी आँख के पार जो कुछ भी दिखा उसे देख मैं अचंभित हूँ…उसे शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए नामुमकिन सा है… बस लगा जैसे किसी खिड़की से उस पार की रोशन दुनिया को दूर से देख पा रही हूँ….

मैं प्रतीक्षा करती रही शायद बब्बा हाथ पकड़कर उस दुनिया में प्रवेश करवाएंगे… लेकिन वो मुझे वहां से लौटा लाये कह कर कि आज के लिए बस यहीं तक… अभी तो सिर्फ दस दिन तक तपस्या की है… अभी और तपस्या बाकी है…

अपनी दुनिया में लौटकर आई तो मेरा अपना परिचित चेहरा भी लौट आया था.. आँखों में कृतज्ञता के आंसुओं के साथ बब्बा को माथे से लगा लिया…

स्नान कर नीचे ध्यान बाबा के पास आई और पूरा किस्सा सुनाया.. उन्होंने माथे पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और मेकिंग इंडिया में प्रकाशित एक कविता पढ़कर सुनाने लगे..

तुम्हीं कहते थे
तुम्हीं सुनते थे
न मैं सुनती थी
न नज़रें मिरी उठने की ज़हमत करतीं
(यही तो मेरी जिद थी… सब कुछ तुम जानते हो… मेरे पास मान लेने के अलावा कोई विकल्प क्यों नहीं)

मैं तो दो आँखों के बीचोंबीच खुलते
तीसरे नेत्र के टुकड़े भर प्रकाश से
अचंभित थी…
(इधर ये कविता रची जा रही थी उसी समय मेरे साथ यह सब कुछ घटित हो रहा था)

योजना ने सब तत्व इकट्ठे कर दिए
पर मेरी आँखें थीं कि खुलती ही न थीं
जैसे पिछले जन्म की किसी नर्तकी ने अपनी आँखों से
ताज़े महुओं की महक़ से बनी शराब के
फाहे रख दिए हों पलकों पर

(सुबह से ध्यान बाबा नुसरत फ़तेह अली का एक गाना गुनगुना रहे थे… “किन्ना सोणा तेनू रब ने बनाया…” बाद में जब उन्होंने वो गाना दिखाया तो देखा उस गीत में नायिका को पांच तत्वों के साथ फिल्माया गया है..  लगा हाँ ये ब्रह्माण्ड की योजना ही थी जिसमें सारे तत्व मौजूद थे…. “नर्तकी ने अपनी आँखों से ताज़े महुओं की महक़ से बनी शराब के फाहे रख दिए हों पलकों पर”… और लगा पिछले जन्म की मेरी कहानी साक्षात मेरे सामने खड़ी है… )

मैं कहती कि ये गुफ़ा
ये मूर्तियां ये कलाकार
एक गुफ़ा से दूसरी की बदलती ख़ुशबुएं
सब महज़ संयोग भर है
कलाकार मेरी आँखों में झांकता और कहता
नहीं!
(इन दस दिनों में जादुई दुनिया के अस्तित्व को ठुकराते हुए ध्यान बाबा से यही शिकायत तो कर रही थी…. आज तक तुमने जितने जादू दिखाए सिर्फ इत्तफाक हैं… )

हम, तुम और ये नक्काशियां सब सभ्यताएं हैं
हम सब सभ्यताओं की स्थापत्य कला के उतने ही पुराने कारीगर हैं
कि जैसे हमारी देहें बदल गयी हों बस
और जन्मों के बाद उन मूर्तियों की मरम्मत के लिए
बुलवाये गए हों पुनः
(जन्मों के बाद उन मूर्तियों की मरम्मत के लिए बुलवाये गए हों पुनः.. ध्यान हमेशा से यही कहते आए हैं We Are chosen one… दुनिया में प्रेम के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए नियुक्त की गयी चेतनाएं )

कि अब स्त्री की नाभि पर पुरुष गढ़ दिए जाएँ
और पुरुषों की आँखों में स्त्रियों के रंग डाले जाएं
पर फिर वही
आँखें थीं कि खुलती ही न थीं
कलाकार ने झल्लाकर एक तस्वीर उतारी
उस तस्वीर में
तुम ही कहते थे
तुम ही सुनते थे
और मौन का संवाद
शिवलिंग पर अर्पित आस्था का सुफैद कनेर था…

(सबसे अच्छी मौन की भाषा…. ध्यान बाबा की मेरे लिए लिखी पहली और इकलौती कविता का शीर्षक है ये, और लगा जैसे मेरा अपने शिव को समर्पित आस्था का फूल खिल उठा…  )

ध्यान बाबा कविता सुनाते रहे… और मेरी आँखों से झर झर आंसू बहते रहे… लगा जैसे मेरे लिए ही लिखी गयी ये कविता… मेरे आज के जादुई अनुभव और उसके पीछे की ब्रह्माण्ड की योजना पर…

बच्चों को लेने स्कूल जाना था… देर हो रही थी… फिर इस पर ज्यादा बात नहीं हो सकी और हम उठ कर चल दिए… बाबा ने बाइक चालू की और घर से अगली गली के मोड़ तक पहुंचे तो वहां पर गायों का एक झुण्ड था…

इस रास्ते में अक्सर मिलती हैं गायें… बड़ा अच्छा शकुन होता है… गायों का मिलना.. बाइक  झुण्ड के करीब से गुज़री… अचानक मेरी नज़र बैठी हुई एक गाय पर पड़ी… मैं ज़ोर से चिल्लाई… बाइक रोको… बाइक रोको…

ध्यान बाबा ने तुरंत ब्रेक लगाया, मैं बाइक से उतरी और उस बैठी हुई गाय के करीब गयी… पूरे आठ बरसों बाद जीवन में दूसरी बार फिर एक ऐसी गाय को देखा जिसके सामने के दोनों पैर आगे की ओर खुले थे… मैंने एक बार पहले एक लेख में ज़िक्र किया है कि गायें जब बैठती हैं तो उसके आगे के दोनों पैर एक साथ कभी नहीं खुलते, या तो दोनों या एक पाँव हमेशा मुड़ा हुआ होता है…  यदि ऐसी कोई गाय दिखे जिसके दोनों पैर आगे की ओर खुले हों तो उसके पैर छूकर आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए, वो वास्तव में गाय नहीं होती…

मैं उस गाय के पास पहुँची उसके दोनों खुले पैर छूकर आशीर्वाद लिया… बीच सड़क पर बैठी गाय के पैर छूते हुए देख पता नहीं लोग क्या सोच रहे होंगे… लेकिन सिर्फ मैं और ध्यान बाबा जानते थे…. ये उस पांच जादू में से तीसरा जादू घटित हो रहा था जिसके बारे में एक रात पहले ही बाबा ने संकेत दे दिए थे… जिसे मैं त्राटक के उस अनुभव के बाद समझ पाई…

पहला जादू त्राटक करते हुए… तीसरे नेत्र के पार दिखती किसी जन्म की झलकें…

दूसरा जादू वो कविता… जो लिखी किसी और द्वारा गयी थीं लेकिन उसी समय लिखी जा रही थी जिस समय मैं इस अनुभव से गुज़र रही थी…

तीसरा गौमाता का आशीर्वाद…  और आँखों में कृतज्ञता के आंसू लिए मैं फिर से बाइक पर स्वामी ध्यान विनय के पीछे बैठी… रास्ते में हम बातें करते हुए आए थे अभी तक… लेकिन अब हमारे बीच मौन था… और मौन का संवाद..

बच्चों को स्कूल से लेकर घर लौटे… कुछ देर बाद पापा उस कमरे में आये जहां बैठकर हम मेकिंग इंडिया चलाते हैं….. हाथ में पायल, दो अंगूठियाँ, कान के फूल, नाक की लौंग लेकर… मुझसे कहा… ये लो अम्मा की हैं… उनके अंतिम समय में वो पहने थीं…

मैंने अपने दोनों हाथ फैला दिए… उन्होंने सारी वस्तुएं मेरे हाथ में रख दी… मैंने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया…

एक के बाद एक हो रही इन अद्भुत घटनाओं से मैं अभिभूत हुए जा रही थी… और ध्यान बाबा मुस्कुराते हुए कहते हैं …. चौथा जादू… आपने क्रोध में उतार दी थीं सुहाग की निशानियाँ…  अब ये जो मिला है वो मात्र निशानियाँ नहीं, आपको अस्तित्व ने अखण्ड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया है…

जिन लोगों ने मेरे अम्मा वाले लेख को पढ़ा है वो जानते हैं मेरे और अम्मा के बीच के असहज सम्बन्ध को और उनकी मृत्यु के बाद मिले उनके आशीर्वाद को…. आज ही के दिन उनकी विरासत मेरी झोली में आना… मेरे आज के जादुई अनुभव पर आशीर्वाद स्वरूप था.. इस घर में बहू के रूप में अपना स्थान प्राप्त करने की मेरी लम्बी यात्रा पर भी आज मोहर लग गयी ….

स्वामी ध्यान विनय की कही हुई बात एक बार फिर फलित हुई… वो हमेशा कहते हैं आप अचंभित होने की शक्ति को हमेशा बनाए रखियेगा… आप अचंभित होती रहेंगी तो अचम्भे होते रहेंगे… बस इसे देखने के लिए अपना साक्षी भाव बनाए रखना है… चाहे कैसी भी परिस्थिति हो… चाहे आप अवसाद के समंदर में मृत्यु प्राप्त कर लेने जैसी उत्कंठा से गुज़र रहे हों, या परमात्मा को पा लेने जैसी संतुष्टि से… इस साक्षी भाव को जब तक बनाए रखेंगी आपका जीवन जादू से भरा रहेगा और आपका यही जादुई स्पर्श दुनिया कभी आपके व्यक्तित्व के आभामंडल से, कभी आपकी लेखनी से, कभी आपकी ध्वनि से, कभी आपके स्पर्श से, तो कभी आपके प्रेमपूर्वक देख भर लेने से प्राप्त करती रहेगी….

बस यही, यही है इस जादुई दुनिया का रहस्य…  जिसे मैं कितना ही शब्दों में उतारने की कोशिश करती रहूँ … व्यक्तिगत अनुभव के बिना इसे समझाना नामुमकिन है..

ध्यान बाबा को यह लेख पढ़वाया तो कहने लगे ‘हमने’ तो पांच जादू की बात की थी ये तो चार ही हुए… पांचवां कहाँ है…

मैंने कहा पहले इस लेख के लिए चित्र ढूंढ लूं गूगल पर तब तक हो सकता है पांचवां जादू भी घटित हो जाए…

बस यह कहकर मैंने गूगल पर सर्च किया… “साक्षी भाव”

इससे पहले मैंने कई बार साक्षी भाव पर मेकिंग इंडिया पर लेख प्रकाशित किये हैं कभी अपने कभी औरों के लेकिन आज सर्च करने पर जो चित्र मेरे सामने उपस्थित था… उसे देख मैंने बाजू में बैठे ध्यान बाबा का हाथ पकड़ लिया…

उन्होंने अपने कम्प्युटर से नज़र हटाकर मेरे कम्प्युटर पर डाली.. और मुस्कुराकर कहने लगे…. हाँ यही है वो पांचवां जादू जिसके लिए हमें चुना गया है… हमारे अन्दर और उनके अन्दर एक ही अंतर्धारा बह रही है… उनकी भूमिका को भी वही संचालित कर रहा है जो हमारी कर रहा है… इसलिए आपके हर व्यक्तिगत लेख का भी समापन उन्हीं पर होता है…..

जिस ऋणात्मक ध्रुव की आप बात करती हैं इनके लिए वो विरोध के रूप में ब्रह्माण्ड के द्वारा तैयार किया गया है… सोचिये ये विरोध का ऋणात्मक ध्रुव यदि चुम्बक के दूसरे छोर पर  नहीं होता तो क्या इस व्यक्ति की धनात्मक भूमिका यूं उभर कर आई होती….

ब्रह्माण्ड में अच्छा-बुरा जैसा कोई शब्द नहीं होता, ऊर्जा के विपरीत रूप होते हैं जो एक दूसरे के पूरक होते हैं , और ये बात हमारे मोदीजी बहुत अच्छे से जानते हैं… इसलिए आपकी भूमिका माँ काली की वो शक्ति है जो इस शव को शिव बनाती है… इसलिए आप पर किसी विरोधी द्वारा कोई नकारात्मक ऊर्जा भी भेजी जा रही है तो आप उसको साक्षी भाव से देखते रहिये… देखिये कैसे नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग कर जो चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण हो रहा है उससे आपके आध्यात्मिक उन्नयन के साथ साथ राष्ट्र की चेतना का भी विकास हो रहा है… तभी तो ये पांचवां जादू यहाँ घटित हुआ…. ये कहते हुए उन्होने मुझे मोदीजी का यह चित्र दिखाया…

उस चित्र की वेबसाइट पर गयी तो वह मोदीजी की पुस्तक  “साक्षी भाव ” का लिंक था… जो उन्होंने माँ जगदम्बा के लिए लिखी है… मैंने अभी तक यह किताब पूरी नहीं पढ़ी बस आवरण पृष्ठ और मोदीजी द्वारा लिखी गयी यह प्रस्तावना पढ़कर ही यह “ज्ञान” प्राप्त हुआ कि ब्रह्माण्ड अपने आप में एक तंत्र है, जिसकी तांत्रिक क्रियाएं उस परम अघोरी शिव द्वारा ही संचालित हो रही है … ताकि हम उस तंत्र क्रिया से प्रकट माँ जगदम्बा के वास्तविक दर्शन कर सकें…

modi sakshi bhav book ma jivan shaifaly making indiaऔर मुझे विशवास है कि जब मैं इस पुस्तक को पढ़ना प्रारम्भ करूंगी तब उस का एक-एक अक्षर उस महान यज्ञ में आहुति स्वरूप होगा जिसके समापन पर वो अर्थ प्रकट होंगे जो केवल पढ़कर नहीं समझे जा सकते… उसको समझाने के लिए नमो को यहाँ अवतरित होना पड़ा, और ध्यान बाबा के आध्यात्मिक कैलाश पर उनकी अर्धांगिनी बनकर मुझे बने रहना होगा लौकिक दुनिया में..

जो लोग अध्यात्म और विज्ञान को जोड़कर देख पाते हैं वो समझ सकते हैं कि कैसे ब्रह्माण्ड की ऊर्जा काम करती हैं… पृथ्वी के एक कोने पर खड़े होकर जब आप किसी व्यक्ति को शिद्दत से करीब अनुभव करते हैं तो पृथ्वी के दूसरे कोने पर उपस्थित उस व्यक्ति की ऊर्जा दोनों स्थान पर उपस्थित होती हैं…

बकौल स्वामी ध्यान विनय – दो अलग-अलग स्थानों पर झंकृत हुई दो वीणाओं से जैसे एक ही सुर निकला हो…

और अंत में ध्यान बाबा का आशीर्वाद मिला कि सिर्फ “मानना” नहीं जानना” भी है के आपके दृढ़ संकल्प की ऊर्जा से घटित हुए इस जादू से आपकी आध्यात्मिक यात्रा की राह में आये पहले पड़ाव को आप पार कर गयी हैं…

आपके गर्भनाल से शुरू हुए स्वप्न के साथ अस्तित्व ने पिछले जन्म का एक संबंध आपके सामने साक्षात रूप में खड़ा कर दिया है,  जिसको साक्षी भाव से स्वीकारने के लिए आपने दस दिनों की कठिन तपस्या की है, और आपके अन्दर का कोई एक काँटा जो इस यात्रा में अड़चन बन रहा था वो ख़त्म हो गया है… काली अमावस की रात को पार कर नवरात्रि के पहले दिन माँ जगदम्बा ने आपको खुद आकर आशीर्वाद दिया है…. एक बार फिर मैं कह सकता हूँ आप फिर से नई हो गयी हैं…. अब उस अलौकिक “शक्ति” और आपकी इस लौकिक “शक्ति” में एक ही ऊर्जा बह रही है…

लेकिन आपकी तपस्या अभी ख़त्म नहीं हुई अभी 17 पड़ाव और आना बाकी है जो आपके अन्दर की 17 और अड़चनों को दूर करेगा…

तब हम और हमारे द्वारा निर्माण किये गए इन 18 स्तंभों के साथ मिलकर हम दुनिया के सामने गा रहे होंगे…

सत्य बीज है अंकुर है
सुन्दर फूल हजारा
दया करो प्रभु
हो ना कलंकित यह वरदान तुम्हारा

जिस वरदान के साथ मनुष्य जन्म लेता है… सत्य के बीज का अंकुर खिलाये हुए भी जो हज़ार पंखुड़ियों वाले उस कमल को खिलाये बिना ही इस जगत से कूच कर जाता है… तो वो इसे कलंकित करता है…. आये हो तो फूल खिलाकर ही जाना…..

बस आपको तैयार किया जा रहा है उस फूल को खिलाने के लिए… कोई फर्क नहीं पड़ता आपकी इन बातों को कितने लोग समझ पाएंगे लेकिन
मजेदार है ये सब कुछ.
सब कुछ
जो देखना चाहेंगे उन्हें दिखेगा, जो सुनना चाहेंगे वे सुन सकेंगे
जादू सर्वत्र घटित हो रहा है, प्रति पल घटित हो रहा है…
हम ही अनुभूत कर पाने में अक्षम हैं…
सारा अध्यात्म इसी अक्षमता को दूर कर अनुभूत कर पाने की पात्रता अर्जित कर पाने का खेल है…
और यह पात्रता उपलब्ध होते ही हम जान जाते हैं कि हम उसी जादू का हिस्सा हैं… हम वही जादू हैं… हम ही जादू हैं…
सबकुछ बहुत मजेदार है.

पुनश्च : उपरोक्त लेख के अर्थ और मर्म को समझने के लिए नीचे दिए लेखों को अवश्य पढ़िए…

नरेन्द्र मोदी और स्वामी ध्यान विनय के फ़कीराना जीवन की झलकियाँ देखनी हो ते ये लेख पढ़ें
रे फ़क़ीरा मान जा…

नरेन्द्र मोदी और स्वामी ध्यान विनय का पुस्तकों से प्रेम पढ़ने के लिए इस लेख को पढ़ें
हिम्मत ना हार, चल चला चल फ़क़ीरा चल चला चल

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जीवन के रंगमंच से : यार मिर्ज़ा! तुम तो साहिबां बना गए

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आकाश यात्रा : ये भविष्य की वो झलकियाँ हैं जिसके FLASH BACK में तुम जी रहे हो!

माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लिखी पुस्तक इस लिंक पर पढ़ी जा सकती है – “साक्षी भाव”

  • माँ जीवन शैफाली

 

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