औरत पर जब प्रेम अवतरित होता है तो वो संसार के सारे पुरुषों की प्रिया (पार्वती) हो जाती है…
औरत पर जब क्रोध अवतरित होता है तो पुरुष को शिव बनकर काली स्वरूप के चरणों में लोट जाना पड़ता है…
औरत पर जब क्षमा अवतरित होती है तो वो संसार के उन सारे पुरुषों को क्षमा कर देती है जिन्होंने उसका दैहिक, मानसिक या आध्यात्मिक शोषण किया हो..
औरत जब अपने वास्तविक स्वरूप में आती है तो जगत जननी बन संसार के सारे पुरुषों को अपनी कोख में धारण कर लेती है…
औरत जब भरी होती है तो उसके नौ स्वरूपों से नौ जन्मों की प्यास बुझ सकती है…
औरत जब खाली हो जाती है… तो कायनाती साज़िश दक्ष का हवन कुण्ड हो जाती है और औरत सती…. अपने खालीपन को पुरुष के तीसरे नेत्र की पलकों पर टिका देती है क्योंकि प्रकृति में कहीं निर्वात नहीं होता…
उम्मीदों से भरे खालीपन में शिव स्वरूप पुरुष को अपने तीसरे नेत्र की किरणों को उड़ेलने के लिए कभी कब ही अपना स्थान छोड़ नीचे भी आना पड़ता है…
तब औरत अपनी 51 ऊर्जा को एकत्र कर धारण कर लेती है शिव का स्वरूप… और जा बैठती है शिव के स्थान, कैलाश पर्वत पर उस स्थान की रक्षा के लिए….
लौकिक और अलौकिक दो दुनिया को देखने की जिनमें पात्रता होती है वही जान सकता है अर्ध्नारीश्वर का वास्तविक अर्थ… उनका ऊर्जा क्षेत्र इतना विस्तृत और दृढ़ होता है कि दुनियावी कारण के लिए शिव या शक्ति में से कोई एक अपना स्थान छोड़ भी दे, तब भी कायनाती दुनिया में दोनों एक साथ उपस्थित होते हैं….
किसी एक दुनिया से देखने पर सिर्फ एक ही दिखाई देगा… या तो शिव या शिव प्रिया…
दोनों को देखने के लिए उस कायनाती साज़िश का हिस्सा बनना पड़ता है जो खिलाफ नहीं होती कभी… बस हम सभ्यता की भाषा से उसे देखते हुए खारिज़ कर देते हैं… कभी फंस कर देखना इस साज़िश में… इस पार और उस पार के बीच का पुल टूट जाएगा और सारे रहस्य अर्धनारीश्वर की तरह दोनों दुनिया से देखे जा सकेंगे.