कौन कैसे जान छोड़ता है, इसी से तय होता है वो हमारी सभ्यता में खाद्य है या नहीं

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एक मुर्गी की जान कितनी होती है, कुछ नहीं होती है…. ये गर्दन पकड़ी, दो बार घुमाई और काम ख़त्म…..

एक बकरे की जान कितनी होती है… मार के देख लेते हैं… बकरे के पैर बाँध दीजिये… एक बड़ा चाकू लेकर बकरे की गर्दन में चीरा मार दो.. दिल सारा खून पंप करके बाहर फेंक देगा… तब तक बकरा चीखने की कोशिश करता रहेगा…. लेकिन श्वांस नली फट जाने से उसकी चीख नहीं बस हवा की आवाज सुनाई देगी…..ये तो हुआ हलाल…

अन्यथा, यदि आपने हिन्दू होने का पाप किया है तो आप झटका भी ट्राय कर सकते हैं….. एक भारी चाकू बकरे की गर्दन पर दो-चार बार मारिये और सर अलग… बकरा बिना सर के भी दौड़ लगा सकता है…..आपको यहाँ भी पैर बाँधने पड़ेंगे. यहाँ बकरे की वेदना आपको सुनाई नहीं पड़ेगी…..और शायद उसको महसूस भी नहीं होती होगी क्योंकि दिमाग की सप्लाई आपने एक झटके में काट दी.

एक गाय/भैंसे की जान कितनी होती है? जिनको ऊपर का दृश्य कल्पना करके मितली आ गयी हो वो ये समझ लें कि भैंसे और गाय की कटाई देखते ही आपको हृदयाघात भी आ सकता है. झटका पद्धति से उनकी जान लेने में भारी भरकम चाक़ू से कई कई वार करने पड़ते हैं. और हलाल प्रक्रिया में मेरा चैलेंज है कि कोई सांड/भैसे को बिना बांधे कट मार कर दिखाये. यही घायल सांड यदि जान न लेले तो बोलना.

ये तो आँखों से दिखता है कि कौन कैसे जान छोड़ता है, तो इसी इमोशन से हम तय करते हैं कि वो हमारी सभ्यता में खाद्य है या नहीं. ये कोई राकेट साइंस नहीं है….. दाल-चावल और अन्य अनाज के भ्रूण/बीज बिलकुल शांति से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं तो उनको वेजिटेरियन मान लिया गया.

अनाज से भी अच्छे फल हैं जिनमे आप पेट भी भर लेते हैं और जीवन (बीज) को भी बचा लेते हैं. इसीलिए व्रत आदि में फलों को विशेष स्थान है. जड़ों को भी आप इसी दृष्टि से देख सकते हैं, बशर्ते जड़ बीज न हो.

अब जिनकी सभ्यता थोड़ी और एडवांस है, उनको पता है कि मांस ऐसे ही नहीं तैयार हो जाता. मांस को खिलाना पिलाना पड़ता है. खिलाना भी उसी धरती से उपजाना पड़ता है जो हमारे लिए भी अन्न उपजा रही है… और पिलाना भी वही पानी पड़ता है जो हम पीते हैं..

कुछ रिसर्चर लोगों ने अंदाज लगाये हैं कि अमरीका जितना पानी अमरीकी को नहीं पिलाता उससे ज्यादा बीफ को पिला देता है. जितना दुनिया भर के वाहन ग्रीनहाउस नहीं करते उससे कहीं ज्यादा गर्मी बीफ इंडस्ट्री से पैदा हो रही है.

सोचिये भारत में जहाँ आधी से ज्यादा आबादी पानी को आसानी से प्राप्त नहीं कर पाती वहां  बीफ के क्या मायने हैं.

आज का स्मार्ट, और फॉरवर्ड चेहरा बनिए… Leonardo DiCaprio और UN भी बीफ से लड़ रहे हैं..

लेकिन कितना भी विज्ञान और ज्ञान रख दें. बिना जबान वाले लोगों की जबान कबाब पर फिसलनी ही है.

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