उत्तर प्रदेश सरकार को अपने किये किसानों की कर्ज माफी के इस वादे को निभाना है, यह बात अगर सबसे ज्यादा अच्छी तरह पता है तो प्रदेश की योगी सरकार को पता है.
मंत्रिमंडल की बिना कोई बैठक हुए भी माफ़ी कब! माफ़ी कब! की आवाजों के बीच प्रदेश सरकार इस मामले में अपने काम पर है.
उत्तर प्रदेश में दिसंबर 16 तक हम कुल 67 लाख सीमांत और छोटे किसान हैं… जो औसतन 90 हजार रुपयों के कर्ज में हैं. अब यहां मैंने ‘हम’ क्यों लिखा इस बात पर बाद में आएंगे.
सरकार को कुल कर्ज माफी के लिए 62 हजार करोड़ रुपयों के भार को सहन करना है. मुख्यमंत्री कार्यालय के रिपोर्ट मांगने पर वित्त विभाग से मीटिंग के बाद सीएम को जानकारी दी गयी है कि :
1. अगर कुल कर्ज माफ होना है तो 62 हजार करोड़ राज्य सरकार वहन करे. इसके लिए अतिरिक्त आमदनी की व्यवस्था करे.
2. राज्य सरकार बैंकों के कर्ज को खुद पर ले ले और किश्तों में बैंकों को अदायगी करती रहे.
3. अगर कर्जमाफी की सीमा 50 हजार की फिक्स कर दी जाय, यानी 50 हजार तक के कर्जे माफ़ हों तो राज्य सरकार को 67 की जगह सिर्फ 33 हजार करोड़ खर्च करने पड़ेंगे.
मंत्रिमंडल की पहली औपचारिक बैठक अभी तक नहीं हुई है और अगर इस निर्णय को पहली बैठक में होना भी है तो उसके लिए सरकार का होमवर्क सामने है.
अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट को लेना है… जब भी मंत्रिमंडल की औपचारिक बैठक हो.. और उस बैठक के एजेण्डे में कर्जमाफी विषय के तौर पर हो.
अब… सीमांत और छोटे किसान लिखते समय मेरे ‘हम’ लिखने की बात.
जरा ईमानदारी से सोचियेगा क्योकि कागजों में मैं किसान बहीधारी किसान हूँ और बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड के अगेंस्ट सस्ते दर पर फसली खर्च के लिए कर्ज लेने का अधिकारी हूँ.
ये बात दीगर है कि हर फसल बोता हूँ, खेत में कदम नहीं रखता, झटके में बोल दें तो खेत पहचानने में गड़बड़ी कर दूंगा. फिर भी किसान हूँ जी! क्रेडिट है…
90 हजार के औसत कर्जदार इन 67 लाख किसानों ने क्या ये रूपये केवल किसानी में लगाने के लिए लिए हैं? या लिए जाते रहे हैं?
सस्ते दर पे खेती के नाम का कर्ज लेके मोटरसाइकिल-कार, दूकान, शादी, मकान, सऊदी-बैंकाक का वीजा लगवाने की आदत भी सुधारनी होगी सरकार को उचित पड़ताल करने की व्यवस्था कर के.
अपने संकल्प पत्र की तरफ बढ़ती सरकार के बीच उनके निर्णय का इंतज़ार रहेगा.