मत करिए अत्याचार, एक दिन ख़त्म हो ही जाती है शरीर की सहनशक्ति

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आप मरे जग डूबा. यह कहावत हम सबने सुनी या पढ़ी है. चरक संहिता में एक श्लोक है जिसका अर्थ भी इस मुहावरे पर फिट बैठता है –

सर्वमन्यत् परित्यज्य शरीरमनुपालयेत्।
तदभावेहि भावानाम् सर्वाभावः शरीरिणाम्।।

अन्य समस्त कार्यों को छोड़कर पहले शरीर का पालन-पोषण करना चाहिए यानि शरीर को सर्वाधिक महत्व देना चाहिए क्योंकि शरीर है तो सब कुछ है, शरीर का अभाव होने पर सबका अभाव हो जाता है.

आम तौर पर हमसे यह भूल होती है कि हम अपने दूसरे कामों को शरीर के रखाव और पालन-पोषण से ज्यादा महत्व देते हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि शरीर इस उपेक्षा का तत्काल विरोध नहीं करता है.

गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो जाये तो गाड़ी तत्काल रुक जाती है पर भूख लगने पर भी हम काम में व्यस्त रहें, प्यास लगने पर पानी न पिएं, मल-मूत्र के वेग को रोक कर हाथ का काम निपटाने में लगे रहें, तब भी शरीर तत्काल विरोध नहीं करता है जबकि कोई कमी या विपरीत स्थिति होने पर कोई भी मशीन बंद हो जाती है.

शरीर की इस विशेषता और एडजस्ट करने की क्षमता का हम दुरूपयोग करते हैं और स्वास्थ्य रक्षा के प्राकृतिक नियमों की अवहेलना करते हुए शरीर से मनमाना काम लेते हुए इसे घसीटते रहते हैं. शरीर बेचारा हमारे अत्याचार चुपचाप सहता रहता है और हमारे आदेशों का पालन करता रहता है.

पर आखिर कब तक?

बूंद-बूंद करके भी घड़ा भरता तो है ही… उसी तरह शरीर पर किए गए हमारे अत्याचार का घड़ा भी धीरे-धीरे भर जाता है, तब बीमारियों के रूप में पर हमें हमारे अत्याचार का परिणाम देता है और हम दवा खा कर उसको दबा देने का प्रयास करते रहते हैं.

आहार-विहार के नियमों का पालन न करके मनमाने ढंग से दिनचर्या का पालन करने वाले काम तो अत्याचार ही कहे जाएंगे न.

ऐसे काम देर-सवेर शरीर को रोगग्रस्त कर ही देते हैं. क्योंकि शरीर की सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है.

गलत आहार-विहार को एडजस्ट करने की क्षमता जब समाप्त हो जाती है तब हम बीमार हो जाते हैं.

हम शरीर की तुलना में दिनचर्या के कार्यों को, दुनियादारी के कार्यों को ज्यादा महत्वपूर्ण समझते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि जो भी काम हम कर रहे हैं वो शरीर के कारण ही कर पा रहे हैं और यह शरीर ही आखिरी दम तक हमारा साथ देता है.

अगर शरीर ही नहीं रहा या होते हुए भी बेकार हो गया, रोगों से पीड़ित हो कर असहाय हो गया, अपाहिज हो गया तो इतनी हाय-हाय और दौड़ धूप से प्राप्त की गई सारी चीजें हमारे लिए व्यर्थ हो जाएँगी. हम उनका उपभोग करने के लायक ही नहीं रह जाएंगे.

ज़रा विचार तो करिए… और अपनी दिनचर्या की आदतों को सुधार लीजिए. अपने साथ-साथ दूसरों का, समाज का, देश का भी भला होगा.

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