लखनऊ का टुंडे कबाबी पूरी दुनिया में मशहूर है और अवैध बूचड़खाने के बन्द हो जाने पर, उसकी दुकान बंद हो गयी है यह खबर भी उसी तरह मशहूर होती जा रही है.
जो खाने वाले नहीं हैं या लखनऊ के नहीं हैं, वो गाहे बगाहे यह लानतें भी फरमा रहे हैं कि अब तक वहां जिन लोगों ने खाया है, वह बकरे की जगह बड़े का खाया है.
खैर, इस अर्धसत्य पर बाद में आऊंगा, फिलहाल तो यही लग रहा है कि योगी जी द्वारा इन अवैध बूचड़खाने को बंद किये जाने पर हो रही राजनीति में टुंडे कबाबी के मालिकान, खुद कबाब में हड्डी बन गए है.
यहां लखनऊ में टुंडे बन्द हो जाने की खबर से कोई आसमान नहीं टूट पड़ा है क्योंकि टुंडे बन्द ही नहीं हुआ है. हाँ कल दोपहर तक बन्द रहा था क्योंकि उसके यहां जहाँ से रेगुलर माल आता था, उसकी दुकान ही बन्द हो गयी थी.
बात यह है कि टुंडे की असली पुरानी दुकान चौक में है और वहां हमेशा से बड़े का ही मिलता है और वहां बड़े का खाने वाले ही जाते हैं.
उसकी दूसरी मशहूर दूकान अमीनाबाद की है, जहाँ बड़े के साथ बकरे और मुर्ग का बना सामान मिलता है.
इस जगह पर जब तक आप बड़े की फरमाइश नहीं करते है तब तक नहीं मिलता है. इस लिए उन लोगों को परेशान नहीं होना चाहिए जिन्होंने अमीनाबाद में कबाब पराठा खाया है.
टुंडे अपने बड़े की दुकान बंद होने से जरूर तकलीफ में होंगे क्योंकि अवैध बूचड़खाने से आया बड़े का माल यकीनन सस्ता आता है और उससे बना सामान सस्ता ही बिकता भी है.
बड़े से बने खाने के सामान की खपत भी चौक की दूकान पर ही ज्यादा होती है, जो कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है.
खैर, लखनऊ में मामला टुंडे सहित अन्य दुकान से बेचे गये सामान से ज्यादा, अवैध बूचड़खाने के बन्द हो जाने से धंधे में लगने वाली लागत बढ़ने के साथ पर्याप्त मात्रा में वैधानिक तरीके से बड़े के माल न मिलने की है.