1993 की फरवरी में ज़ी टीवी पर ‘तारा’ धारावाहिक शुरू किया गया. कहने को बहुत साधारण सी घटना है लेकिन भविष्य इसके अच्छे-बुरे परिणाम सामने लाने वाला था.
तारा धारावाहिक 1993 से 1997 तक चला और इसने धारावाहिकों की दुनिया हमेशा के लिए बदलकर रख दी. इससे पहले किसी ने नहीं सोचा था कि धारावाहिक इतने लंबे वक्त तक चलाए जा सकते हैं.
दूरदर्शन पर बुनियाद, मालगुड़ी डेज़, हम लोग और नुक्कड़ शुरूआती दौर के ऐसे सीरियल रहे जो एक से दो साल तक चले.
ये वो दौर था जब कला को दुधारू गाय नहीं समझा जाता था. कहानी को आज की तरह कई किलोमीटर नहीं फैलाया जाता था. कम से कम 13 और अधिक से अधिक 100-150 एपिसोड में कहानी खत्म हो जाती थी.
मैंने यहाँ रामायण/ महाभारत को विषय से अलग रखा है क्योंकि ये महाकाव्य हैं और अनगिनत एपिसोड बनाए जा सकते हैं. तो हिसाब कुछ इस तरह है.
मालगुड़ी डेज (1987) – 39 एपिसोड – आज भी रिपीट वैल्यू रखता है. तीन बार प्रसारित किया गया.
बुनियाद (1986) – 104 एपिसोड – रिपीट वैल्यू और दो बार प्रसारित. आज भी डीवीडी और पेन ड्राइव पर देखा जाता है.
हम लोग (1984) – 156 एपिसोड – टीवी पर ‘हुक पॉइंट कॉन्सेप्ट’ इसी सीरियल से उपजा. दर्शक को ऐसा अटकाओ कि वो अगला एपिसोड देखने के लिए मजबूर हो जाए.
ये लेखा-जोखा बताता है कि आज के दौर में जो ‘पांच हज़ारी’ सीरियल चल रहे हैं उनमें से किसी में भी ‘मालगुड़ी डेज़’ या ‘हम लोग’ के एक एपिसोड के सामने टिकने की ताकत नहीं है.
क्या आज चल रहे सीरियल रिपीट वैल्यू रखते हैं. क्या आप कोई सीरियल पेन ड्राइव में ले जाने की इच्छा रखते हैं. हुक पॉइंट कॉन्सेप्ट का हद से ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है.
तारा सीरियल से ही रचनात्मकता का दौर खत्म होने लगा था. यहाँ कोई सृजन नहीं करना चाहता. एक बालिका वधु सफल होता है तो सब भेड़ चाल में सीरियल बनाने लगते हैं. पैसे की अधिकता ने इनके दिमाग कुंद कर दिए हैं.
बुनियाद के निर्माता रमेश सिप्पी हैं और आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि 2016 तक दूरदर्शन ने उन्हें सीरियल का पैसा ही नहीं दिया था. सोचिए बुनियाद को ‘रिपीट रन’ माना जाता है और इसका ही पैसा नहीं दिया गया.
सोद्देश्य मनोरंजन पहली शर्त होनी चाहिए लेकिन पैसा पहली शर्त है. पहले की कड़ियों में प्रभावी नज़र आ रहा ‘पेशवा बाज़ीराव’ पर ‘हुक पॉइंट कॉन्सेप्ट’ का असर नज़र आ रहा है.
बाज़ी की किशोरावस्था को बेवजह के प्रसंगों से खींचा जा रहा है. तारा धारावाहिक को मैं इस अति व्यवसायिकता का कारण मानता हूँ.
और अंत में
हमने चलने दिया इसलिए चल रहा हो, ऐसा भी नहीं है. यहाँ टीआरपी का अस्त्र हाथ में है जिसे चाहे सफलता दिलाई जा सकती है.
मैंने बहुत खोजी थी टीआरपी मशीन लेकिन कहीं मिली नहीं. शायद ये मशीन हवा में होती है जो बताती है कि कौन सा धारावाहिक टॉप पर है.
और एक हमारा बचपन था जब रामायण का एपिसोड शहर में एक घंटे का कर्फ्यू जैसा माहौल बना देता था. ये उन दिनों की जीती-जागती टीआरपी थी, आज की तरह हवा-हवाई नहीं.
फ़ोटो – तारा धारावाहिक