पूर्णता का कोई प्रतिबिम्ब नहीं बनता बल्कि वो तो टुकड़ों टुकड़ों में हमें अनुभव होता है. जब कभी आँखें बंद करने पर अपने होने का अनुभव हमें कृतज्ञता से भर देता है तो हमारा अस्तित्व पूर्णता को प्राप्त हो जाता है.
जब हमारे सपने व्यक्तिगत सतही इच्छाओं के धुंध से मुक्त हो जाते हैं तो वह पूरे हो जाते हैं.
जब कोई प्रार्थना किसी एक दिल से निकलने के बावजूद सामूहिक समर्पण का दर्जा पा लेती है तो पूरी हो जाती है.
जब कोई व्यक्ति प्रेम के वरदान को प्राप्त कर खुद तक सीमित नहीं रखता बल्कि खुद प्रेम बनकर कण कण में बिखर जाता है, तो परमात्मा को प्राप्त हो जाता है.
और जो व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त हुआ है या परमात्मा जिसे प्राप्त हुए हो वह एक पूर्ण व्यक्ति होगा क्योंकि परमात्मा निराकार ज़रूर है अधूरा नहीं….
नवरात्रि के नौ दिनों तक हवा में एक अद्भुत सुगंध और ऊर्जा का अनुभव होता है. इन नौ दिनों तक भक्त इस ऊर्जा को ग्रहण करता है और अलग अलग तरह से उस निराकार शक्ति के प्रति कृतज्ञ होता है. कोई नौ दिनों तक व्रत रखता है, कोई नौ दिनों तक नंगे पैर रहता है, कोई नौ दिनों तक ज़मीन पर चटाई बिछाकर सोता है, कोई नौ दिनों तक रोज़ मंदिर जाकर अपनी आस्था को और प्रगाढ़ करता है.
कई लोगों के लिए ये सब मात्र उपक्रम है, आडम्बर है लेकिन सत्य तो यही है कि यदि इन आडम्बरों को भी आप सच्चे ह्रदय से करोगे तो प्रार्थना में बदल जाएंगे. जब आप अपने आडम्बरों में भी पूर्ण हो जाओगे तो हो सकता है वो निराकार आपको इस चित्र की भांति साकार रूप में दिख जाए.