हमारे यहां यूपी के लोगों में पिछले कुछ सालों से, मने पिछले 10-20 सालों में माता वैष्णो देवी की तीर्थ यात्रा पर जाने का चलन बहुत बढ़ा है.
पूर्वी यूपी के लोग पारंपरिक रूप से मैहर देवी और विंध्याचल जैसे स्थानों पर जाया करते थे. माता वैष्णो देवी जाने का चलन अपेक्षाकृत नया है.
मैंने बहुत से युवाओं को और परिवारों को 20-30 या 40 लोगों का ग्रुप बना के ऐसी यात्राओं पर जाते देखा है.
एक बार इत्तेफ़ाक़ से बनारस से जालंधर आते हुए ऐसे ही एक स्थानीय ग्रुप से मेरी मुलाक़ात हिमगिरि एक्सप्रेस में हो गयी. कस्बाई जीवन में हर आदमी एक-दूसरे को जानता है.
मुझे ये देख कर तआज्जुब हुआ कि उस ग्रुप के ज्यादार युवा और मर्द पूरे रास्ते दबा के बीयर और दारू पीते आये. पैंट्री से मुर्गा भी आया. मतलब ये कि माहौल में कहीं भी कोई भक्ति भाव या तीर्थ यात्रा जैसा भाव न था….
20 घंटे की उस यात्रा में मुझे एहसास हुआ कि ये दरअसल तीर्थ यात्रा नहीं थी…. ये तो सीधे-सीधे पर्यटन (tourism) था जिसमें माता वैष्णो देवी का मंदिर एक पड़ाव भर था…. टूरिस्ट कटरा में माता के दर्शन कर आगे श्रीनगर, गुलमर्ग और पहलगाम की ओर बढ़ गए.
मैं ये नहीं कह रहा कि सभी तीर्थ यात्री इसी भाव से इन धार्मिक स्थलों पर जाते हैं पर ऐसे लोग भी कम नहीं. यही हाल मैंने नवरात्र में देवघर जाने वाले युवाओं का देखा है.
एक बार हमारे स्कूल में चलने वाली एक सूमो ऐसे ही कुछ शिव भक्तों को ले कर देवघर गयी थी.
वापस लौट के ड्राइवर ने बताया कि इन सभी शिव भक्तों ने, जो कि 20 से 25 वर्ष के युवा थे, रास्ते भर शराब पीते, गाडी में ही पी कर उल्टियां करते, उत्पात मचाते और रास्ते भर आते-जाते महिलाओं को छेड़ते, फब्तियां कसते तीर्थ किया.
इसके साथ मैंने पतंजलि हरिद्वार में रहते हुए ऐसे तीर्थ यात्री भी देखे जो पूरे नवरात्र में श्रद्धा भाव से नंगे पैर हरिद्वार से जल भर के ले गए….
कल योगी जी ने मान सरोवर यात्रा के लिए करदाता के पैसे से एक लाख रूपए की सब्सिडी का एलान किया.
मुझे ये समझ नहीं आता कि कोई आदमी मेरे पैसे से तीर्थ यात्रा क्यों करना चाहता है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा कुछ लोगों के लिए तीर्थ होगी तो कुछ के लिए पर्यटन…. जो भक्ति भाव से तीर्थ कर रहा उसे अपने पैसे से ही जाना चाहिए.
पर्यटक मेरे पैसे यानि सब्सिडी से कैलाश मानसरोवर का पर्यटन करें, ये कहाँ तक जायज़ है?