JNU में मनाया जाने वाला महिषासुर शहादत दिवस और माँ दुर्गा के लिए लिखे अपशब्दों के विरोध में जब तात्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी संसद में बैठे उन तमाम लोगों को ललकार रही होती हैं, जो निर्भया केस में सड़कों पर उतर कर मोमबत्तियां जला आए थे…. और जब सोशल मीडिया पर उनका वीडियो ऐसे वायरल होता है जैसे नवरात्रि में व्रतधारी भक्तों की प्रार्थना पूरे देश और उसकी चेतना पर छा जाती है…
उसी समय मेरे इनबॉक्स में असुर जाति के संरक्षक के रूप में और स्मृति इरानी के उस भाषण के विरोध में एक अन्य वीडियो का लिंक देते हुए एक महाशय आते हैं और जो लिखते हैं वो मैं नीचे दे रही हूँ –
1. महिषासुर दिवस सिर्फ जेएनयू में नहीं मनाया जाता। यह देश के लगभग 350 स्थानों पर मनाया जा रहा है।
2. महिषासुर दिवस मनाने वालों में सबसे अधिक संख्या आदिवासी मूल के लोगों की है। बडी संख्या में पिछडे और दलित भी महिषासुर दिवस मनाते हैं।
3. असुर नाम की एक जनजाति है, जिसे भारत सरकार ने आदिवासियों में भी ‘आदिम’ की श्रेणी में रखा है। उनकी संख्या सिर्फ 9000 बची है। वे स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इस देश में महिषासुर के सैकडों स्मारक और स्थल हैं, जिनमें से कुछ को भारत सरकार के पुरात्त्व विभाग ने प्राचीन सभ्यता को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना है तथा उन्हें संरक्षित कर रखा है।
4. आपने अपने भाषण में बंगाल की बात की और तृणमूल कांग्रेस को आडे हाथों लिया। अकेले बंगाल में कलकता से लेकर मालदा, पुरूलिया तक लगभग 150 जगहों पर महिषासुर दिवस मनाया जा रहा है।
5. दुर्गापूजा का त्योहार इस देश की संस्कृति के लिए काफी नया है, जबकि महिषासुर का बहुत प्राचीन। भाषण देने पहले अपने अधिकारियों से कम से कम गुगल करवा लिया करें लें। वैसे अब भी देर नहीं हुई है, गुगल करके देखें। आपको मालूम चल जाएगा कि महिषासुर दिवस के विरोध में बोलकर आपने प्राचीन भारतीय संस्कृति का कैसा अपमान किया है।
मैं चाहती तो उन महाशय का नाम लिख सकती थी लेकिन जैसा कि संसद में स्मृति इरानी ने कहा था कि नामों के साथ गंदी राजनीति करना उन्हें नहीं आता. तो मुझसे उम्र में एक साल छोटी स्मृति से भी मैं अच्छी बात सीखने के लिए हमेशा तत्पर हूँ .. क्योंकि उम्र वर्षों से नहीं अनुभव से नापी जाती है….
एक एक पॉइंट का जवाब देना है हमें… और मैंने दिया भी…
सत्य को झूठ के टीले के नीचे इतने करीने से दबाया गया है… कि हम बड़े लोग भी एक बार इनकी बातों में आ जाए…. तो फिर ये तो स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे हैं… जिनको तीस्ता सीतलवाड़ जैसों की लिखी किताब पढ़ाई जाती है और स्मृति इरानी ने उस किताब को खोल कर पोल खोल दी कि कैसे चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के दिमाग में हिन्दुओं के खिलाफ ज़हर भरा जा रहा है…
1. महिषासुर दिवस सिर्फ जेएनयू में नहीं मनाया जाता। यह देश के लगभग 350 स्थानों पर मनाया जा रहा है।
जवाब- बहुत सी प्रथाएं हमारे यहाँ सदियों पहले थीं… इसलिए उन्हें जारी रहना चाहिए ये बिलकुल ज़रूरी नहीं है… यदि है तो सती प्रथा भी जारी रहना चाहिए…
2. महिषासुर दिवस मनाने वालों में सबसे अधिक संख्या आदिवासी मूल के लोगों की है। बडी संख्या में पिछडे और दलित भी महिषासुर दिवस मनाते हैं।
जवाब- किसी समुदाय विशेष में किसी विशेष त्यौहार को मानना और उस त्यौहार का दुरुपयोग… स्कूल कॉलेज के बच्चों के भटकाव के लिए करने में बहुत फर्क होता है…
3. असुर नाम की एक जनजाति है, जिसे भारत सरकार ने आदिवासियों में भी ‘आदिम’ की श्रेणी में रखा है। उनकी संख्या सिर्फ 9000 बची है। वे स्वयं को महिषासुर का वंशज मानते हैं। इस देश में महिषासुर के सैकडों स्मारक और स्थल हैं, जिनमें से कुछ को भारत सरकार के पुरात्त्व विभाग ने प्राचीन सभ्यता को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना है तथा उन्हें संरक्षित कर रखा है।
जवाब – जब कोई जाति समानांतर जीवन शैली के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पाती तो वो ऐसे ही विलुप्त हो जाती है. यदि आपको उन्नति और उत्थान करना है तो उन परम्पराओं को त्यागना होगा जो जीवन विरोधी हों. यदि हम बहु पत्नी प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा को पीठ पर ढोकर घूम रहे होते तो आज हमारे प्रधानमंत्री विदेशों में जाकर गर्व से भारत का सर ऊंचा करके नहीं आ रहे होते ….
भारत सरकार ने बहुत सारी चीज़ों को संरक्षित कर रखा है वो इसलिए ताकि हम अपने बुरे अनुभवों से अच्छी बातें सीख सकें.
4. आपने अपने भाषण में बंगाल की बात की और तृणमूल कांग्रेस को आडे हाथों लिया। अकेले बंगाल में कलकता से लेकर मालदा, पुरूलिया तक लगभग 150 जगहों पर महिषासुर दिवस मनाया जा रहा है।
जवाब – आप को अपने घर में, गाँव में, कबीले में जो करना हो करो… किसी शिक्षा संस्थान में इस तरह का दिवस मानना जहां हर जाति, वर्ग और धर्म के विद्यार्थी हों बिलकुल उचित नहीं है. महिषासुर दिवस मनाने के साथ जो देश में देश विरोधी नारे लगा रहे हैं … फिर तो उनके पक्ष में भी आप ज़रूर खड़े होंगे… वरना इस समय जब देश को उन लोगों का विरोध करना चाहिए जो देश द्रोहियों के साथ खड़े हैं… आप उनकी तरफदारी करते हुए प्रमाण इकट्ठा कर रहे हैं!!!
5. दुर्गापूजा का त्योहार इस देश की संस्कृति के लिए काफी नया है, जबकि महिषासुर का बहुत प्राचीन। भाषण देने पहले अपने अधिकारियों से कम से कम गुगल करवा लिया करें लें। वैसे अब भी देर नहीं हुई है, गुगल करके देखें। आपको मालूम चल जाएगा कि महिषासुर दिवस के विरोध में बोलकर आपने प्राचीन भारतीय संस्कृति का कैसा अपमान किया है।
जवाब- आपके गूगल ज्ञान की बलिहारी जाऊं… गूगल का हवाला तो ऐसे दिया जा रहा है जैसे गूगल महिषासुर के ज़माने का हो… अपने इन सारे पॉइंट्स का काट्य तो आपने ये आख़िरी पॉइंट लिखकर ही दे दिया कि दुर्गापूजा का त्योहार इस देश की संस्कृति के लिए काफी नया है, जबकि महिषासुर का बहुत प्राचीन.
जनाब महिषासुर चाहे जितना पुराना हो, उसका वध यदि माँ दुर्गा के हाथों हुआ है तो महिषासुर के समय दुर्गा तो थीं ही ना… कौन सी पूजा कब शुरू हुई उससे क्या फर्क पड़ता है… और यदि आप यह कहना चाहते हैं कि दुर्गा उस समय नहीं थी तो फिर किस उपलक्ष्य में आप महिषासुर शहादत दिवस मना रहे हैं… आप पहले खुद तय कर लीजिये आप कहना क्या चाहते हैं… दुर्गा उस समय थीं या नहीं थीं? वध हुआ या नहीं हुआ???
एक बात आप और समझ लीजिये दुर्गा सिर्फ एक औरत का नहीं एक शक्ति का नाम है… वो तब तब प्रकट होगी जब जब कोई असुर… असुर का मतलब तो पता ही होगा मतलब राक्षस जब मानवता का नाश करने पर उतारू होगा.. और माँ दुर्गा उसका हर बार वध करेगी.
संसद में जब स्मृति इरानी अपने दोनों हाथों में सबूतों वाले कागज़ लिए खड़े होकर बोल रही थी तो मेरे घर के बाहर कहीं बहुत जोर जोर से ढोल बज रहा था…. हम जितने भी लोग उस समय टीवी के सामने बैठे थे सबकी भृकुटियाँ तनी हुई थी, और खून खौल रहा था… लग रहा था… जितने भी स्मृति को चुप कराने की कोशिश कर रहे थे… वे सब यकीनन उस असुर जाति के ही वंशज है जो महिषासुर को पूजते हैं और स्मृति अपने वाक् शास्त्र से एक एक का मर्दन कर रही हैं….
मेरे सामने साक्षात महिषासुर वध का वो दृश्य संपन्न हो रहा था… जिसमें दुर्गा अपने सभी हाथों में शस्त्र(शास्त्र) धारण कर महिषासुर की छाती पर चढ़ी थी..
तो माँ दुर्गा केवल एक औरत नहीं एक शक्ति है और महिषासुरों का वध करने के लिए दुर्गा को हर बार आना ही होगा.
– माँ जीवन शैफाली