काम किया जाता है प्रोफेशनल्स की तरह स्वाभिमान से, ना कि नौकरों की तरह

मुझे फेसबुक पर दो तरह के लोगों से बहुत कोफ़्त होती है… दोनों हमेशा विषय से हटकर बात को उठा कर मेरे इंग्लैंड में रहने पर ले आते हैं…

एक कहता है, आप विदेश में रहते हैं, आपको भारत के बारे में बोलने का अधिकार नहीं है… दूसरा कहता है, आप इंग्लैंड में रहकर इंग्लैंड से लॉयल्टी नहीं रखते, जिस पत्तल में खाते हो उसमे छेद करते हो…

पहले वालों से तो बात करने ही का मन नहीं होता… हाँ हुज़ूर, यह देश मेरा नहीं है, आपका है… आप पान खाकर दीवाल पर थूकिये, सड़क के किनारे मूतिये, रेलवे प्लेटफार्म पर कचड़ा फेंकिये, दफ्तर में घूस लीजिये और लालू-मुलायम-सोनिया को वोट दीजिये…

और दूसरा वर्ग मुझे थोड़ा भ्रमित करता है. भारतीयों में लॉयल्टी की बहुत बड़ी बीमारी है… लॉयल्टी रखते वक़्त यह भी नहीं देखते कि लॉयल्टी रख किससे रहे हैं…

ऐसी ही लॉयल्टी बीरबल, टोडरमल और मानसिंह की अकबर से थी… ऐसी ही लॉयल्टी हमारे राजाओं, रायबहादुरों की अंग्रेजी राज और लाट साहबों से थी जिसके बल पर विदेशियों ने हम पर शासन किया..

हमारी ही पुलिस थी जो अंग्रेजी सरकार की नौकरी की लॉयल्टी में हमारे लोगों पर लाठी गोली चलाती थी.. हमारी ही गोरखा रेजीमेंट थी जिसे लेकर जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में गोलियां चलवाई थी.

हमारे ही तहसीलदार थे जो लोगों से टैक्स वसूल कर इंग्लैंड भेजते थे… वे सिर्फ नौकरियां नहीं करते थे, वे लॉयल्टी रखते थे… अंग्रेज़बहादुर के लिए जान देते थे. उन्हीं की लॉयल्टी के दम पर अंग्रेजों ने सिर्फ भारत नहीं, पूरी दुनिया पर राज किया…

मैं नौकरी करता हूँ, प्रोफेशनल हूँ. हम भारतीयों को, हिंदुओं को प्रोफेशनलिज्म और लॉयल्टी का अंतर नहीं पता.

मैं जब तक एक नौकरी में हूँ, उस नौकरी के प्रति प्रोफेशनल हूँ. इसमें सेंटिमेंटल होने वाली बात कोई नहीं है.

हम हिन्दू प्रोफेशनल नहीं होते, सेंटिमेंटल हो जाते हैं. और सेंटिमेंटल किसके लिए होना है, यह भी पता नहीं होता. सेल्फ और नॉन-सेल्फ का पता नहीं होता. लॉयल किसके लिए होना है, यह समझ नहीं है.

अपनी हज़ारों साल की सभ्यता के लिए लॉयल्टी नहीं होती. अपनी पहचान के लिए, अपने देश के लिए, अपने पूर्वजों के इतिहास के लिए लॉयल्टी नहीं रह जाती… लॉयल्टी हो जाती है अपनी नौकरी से, नौकरी देने वाले एम्प्लायर से?

दुनिया में कहीं भी एक कंपनी खोल दो, एक दफ्तर बना दो… वहां हिंदुस्तानी भर जाते हैं… नौकरी करने पहुँच जाते हैं… प्रोफेशनल्स की तरह नहीं, नौकरों की तरह…

क्या यही पहचान रह गयी है हमारी? पूरी दुनिया को नौकर सप्लाई करने वाला देश? हम कब समझेंगे, काम किया जाता है प्रोफेशनल्स की तरह… स्वाभिमान से.. ना कि नौकरों की तरह, लॉयल्टी से…

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