नजर टेढ़ी होती या नजरिया टेढ़ा होता है? कथित पत्रकार राना अय्यूब का यह ट्वीट टेढ़े नजरिये का सही उदाहरण है.
मोहतरमा कहती हैं कि (योगी सरकार के लिए) नैतिकता थोपनेवाली पुलिस और बूचडखाने बंद करना, बिजली, सड़क, पानी तथा किसानों की आत्महत्याओं से अधिक महत्व की हैं.
जाहिर है कि वे तंज कस रही हैं. लेकिन इसी में अपने टेढ़े नजरिये का भी परिचय दे रही हैं, देखते हैं कैसे:
शोहदों का उपद्रव क्या था, यह उत्तर प्रदेश की महिलाओं को पता है और समाजवादी पार्टी की राजनैतिक मजबूरियों के चलते उन पर कोई एक्शन नहीं होता था. समाज के लिए यह सुरक्षा की समस्या थी, जो क़ानून और व्यवस्था के दायरे में आती है.
जहाँ बूचडखानों की बात है, राना अय्यूब यह लिखना टाल जाती हैं कि ‘अवैध’ बूचडखाने बंद करवाए गए.
अगर आप को पता न हो तो किसी शाकाहारी जलपानगृह चलाने वाले से पूछिए कितने क्लियरन्स लेने होते हैं. बूचडखाने के लिए उससे कई ज्यादा जरुरी होते हैं. अवैध रूप से चलने वाला बूचडखाना बिना कोई नियम पालन के कितना प्रदूषण करता है, क्या राना अय्यूब को नहीं पता?
राना अय्यूब यह नहीं कहती कि शोहदों पर एक्शन लेना तथा अवैध बूचडखाने बंद करवाना तुरंत संभव था, बस राजनैतिक इच्छाशक्ति आवश्यक थी.
बिजली, सड़क, पानी, ये इंफ्रास्ट्रक्चर से सम्बंधित मुद्दे हैं. बस आर्डर पे हस्ताक्षर करने से कोई परिणाम नहीं दिखनेवाला.
वैसे भी, इन मुद्दों पर कोई निर्णय सुदीर्घ प्रक्रिया की पूर्ति के बाद ही संभव होता है, आनन फानन कोई निर्णय नहीं होते.
रहा किसानों की आत्महत्या का सवाल, यह केवल मुआवजों से हल नहीं होने वाला. आत्महत्याएं क्यों होती हैं इसके कारणों की पड़ताल कर के ही, आत्महत्याएं न हों इसके लिए पालिसी निर्धारित की जा सकती है.
व्यक्ति हो या सरकार, कामों के अग्रक्रम का अर्थ होता है, वे काम प्रथम किये जाएँ जो आसानी से और तुरंत किये जा सकते हैं.
सरकार के लिए यह भी जरुरी है कि उसके कामों का परिणाम जनता को दिखे. एंटी रोमियो स्क्वाड, कानून और व्यवस्था की समस्या थी, अवैध बूचडखाने पर्यावरण के साथ साथ बहुत ऐसे तत्वों को पुष्ट कर रहे थे जिनकी जड़ में यह प्रहार हुआ है.
राना अय्यूब इतने सालों से कार्यरत है, उनको यह बात पता ही होगी. अगर उनकी संवेदनाएं शोहदों तथा अवैध बूचडखाने चलाने वालों और उनसे लाभ पानेवालों के साथ हैं तो उसके कारण भी अज्ञात नहीं.
बिजली पानी सड़क के मुद्दों पर भी काम होगा, बस इन विभागों को निजी चारागाह समझकर चरते सांडों का इलाज करना होगा.
यह बात ईश्वर, गॉड या अल्लाह जो भी आप को कहना हो – जानता है. यूपी के जनता जनार्दन को भी यह बात अच्छे से पता है.
बस राना अय्यूब और उनकी व्यावसायिक बिरादरी वाले यह नहीं जानना चाहते. इलाज उनका भी जरुरी है.