कुछ दिन पहले की तस्वीर है जब शाम को वापिस घर आ रहा था, ट्रेन में भीड़ थी, क्योंकि होली मना कर लोग जन्मभूमि से कर्मभूमि की ओर जा रहे थे.
एक महाशय की इबादत का समय हो गया था और इन्हें कुछ देर के लिए कोई खाली जगह नहीं मिल रही थी. हम कुछ दोस्त जहाँ खड़े थे वहां इन्होंने हमसे रिक्वेस्ट कर थोड़ा हटने को कहा ताकि यह वहां अपनी नमाज पढ़ सके.
मुझे हैरानी हुई कि यहाँ टॉयलेट के पास अशुद्ध जगह में इबादत कैसे की जा सकती है?
आखिरकार इन्होंने दरवाजे के पास एक कोना देख कर अपनी जगह पसन्द की.
दुर्भाग्य से, वाश बेसिन के नीचे जो डस्टबिन रखा होता वह पूरा भरा हुआ था और अब उसमें तिल भर जगह नहीं बची थी, ऐसे में लोगों ने अपना कचरा एक कोने में डालना शुरू कर दिया (देखें चित्र) ताकि अगले जंक्शन में जब सफाईकर्मी आये तो उठा कर ले जाए.
मैं उस बंदे की इबादत देख कर सोच भी रहा था कि क्या गजब आस्था है? इतनी भीड़ में जहाँ आदमी जगह से हिलडुल ना सके, फिर भी यह समय की पाबंदी से अपना फर्ज निभा रहा है?
बहुत खूब.
खैर, उसने दिशा सूचक निकाल कर काबा की दिशा जानी और फिर शान्ति से अपनी नमाज ख़त्म की.
और ख़त्म होने के बाद शुक्राना अंदाज में हमें देख कर मुस्कुराये
मैंने उनसे बात शुरू की, उनसे जानना चाहा कि उन्होंने इसी दिशा की तरफ मुंह कर के नमाज क्यों अदा की? जबकि कुरआन के मुताबिक अल्लाह तो सर्वत्र होना चाहिए?
उन्होंने काबा के बारे में बताया. तो मैंने पूछा कि काबा तरफ मुंह करके इबादत करना भी तो बुतपरस्ती हुई? अल्लाह समस्त जगह है तो फिर किसी भी दिशा में नमाज करने से क्या फर्क पड़ता है? और वैसे भी ट्रेन तो जितने कर्व (घुमाव) से गुजर चुकी है उस लिहाज से तो काबा की दिशा अब आपकी पीठ तरफ हो चुकी होगी?
अब उनका चेहरा अजनबी होने लगा था, मेरी मूढ़ बातों को नजरअंदाज कर इतना ही कहा कि – नहीं, ऐसा करना फर्ज है, दिल से मानने की बात है.
ओके, मैंने कहा. लेकिन जहाँ आप नमाज पढ़ रहे वहां टॉयलेट आपके सामने था और तो और, लोगों की झूठन या गंदगी आपके पास पड़ी हुई थी, फिर भी यहाँ नमाज पढ़ना सही है क्या?
उन्होंने चेहरे पर नूर ला कर समझाया कि बात स्थान की नहीं होती सरदार जी, जज्बे की होती है. मेरे दिल और रूह में अल्लाह का ईमान है तो उसके और मेरे दरम्यान यह गंदगी या टॉयलेट का ख्याल भी कैसा?
वाह, क्या बात कही, बहुत बढ़िया.
फिर तो रामजन्म भूमि का मामला ही खत्म हो जाना चाहिए? क्योंकि आपके लिए कोई स्थान मायने नहीं रखता, जज्बा मायने रखता है.
जब आप लोग यहाँ टॉयलेट के करीब भी इबादत करने में कोताही नहीं बरतते तो बाबरी ढाँचे में इतनी जान क्यों अटका रखी है?
उन्होंने चेहरे पर वितृष्णा के भाव लाते हुए बगल से गुजरते वेंडर से पूछा, अगला स्टेशन कब आएगा?
मैं सोच रहा था कि क्या वाकई मेरा सवाल इन्होंने सुना नहीं या समझा नही.