बीफ (बड़े का मीट) की उपलब्धता किसी का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता, हां… यह किसी के भोजन की स्वतंत्रता जरूर हो सकती है.
यदि आपके-मेरे खाने की कोई जरूरत किसी अवैध, गैर-प्रामाणिक, अशुद्ध और अस्वस्थ कारोबार के जरिये पूरी की जाती रही हो, तो इसे कायम रखना सरकार की जिम्मेदारी नहीं हो सकती.
बल्कि तंत्र की एकमात्र ज़िम्मेदारी अवैध कारोबार को बंद कर कानून का राज स्थापित करना है.
अवैध बूचड़खानों से सप्लाई बंद होने की वजह से पैदा हुई बीफ की दिक्कत बाजार का विषय है, सरकार का नहीं.
ध्यान रखिए… प्रदेश के पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) में कोई रूकावट नहीं आई है.
मांग के अनुसार तय मानकों पर स्वस्थ, वाजिब दामों पर खाद्य वस्तुएं बाजार में उपलब्ध हों यह राज्य सरकार का कार्यक्षेत्र नहीं, बाजार का काम है हमारी अर्थव्यवस्था में.
अपने-अपने वैध बाजारों से अपेक्षा रखनी होगी कि वे हमें-आपको आपकी पसंद (जरूरत नहीं) का उत्पाद मुहैया कराए.
सरकार, जो अब तक अवैध के खिलाफ अपना काम न कर रही थी, वो करती नजर आ रही है : बाजार इस मामले में उपभोक्ता की जरूरत पूरी करने के लिए वैध ढंग से आगे बढ़े.
क्योंकि आपके हर परेशान सवालों और भोजन की आजादी वाले ख्यालों का बस एक सीधा सा जबाब है : उत्तर प्रदेश में बीफ उर्फ़ बड़े का मांस खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
अभी तक अगर हमारी-आपकी जरूरतें अवैध ढंग से पूरी होती रही हैं तो उसके वैध होने तक… आपूर्ति सुनिश्चित कराना राज्य सरकार का काम नहीं.
पसंद-ना पसंद के लिए बाजार चलिये, सरकारें जरूरतों की पूर्ति के लिए होती हैं : इतना तो आज़ाद रहिये!
वैध की बात करिये, अवैध की फ़िक्र करना कानूनन और सामाजिक दोनों तौर पर अनैतिक है, पाखण्ड है.
अवैध अफवाहें न फैलाइये, जाइये… पूरे सूबे समेत… लखनऊ अमीनाबाद की वैध टुंडे कबाब की दूकान खुली है.