अभी बीस-पच्चीस साल पहले तक की ही तो बात है….
पुलिस गश्त का मतलब पैदल-पैदल सीटी बजाते हुए घूमना….. पूरे थाने में एक बुलेट मोटरसाइकिल होती थी, धप-धप करती बाइक की आवाज से लफंगे-उचक्के एकदम से दायें-बायें हो जाते थे….
उस पर बैठे थानेदार का रौब कुछ अलग ही होता था….. जब ये बाइक कहीं रूकती तो क्या शरीफ, क्या बदमाश, सभी का एक-दो बून्द पेशाब तो निकल ही जाता था….
ग्रामीण थानों में गश्त वाली बीट सायं चार बजे ही निकाल दी जाती जिससे वे साईकिल से अपने इलाके में समय पर पहुँच जाएँ….
वहां ये सिपाही साईकिल कहीं रख कर पैदल या फिर साईकिल से गश्त करते थे…. दरोगा और सिपाही अपने इलाके के तमाम लोगों से व्यक्तिगत परिचय कुछ समय में ही कर लेते थे…
फिर छविराम डकैत आदि के समय पुलिसकर्मियों की हत्या या कहीं वाहन के अभाव में महत्वपूर्ण बदमाश निकल भागने की घटनाएं घटित हुईं तो…. पुलिस में सुधार के नाम पर जीप गाड़ी आयीं, तो थानाध्यक्ष की बुलेट छूटी तो छूटी.
वहीँ बीट के गश्त वालों के लिए डग्गेमार टैम्पो की व्यवस्थाएं शुरू हो गयीं…. केवल गश्त के कारण ही डग्गेमार वाहनों को छूट मिल जाती थी….
और जुआ और अन्य अनैतिक काम करने वाले अपनी गाड़ी की सुविधा थाने में देकर थानाध्यक्ष की कुर्सी के सामने जमने लगे….
अब हालत ये है कि एक-एक थाने में तीन-तीन सरकारी गाड़ियां…. 100 नंबर की गाड़ी…. चीता बाइक के अतिरिक्त भी हर सिपाही के पास अपनी निजी बाइक, लगभग हर दरोगा पर अपना निजी चौपहिया वाहन है….
चार दिन पहले तक किसी भी खाकी धारी को ऑन ड्यूटी पैदल देखना असम्भव था…. चीता बाइक तक पर भी हूटर लगे हुए हैं.
गश्त की गाड़ी हूटर बजाते निकल जाती है, चोर आराम से ताला चटका गली में खड़े वाहन में माल भर लेते हैं…
गलत काम के लिए कोई किसी लड़की को ले जा रहा होता है लेकिन कोई खाकी वाला उनको टोक नहीं पाता, पूछ नहीं पाता….
बाजार अतिक्रमण से घने और रोड पर जाम का झाम बढ़ता गया केवल ‘खाकी ऑन व्हील’ के कारण…. पुलिस बहुत पास रहकर भी आम जन और बदमाशों से दूर हो गयी….
ऐसे हालात में योगी जी का पुलिस को पैदल घूम कर गश्त देने वाला आदेश निश्चित ही पुलिसिंग के लिए चमत्कार पूर्ण होगा…. बदमाश घबराएंगे तो पुलिस के जनता से सामाजिक सरोकार बढ़ेंगे…..