भारत की राजनीति गरीबी पर बहुत घूमती है. खासतौर पर किसान और मजदूर. किसानों, मजदूरों की गरीबी दूर करने की घोषणाएं तो बहुत हुई लेकिन ज़मीन पर असर कभी नहीं दिखा. आज़ादी के 70 सालों तक नहीं दिखा.
आज करीब भारत में 48 करोड़ लोग ब्लू कॉलर्ड एम्प्लाई हैं. तमाम छोटे बड़े उद्योगों, खेतों, फैक्ट्री, व्यापार में काम करने वाले मजदूर हैं.
इन्हें दो भागो में बांटा जाता है, आर्गनाइज्ड और अनआर्गनाइज्ड सेक्टर. सिर्फ 4 करोड़ मजदूर आर्गनाइज्ड सेक्टर में हैं जिन्हें सोशल सिक्योरिटी यानी मिनिमम वेज (न्यूनतम मजदूरी), PF, ग्रेच्युटी, इंश्योरेंस और पेंशन की सुविधा मिलती है.
अनआर्गनाइज्ड या इनफॉर्मल सेक्टर में सिर्फ 8% यानी करीब 4 करोड़ मजदूरों को किसी न किसी तरह की सोशल सिक्योरिटी हासिल है. लेकिन 40 करोड़ मजदूरों को किसी भी तरह की सोशल सिक्योरिटी हासिल नहीं है.
वजह है कि आज तक आज़ादी के 70 सालों के बाद भी इन मजदूरों को फॉर्मल सेक्टर में लाने का प्रयास नहीं किया गया. ट्रेड यूनियन हर राजनैतिक पार्टी की हैं. लेकिन इन मजदूरों की बेहतरी के लिए काम करने वाला कोई नहीं रहा.
इनको पार्ट टाइम दिखाया गया, डेली वेजेस पर काम करने वाला दिखाया गया लेकिन परमानेंट नहीं किया गया, ताकि लेबर लॉ लागू न हों. स्माल स्केल इंडस्ट्री में भी ऐसे नियम बने कि उन्हें इन मजदूरो को PF पेंशन न देनी पड़े.
ऐसा कानून है कि अगर किसी फैक्ट्री में 20 से कम मजदूर हैं तो उन्हें सोशल सिक्योरिटी लाभ देने की जरूरत नहीं है.
इस 17 मार्च को जब देश यूपी में भाजपा सरकार बनने की ख़ुशी में झूम रहा था, लेबर मिनिस्ट्री ने एक नए कानून का ड्राफ्ट जारी किया.
इस नए कानून के बन जाने के बाद हर मजदूर को सोशल सिक्योरिटी मिलना उसका मूल अधिकार होगा. भारत के संविधान द्वारा इसकी गारंटी दी जाएगी.
फिर चाहे वो मजदूर किसी बड़ी फैक्ट्री में काम करता हो या ऐसी फैक्ट्री जिसमें सिर्फ एक ही मजदूर है.
ये कानून उन पर भी लागू होगा जो सेल्फ एम्प्लॉयड हैं, जैसे बढ़ई, प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन, नाई, दुकानदार सभी पर. सभी खेतिहर मजदूर इसके दायरे में आएंगे. और घरेलू नौकर भी.
हर मजदूर, या कहीं भी कोई भी काम करने वाले व्यक्ति का आधार कार्ड के बेस पर रजिस्ट्रेशन होगा. इसके लिए हर प्रदेश में एक एम्प्लाई बोर्ड बनेगा.
हर मजदूर, शिक्षक, क्लर्क, ऑफिसर, सभी के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा. हर व्यक्ति को सोशल सिक्योरिटी स्कीम्स का लाभ मिलेगा.
हर फैक्ट्री, व्यापारी, किसान जो खेतिहर मजदूरों के जरिये खेती करते हैं, नागरिक जो घरेलू नौकर रखते हैं, उन्हें अपने यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.
न सिर्फ रजिस्ट्रेशन बल्कि फिर हर महीने उनका PF, इंश्योरेंस, पेंशन, ग्रेच्युटी काटकर वो पैसा इन बोर्ड में जमा कराना होगा. अगर नहीं किया तो जेल.
और रजिस्ट्रेशन का अर्थ है, तमाम इनफॉर्मल सेक्टर एक झटके में आर्गनाइज्ड सेक्टर में बदल जायेगा. मजदूरों, कर्मचारियों का शोषण ख़तम होने लगेगा.
जब सरकार ने नोटबंदी की तो साथ में कैशलेस सिस्टम शुरू किया. जनवरी में सरकार एक नया कानून लेकर आयी कि हर कर्मचारी को, मजदूर को सैलरी चेक से उसके बैंक अकाउंट में देनी होगी.
ये कोई साधारण कानून नहीं है. पहले लोग अपने यहाँ मजदूरों को पार्ट टाइम दिखाते थे, बीच-बीच में उनकी सर्विस ब्रेक कर दिखा देते थे ताकि परमानेंट न करना पड़े.
नकदी की व्यवस्था में चल जाता था, लेकिन बैंक अकाउंट में सैलरी ट्रांसफर होगी तो नहीं चल पायेगा. न ही मिनिमम वेजेस से कम सैलरी दे पाएंगे. और अब नए कानून से उन्हें समस्त सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स भी देने होंगे.
अगर नोटबंदी एक क्रान्तिकारी कदम था, तो ये नया कानून सोशल सिक्योरिटी की गारंटी आज तक के इतिहास में सबसे बड़ा क्रान्तिकारी कदम होगा.
और अगर नोटबंदी से भारत की अर्थव्यवस्था पर तात्कालिक बुरा प्रभाव पड़ा था, तो ये कानून छोटी इंडस्ट्रीज़, छोटे व्यापारियों, कंपनियों को बर्बाद भी कर सकता है.
यही कारण है कि इसका विरोध शुरू भी हो चुका है. आज तक कम मजदूरी-सैलरी देकर छोटी कम्पनियाँ मार्केट में कॉम्पिटिटिव बनी हुई थीं. मजदूरों के शोषण से फायदा मालिकों को था.
ये कानून लागू होने से इन सभी की प्रॉफिटेबिलिटी पर बुरा असर पड़ना तय है. बहुत सी कम्पनियाँ बंद भी हो सकती हैं.
बहुत सी फैक्ट्री, कंपनी अपने कर्मचारियों, मजदूरों को विवश करेंगी कि वो इस नए कानून के चलते अपनी सैलरी से PF पेंशन की भरपाई करें.
आने वाला समय बेहद कठिन होगा. जो सेल्फ एम्प्लॉयड लोग इतना भी नहीं कमा पा रहे हैं कि वो न्यूनतम मजदूरी के बराबर हो, उन्हें रकम जमा नहीं करनी होगी. उनके लिए सरकार एक अलग से फंड से व्यवस्था करेगी.
इसका दूसरा अर्थ है कि अब हर मजदूर की न्यूनतम मजदूरी, और सोशल बेनिफिट सुनिश्चित होगा.
और ये कड़ा फैसला और विरोध झेलने के लिए वाकई 56 इंच के सीने की जरूरत है. लेकिन अगर ये लागू हो गया तो आजादी के बाद पहली बार मजदूर सुख की सांस भी लेगा.
खुद प्रधानमंत्री अपनी अध्यक्षता में नेशनल सोशल सिक्योरिटी कॉउन्सिल बना रहे हैं जो इस पूरे प्रकरण को गाइड करेगी, पॉलिसी बनाएगी और क्रियान्वन सुनिश्चित करेगी.
और मजदूरों का पैसा जो सरकार के पास जमा होगा, उससे सरकार पूरे समाज के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी बना सकेगी.
इंडस्ट्री, शेयर बाजार में इसका निवेश होगा. ये रकम लाखों करोड़ में होगी जो देश की आर्थिक प्रगति में काम आएगी.
इसीलिए मैं कहता हूँ कि मोदी सरकार जिंदाबाद, लॉन्ग लिव मोदी जी.