अक्सर टीवी पर जब एंकर एक मिनट में 100 खबरों के नाम पर बड़ी तेजी से खबरों को आप के मुंह पर मार रहा होता है, तब इसी बीच एक खबर सुनता हूँ कि एक लड़के ने लड़की के चेहरे पर डाला तेज़ाब.
फिर उसकी डिटेल में वही पुरानी लाइन्स होती है जो आप को भी रट गयी होंगी के “लड़का करता था लड़की को काफी वक्त से परेशान. लड़की करती थी विरोध. गुस्से में आकर लड़के ने किया तेजाब से हमला. लड़की हस्पताल में दाखिल. पुलिस आरोपी की तलाश में जुटी”.
तब सोच में पड़ जाता हूँ आखिर ये कौन से लड़के है जो लड़कीयो को कन्विंस करने का हुनर नहीं सीख सके. उस तक अपनी बात नहीं पुहंचा सके. अपना प्रेम या प्रणय निवेदन, उस ढंग से नहीं रख सके, कि लड़की शरमा कर हाँ भी न कह सके और न भी.
बल्कि उसके उलट जो हमारी नहीं तो किसी की नहीं की तर्ज पर उस सौंदर्य को ही नष्ट कर दे.
ये लड़के कुछ भी हो सकते है पर रोमियो तो नहीं हो सकते.
मैं दो बेटियों का पिता हूँ वो भी 21वीं सदी की बेटियो का. मैं चाहूंगा कि बेटियों को इतनी आज़ादी तो हो कि वो अपना रोमियो चुन सके.
और इतनी सुरक्षा भी हो कि उनकी इच्छा बगैर कोई विक्षिप्त कुंठित व्यक्ति उनके तन और मन को आहत ना कर सके.
खैर फ़िलहाल योगी के एंटी रोमियो स्क्वायड के नाम और उसकी कार्यप्रणाली को लेकर विवाद जोरो पर है.
अब नाम में तो बहुत समस्या है. हो क्यों ना नाम बड़ी चीज़ है आखिर. कलजुग केवल नाम अधारा तुलसी ने यूँ ही नहीं लिख दिया होगा. उल्टा नाम जपही जग जाना वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना. अब उलटे नाम से ब्रह्म समाना हो सकता हैं तो सीधे नाम से तो ब्रह्म ही हो जाये.
नाम के बारे में मुझे भी लगा था कि यार ये रोमियो सुन कर खालिस रुमानियत महसूस होती है इस नाम से लफंगों लुच्चो को पकड़ने वाले स्कवायड का नाम नहीं रखा जाना चाहिए. जैसे ही लुच्चे लफंगे कहा तो पहला चेहरा उसी शख्स क याद आया जो आईने में मिलता ही रोज़. मैंने तुरन्त इस वाहियात शब्द के विचार पर रोक लगाई.
खैर रोड साइड रोमियो भी एक शब्द है जो अपने आप में एक व्यंग्य है और पहले गढ़ा जा चुका है. पर नाम को तीन चार बार दोहराने पर पाया के नाम तो सही है. ये स्कवायड तो एंटी रोमियो है.
तो सही तो है जो एंटी रोमियो मतलब के रोमियो के विरूद्ध है. रोमियो एक प्रेमी था प्रेमी है प्रेमी रहेगा. एंटी रोमियो वो जो प्रेमी नहीं था, प्रेमी नहीं है प्रेमी नहीं हो सकता. जिसमें रोमियो तत्व की कमी है और कामियो तत्व की अधिकता है.
अब ऐसी कुंठाओ पर लगाम कसनी तो बनती है. तो इस नाम का स्वागत है. जो एंटी रोमियो तत्व वाले लुच्चे लफंगे हैं उन पर लगाम लगनी चाहिए.
दूसरी बात कार्यप्रणाली. तो मेरा एक सुझाव है गेंहू के साथ घुन्न भी पिसता है. तो जो सच में एक दूसरे में डूबे युगल है, वो भी इस एंटी रोमियो पहल के फेर में न आ जाये. उसके लिए तरीका ये हो सकता है कि उनके पहचान पत्र लिए जाये.
फिर लड़की से पूछा जाए के अपनी मर्ज़ी है बैठी है या नहीं. फिर देखा जाये कि दोनों एक समुदाय से हैं या अलग अलग. समुदाय से मेरा मतलब ये नही के लड़का रफीक है और लड़की ऊर्जा तो ही दिक्कत है अगर लड़का राम और लड़की सकीना है तो भी उतनी ही दिक्कत है. (मैंने दिक्कत कहा गलत नही).
अगर एक समुदाय से हैं, बालिग हैं और लड़की अपनी मर्ज़ी से लड़के के साथ है तो उन्हें कुछ ना कहा जाये. अगर बालिग भी है और लड़की अपनी मर्ज़ी से है पर अलग अलग समुदाय से है तो भी उन्हें कुछ न कह कर उनके घर में सूचना दे दी जाये.
अब आप कहेंगे समुदाय का प्रश्न क्यों. तो बता दूं कि समुदाय कोई भी हो मगर हम भारत में है यूरोपियन देशों में नहीं. हम बेटियों को पालने में सिर्फ पैसा और वक्त खर्च नहीं करते. संस्कार और सम्मान भी खर्च करते हैं.
लड़कों के कंधों पर अगर वंश चलाने और परिवार को पालने का भार दिया गया है तो लड़कियों के कंधों पर भी संस्कार और सम्मान चलाने का भार है.
ये एक अलिखित सामाजिक व्यवस्था है जो भारत को भारत बनाती है. भारत में शेक्सपियर के रोमियोज़ का स्वागत है. पर एंटी रोमियोज़ के लिए अब स्कवाड है.