विख्यात अमरीकी डॉक्टर-वैज्ञानिक-शोधकर्ता डॉ रॉबर्ट श्नेइडर कहते हैं कि आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान दरअसल भारत के प्राचीन ज्ञान की याद दिलाता है. उनके अलावा प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलिआई इतिहासकार आर्थर बाशम ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द वंडर दैट वाज इंडिया’ में प्राचीन भारत में विकसित चिकित्सा प्राणाली पर विस्तार से लिखा है l
बाशम लिखते हैं कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा-विद्वान चरक व सुश्रुत द्वारा लिखे ग्रन्थ भारत में पूर्ण विकसित उस चिकित्सा प्रणाली के नतीजे थे जो कुछ मायनों में हिप्पोक्रेटस और ग्रीक प्रणाली से कहीं अधिक विकसित थी और जिसमें ‘एम्पिरिकल सर्जरी’, सीजेरियन, और हड्डी-चिकित्सा उच्च स्तरीय थी.
तत्कालीन विश्व में सर्वाधिक विकसित भारतीय प्लास्टिक-सर्जरी नाक, कान, और होठों की सर्जरी में उत्कृष्ट थी. अठारहवीं सदी तक भारतीय सर्जन यूरोपियन सर्जन से आगे रहे; अंग्रेज सर्जन भारतीय चिकित्सकों से ‘राइनोनोप्लास्टी’ सहर्ष सीखते थे.
औषधि-ज्ञान (फार्माकोलोजी) उन्नत था और औषधिय-स्त्रोत विशाल था, जिसमें जानवर, पौधे, और खनिज-पदार्थ आते थे. कई दवाएं यूरोप से बहुत पहले प्राचीन भारत में इस्तेमाल होती थीं; जैसे चौल्मुग्र-तेल जो कुष्ठ की आधुनिक चिकित्सा का आधार है. चरक के चिकित्सा-व्यवहार संबंधी नियम सार्वभौमिक और सर्वकालिक है तथा हिप्पोक्रेट्स के नियमों के समतुल्य हैं.
प्रसिद्ध इतिहासकार थॉमस ट्राउटमन और डेविड शुलमन समेत दुनिया के कई विख्यात इतिहासकारों द्वारा प्रशंसित बाशम – जो लन्दन और ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से संबद्ध रहे हैं – कुछ भारतीय इतिहासकारों के प्रोफ़ेसर भी रह चुके हैं, जैसे रोमिला थापर और आर सी शर्मा; पर आश्चर्य है कि जहाँ प्रसिद्ध इतिहासकार बाशम ने भारत के गौरवपूर्ण भारतीय ऐतिहासिक तथ्यों को इमानदारी से प्रस्तुत किया है, वहीँ उनके शिष्य भारतीय वामपंथी इतिहासकारों ने उन गौरवपूर्ण तथ्यों को ढंकने, तोड़ने मरोड़ने और लघुकृत करने का कुत्सित खेल खेला है.
क्या निहित स्वार्थों से तोड़ मरोड़ कर लिखे गए भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन का अब समय नहीं आ चुका है?
(प्रयुक्त तथ्यों के सन्दर्भ : (1) Arthur Basham’s book “The Wonder That was India” , (2) Interview of Dr Robert Schneider, (3) Interview of Thomas Troutman (4)Interview of David Shulman)