देश को स्वतंत्रता का प्रकाश देने जल उठे स्वयं ईंधन बन

चंद्रशेखर आजाद की तरह ही शहीद ऐ आजम भगत सिंह जी को भी हम बचपन में शान से जिया करते थे, जब वो हंटर कैप सी टोपी ढूंढते थे मेलो में, कोयले से बनाई मूछों को “वट” (ताव) देते हुए कहते थे “इंकलाब जिंदाबाद ” तो बस लगता था “आजाद” भगत हमें देख कर आनंद से मुस्कुरा रहे होंगे.

इस देश को स्वतंत्रता का प्रकाश देने के लिए स्वयं ईंधन बन कर जल उठने वाले भगत को तुम क्या समझोगे “झोलों ” , उनके चरणों की धूल भी बन जाओगे ना जिस दिन, चन्दन की तरह भाल पर लगा लेंगे हम.

देश के मजदूरों के रक्त समान “कर”( टैक्स) से प्राप्त सब्सिडी से शराब, कबाब और शबाब का सेवन करने वाले नकली इंकलाबी गिद्धों तुम क्या जानों की असल अधिकारों की लड़ाई के लिए भगत की तरह हफ़्तों असली भूख हड़ताल कैसे की जाती है.

चंद पंक्तियां समर्पित है उन अद्भुत क्रान्तिकारीयों के लिए जिन्होंने क्रांति को साक्षात् प्रकट कर के दिखाया था.

फिर से कहूँगा शब्दों का कोई भी उत्तम समूह इन महापुरुषों के पुण्य स्मरण में असमर्थ है.

जीवन सबको प्यारा था
पर उनको नहीं गवारा था
वो मरते थे मरने को
आजाद हिन्दोस्ताँ करने को
आहुति आजादी की जिनसे ख़त्म जिनसे शुरू
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु।
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ।।

सैलाब हो सर्वस्व निगलते गौरों से त्रस्त
सूरज हिन्द की आजादी का हुआ अस्त,
गौरे सिकंदरो से भिड़ने खड़े हुए तीन पुरु
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ।।
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ।।

जुल्म गुलामी की आंधी से उड़ती पत्ती सा,
स्वाभिमान रह गया हिन्द का बस रत्ती सा,
निर्दयी तुफानों की राह में खड़े हो गए तीन तरु,
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ।।
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु।।

उलझ गए दरिंदों से वो,
झूल गए फंदों से वो,
दूर जीवन के द्वंद्वो से वो,
लगते निजी संबंधो से वो,
युवा शक्ति के अमर प्रतिक को नमन शत शत कुरु
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ।।
धन्य धन्य सुखदेव भगतसिंह राजगुरु ।।

शाब्दिक श्रद्धांजलि सहित नत
कोटि कोटि नमन

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